विगत 11 बरसों से छत्तीसगढ़ संयुक्त किसान मोर्चा किसानों के हक के लिये लगातार आंदोलनरत है वह किसानों के किसी ना अधिकारों व समस्याओं को लेकर आवाज़ उठता ही रहता है वास्तव में उसकी आवाज़ की गूंज भी सरकार पर असरदार ही साबित होती है। अगर हम “सयुक्त किसान मोर्चा”को किसानों की आवाज़ कहे तो ये अतिश्योक्ति नही होगी। विगत बीते कुछ समय से “सयुक्त किसान मोर्चा” किसानों की 11 सूत्रीय माँगो के लेकर अनवरत आंदोलनरत है इल्म हो कि किसानों का सारा जीवन मुफलिसी में व्यतीत होता है ऐसे में छत्तीसगढ़ प्रदेश का के किसान तो मुफलिसी में अपना जीवन व्यतीत करने को विशव है,और सरकार है कि उन्हें बुनियादी सुविधाएं तक मुहैया कराने में असमर्थ साबित हो रही है।अतः अब छत्तीसगढ़ किसान मोर्चा ने किसानों के हक के लिये खुद सरकार को ललकारा है।ज्ञात हो कि किसान मोर्चा समस्त प्रदेश में किसानों की समस्याओं को भलीभांति महसूस कर चुका है और राज्य के किसान अब मोर्चा को अपनी आवाज़ मान कर उसके साथ कदम से कदम मिला कर चल रहे है।
इल्म हो कि देश मे अब तक जो भी सरकार सत्तासीन हुई है उन्होंने किसानों के हित में कम और अपने हित मे ज्यादा ध्यान दिया है। और मोदी का प्रधानमंत्रित्व काल किसानों के लिए अब तक का सबसे खराब काल रहा।क्योंकि मोदी ने देश मे सत्तासीन होने के लिए जो भी वादे किसानों से किये उसे पूरा ही नही किया। जिसका प्रभाव देश के समूचे राज्य पर पड़ा है और छत्तीसगढ़ राज्य भी ऐसे वादों से अछूता नही है। गौरतलब हो कि छत्तीसगढ़ सयुक्त किसान मोर्चा राज्य में आज किसानों की आवाज़ बनकर नही उभरा है बल्कि यह तब से किसानों के हक के लिए आवाज़ बुलंद किया हुआ है जब प्रदेश में भाजपा की तत्कालीन सरकार सत्तासीन थी और उसने सत्ता हथियाने के लिये किसानों का सहारा लिया और किसानों का दान-दाना धान उचित समर्थन मूल्य पर खरीदने का वादा भी किया। लेकिन सत्ता पाते ही वो अपने वादे से मुकर गईं। ना उसने किसानों को तय किया हुआ समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की और ना ही अन्य सुविधाओं को ही किसानों के लिये जुटाया, जिससे किसान नाराज़ हो गए। किसानों ने भाजपा को प्रदेश की सत्ता तीन बार सौपी थी, और तीनों बार भी सत्ता पाने के बाद भी भाजपा ने किसानों के साथ छल ही किया है। तब भाजपा से रुष्ट होकर किसानों में आंदोलन की राह पकड़ ली और आंदोलन की इस राह में जेल जाने तक को तैयार हो गए और गए भी और आज प्रदेश में कांग्रेस की भूपेश सरकार सत्तासीन है और इस सरकार ने भी किसानों के साथ वो न्याय नही किया जिस न्याय की अपेक्षा किसानों ने कांग्रेस की भूपेश सरकार से की थी,अतः एक बार फिर किसानों ने आंदोलन की राह अख़्तियार कर ली है। लेकिन किसानों के इस आंदोलन में माँगे तो ग्यारह है लेकिन पड़ाव अनगिनत है और कहा पर और किस तरह झुकती है यह तो किसानों की ताकत और मोर्चा की बुद्धिकौशल पर ही निर्भर है। इल्म हो कि कुछ लम्हों पहले से किसानों का आंदोलन के रूप में सरकार से टकराव प्रारंभ हो चुका है और किसानों ने आंदोलन के तीन पड़ाव को पार कर लिया है।सबसे पहले पड़ाव में किसानों ने “किसान सत्याग्रह” का आयोजन किया,और दूसरे पड़ाव में राजधानी रायपुर के साथ महासमुंद में किसानों का जेल भरो आंदोलन और फिर 28 गाँव की पदयात्रा ये सब आंदोलन “सयुक्त किसान मोर्चा” के द्वारा अंजाम दिया गया,और आंदोलन में भारी संख्या में किसानों ने हिस्सा लेकर इस आंदोलन को सफल बनाया है। लेकिन इस बार सरकार से इनकी लड़ाई उन ग्यारह मांगों को लेकर है जो वास्तव में जायज है और अभी तक पूरी नही हुईं हैं। लेकिन इस बार इनका सामना सरकार से “सौदा-पत्रक”के संदर्भ में प्रमुख रूप से है जिसे किसान रद्द करने की मांग कर मंडी अधिनियम को पूर्णतः पालन करने के लिए किया जा रहा है।“ इल्म हो कि जब प्रदेश में “सौदा-पत्रक” का नियम लागू किया जा रहा था उस समय प्रदेश में भाजपा की सरकार सत्तासीन थी और कृषि मंत्री का पद बृजमोहन अग्रवाल ने संभाल रखा था अर्थात यह “सौदा-पत्रक” का कानून भी उन्ही के दौरान बनाया गया था। जिसका पूर्णतः उद्देश्य व्यपारियो को लाभान्वित करना था। इल्म हो कि “सौदा-पत्रक” सरकार द्वारा जारी किया गया एक ऐसा कानून है जो किसानों को सरकार द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य से कम कीमतों पर व्यपारियों को धान बेचने के लिए बाध्य करता है। इस सौदा-पत्रक में मंडी किसानों से एक “शपथपत्र” लेती है जिसमें यह लिखा होता है कि “किसान अपनी स्वेच्छा से समर्थन मूल्य से कम कीमत में धान का सौदा व्यपारियो के साथ कर रही है”। ये वास्तव में तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा किसानों को लूटने और व्यापारियों को लाभान्वित करने बनाया गया एक ऐसा कानून है,जो किसानों के अधिकारों का हनन करता है अगर ऐसे कानून को “काला कानून” की संज्ञा दी जाए तो अतिश्योक्ति ना होगी। क्योंकि यह एक साजिश है जो किसानों के साथ भाजपा सरकार ने रचा था, और सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि कांग्रेस की भूपेश सरकार ने इस कानून को रद्द करने के बजाए इसे यथावत बनाये रखा है अतः भाजपा सरकार की तरह ही भूपेश सरकार भी अब किसानों के शोषण में लगी हुई हैं। अतः इसी बात से नाराज़ किसानों ने “छत्तीसगढ़ सयुक्त किसान मोर्चा” के माध्यम से अपने 11 सूत्रीय माँगो को लेकर प्रदेश के एक जिले महासमुंद में जेल भरो सत्याग्रह को बीते माह अंजाम दिया,इस सत्याग्रह में काफ़ी संख्याओं में किसानों ने जेल के द्वारा पर दस्तक दिया और गिरफ्तारी दी। जिन्हें पुलिस ने एक खुली जेल में बंदी बना कर रखा और बाद में निशर्त रिहाई दे दी। वास्तविकता यही है कि “सयुक्त किसान मोर्चा”का तंबू चार बम्बूओ पर खड़ा है और ये चार बम्बू है,जी.पी.चंद्रकार, अनिल दुबे,दीनदयाल वर्मा और जागेश्वर प्रसाद ये चारों इस मोर्चा के महान स्तम्भ है और इन्ही लोगों के निर्देशन में सभी आन्दोलनों को अंजाम तक पहुँचाया जाता है।इल्म हो कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण में भी इन हस्तियों के सर्वोपरि योगदान रहा और राज्य निर्माण के बाद अब ये हस्तियां किसानों के हित मे सरकार से लोहा लेने में लगे हुए है और इन्हीं के इशारे पर मोर्चा के बाकी सदस्यगण कार्य करते है। अतः अभी तक के सभी आंदोलन इनके सफलतापूर्वक ही रहे,लेकिन ऐसा लगता है कि इनके द्वारा किये गए आंदोलन से सरकार को कोई सरोकार नही है अतः सरकार को जो निर्णय लेना था उसने वही लिया।लेकिन ये मोर्चा के सदस्य हताश नही हुए है बल्कि अपने द्वारा चलाये जा रहे आंदोलन को और भी तेज करने की कोशिशों को अंजाम देने में लग गए है। इन्होंने राजधानी के निकट जिले महासमुंद में नवम्बर माह में जेल भरो सत्याग्रह को अंजाम दिया और इसके साथ ही साथ राजधानी में विशाल धरना व प्रदर्शन और तीन दिवसीय किसान जनजागरण में लगभग 28 गाँव की पदयात्रा को भी सफलता पूर्वक आयोजन किया। इतना ही नही इन तीनो आंदोलन को संचालित करने के लिए प्रभरियों का गठन भी किया गया था। जो निम्नानुसार है। महासमुंद में जेल भरो के लिए राज्य के आंदोलनकरी अनिल दुबे,जी. पी.चंद्रकार, अशोक ताम्रकार, ईश्वर साहू,परसराम धुर्व, अलखराम साहू,गोवर्धन वर्मा, श्रीधर चंद्रकार, गोपाल साहू और उसी प्रकार राजधानी में धरना के लिए जागेश्वर प्रसाद, लालाराम वर्मा,चंद्रप्रकाश साहू, विमल ताम्रकार अशोक कशयप आदि होंगे।और इसी प्रकार से तीन दिवसीय पदयात्रा के लिये अनिल दुबे, महेंद्र कौशिक,योगेश्वर शर्मा,जगतारन सिंह राजपूत, जयकरण पटेल,शेष बेस आदि किसान लोगों ने भाग लिया था। वास्तविकता में मोर्चा की पदयात्रा एक अच्छे उद्देश्य को लेकर की गई थी इसमें 28 गाँव के लाखों किसान लाभान्वित होंगे।इल्म हो कि सुतियापट जलाशय से खेतों के सिंचाई के लिये नहर,नाली योजना पचास वर्षों से कागज़ों एवं सिचाई विभाग के कार्यालय में बंदी बनाकर रह गई है। अतः जल के अभाव में “लोहार” बाल्क के लगभग 28 गाँव सिंचाई से वंचित रह जाते है और वस्तुतः यहाँ के किसान कृषि कार्य के लिए वर्षा पर ही निर्भर रहते है।अतः जब मोर्चा ने जल को जीवन मानकर यहाँ से उन 28 गांवों की पदयात्रा प्रारंभ की तो प्रत्येक गाँव का किसान इसमें स्वेच्छा से हिस्सा लेकर इस पदयात्रा को सफल बनाने में अपना योगदान दिया।इल्म हो कि गाँव की खेती के लिए जल न देकर कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही पचास सालों तक किसानों का शोषण किया है और इसे खत्म करने का बीड़ा मोर्चा ने उठाया है। इतना ही नही अब ये मोर्चा लम्बी उड़ान भरने के फिराक में है और इनकी यह उड़ान किसानों की माँगो को लेकर आगामी फ़रवरी 20 में दिल्ली में प्रदर्शन और रैली की तैयारी में है। जिससे किसानों को घान का उचित समर्थन मूल्य दिला सके और “सौदा-पत्रक”के काले कानून को भी रद्द करवाया जा सके। किसानों के इस बड़े आंदोलन के बारे में यह अनुमान लगया जा रहा है कि ये शायद सरकार के गले की फ़ांस साबित हो सकती है।वैसे भी देश का किसान हमेशा से ही समस्याओं से घिरा रहता है और देश और प्रदेश की सरकारें इनकी तरफ से मुँह फेर लेती रही है। अब देखे कि आखिर किसान किन समस्याओं से घिरा होता है। अजीब विडंबना है कि कृषि प्रधान देश में किसान आज भी अपनी दुर्दशा पर आँसू बहा रहा है इस देश की सरकार किसानों की बेबसी से मुँह फेरे हुए है।ये वाकई चिन्तनीय के साथ निन्दनीय भी है।इल्म हो कि भारत संरचनात्मक दृष्टि से गाँव का देश है और लगभग 70 प्रितिशत लोग किसान है और ये भारत देश के रीढ़ की हड्डी के समान है।खाद्य फसलों और तिलहन का उत्पादन करते हैं। वे वाणिज्यिक फसलों के उत्पादक है। वे हमारे उद्योगों के लिए कुछ कच्चे माल का उत्पादन करते इसलिए वे हमारे राष्ट्र के जीवन रक्त है। भारत अपने लोगों की लगभग 60 % कृषि पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निर्भर भारतीय किसान पूरे दिन और रात काम करते है। वह बीज बोते है और रात में फसलों पर नजर रखते भी है। वह आवारा मवेशियों से फसलों की रखवाली करते। वह अपने पशुओं का भी ख्याल रखते है।लेकिन आजकल, कई राज्यों में बैलों की मदद से खेती करने कि संख्या लगभग खत्म हो गई हैं और ट्रैक्टर की मदद् से खेती कि जाती है। उनकी पत्नीय़ॉ और बच्चों भी उनके काम में उनका सहयोग करते है। इतनी मेहनत के बाद भी किसान हताश ही नज़र आता है।इसका एक ही कारण है सरकार असहयोग। इल्म हो कि भारत का किसान गरीब है और समूचे विश्व मे उसकी गरीबी ही उनकी पहचान बनी हुई है। वास्तविकता तो यही है कि उन्हें दो वक़्त का भोजन भी मुश्किल से ही नसीब होता है।ना तो वे अपने लिये ठीक तरह से पहनने के लिये कपड़ा ही जुटा पाते और ना ही अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा ही दे पाते।अर्थात बुनियादी जरूरत के समस्त साधन से वे वंचित ही रहते है।इतना ही नही भारतीय किसान दलालों द्वारा भी परेशान किये जाते है वह साहूकार और कर संग्राहकों से भी बहुत परेशान रहते है इसलिए वह अपने उपज का आनंद भी नही उठा पाते। अलबत्ता बड़े किसानों का जीवन स्तर तो कुछ संतोषजनक है लेकिन छोटे भूमि धारकों और सीमांत किसानों की हालात अब भी संतोषजनक नही है।इनके पास रहने के लिए उपयुक्त निवास भी नही है और है भी तो वो रहने योग्य भी नही है।ये अलग बात है की सरकार ने इनके आवास की व्यवस्था का इंतजाम किया है लेकिन सरकार की यह व्यवस्था भी जरूरतमंदो से दूर ही है।
इन 11 मांगों को लेकर आंदोलन
1. सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा दो, किसानों के फसलों का समर्थन मूल्य पर खरीदी, बिक्री की मंडी शराब दुकान की तरह गांव, कस्बा, ब्लाक स्तर पर सरकार संचालित करे।
2. किसानों का दाना-दाना धान एवं अन्य फसलों का बारहो माह खरीदी हो।
3. मंडी अधिनियम के मुताबिक फसल की खरीदी हो और 12 घंटे के भीतर किसानों का भुगतान कराया जाये।
4. जो व्यापारी समर्थन मूल्य से कम कीमत में धान खरीदी करता है तो उसका लाइसेंस रद्द कर उसे जेल भेजा जाये।
5. किसानों की फसल के खरीदी के बाद सेठ, साहूकार द्वारा सालों तक भुगतान नहीं किया जाता है अत: उन्हें मंडी अधिनियम के तहत ब्याज सहित अविलंब भुगतान कराया जाये।
6. सरकार धान, गेंहू के साथ ही साथ सभी दलहन-तिलहन और सब्जी फसल का भी समर्थन मूल्य घोषित कर बारहो महीना खरीदी की व्यवस्था करें?
7. जो सेठ-मरवाड़ी और अनाज के व्यापारी किसान का लाखों रुपये के अनाज उधारी में खरीदती है उन पर चक्रवृद्धि ब्याज लगाकर किसान को भुगतान करवाए।
8. सरकार के मुताबिक 2 साल का बोनस, फसल बीमा जल्द ही किसानों के खाते में जमा कराया जाये।
9. राज्य में पूर्ण शराब बंदी और सभी किस्म के नशे को पूर्ण प्रतिबंधित करने का वादा सरकार ने किया है। उसका पालन करें।
10. छत्तीसगढ़ के भ्रष्ट सरकार भाजपा, कांग्रेस व भ्रष्ट अधिकारियों के सांठ-गांठ से प्रदेश के सभी मंडियो को षड्यंत्रपूर्वक बंद किया जा रहा है। जिसमें 100 मंडियां बंद हो चुकी है जिसमें से 14 मंडी ही कार्यरत है प्रदेश में मंडियों में ज्यादा शराब दुकान संचालित है क्यों? सरकार इसका जवाब दे?
11. प्रशासन सौदा पत्रक के कानून को रद्द करते हुए समर्थन मूल्य में धान खरीदी को ही अमल में लाए।