कार्तिक पूर्णिमा को सामा चकेवा को बैंड बाजा के साथ दी गई विदाई-आंचलिक ख़बरें-राजेश कुमार

News Desk
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राजेश कुमार-बन्दरा (मुज)

रामपुरदयाल पंचायत में लगातार 25वर्षों से लोक संस्कृति के पर्व सामा चकेबा को दी गयी विदाई
छठ पर्व से ही मिट्टी से कई तरह की मूर्तियां बनाने के साथ शाम में लोकगीत गाये जाने लगते हैं मिथिला तथा कोसी के क्षेत्र में भातृ द्वितीया, रक्षाबंधन की तरह ही भाई बहन के प्रेम के प्रतीक लोक पर्व सामा चकेवा प्रचलित है। अपने-अपने सुविधा के अनुसार दीपावली व छठ के खरना के दिन से मिट्टी से सामा चकेवा का प्रतिमाएं बनाकर इसकी शुरुआत की जाती है।
फिर बेटी के द्विरागमन की तरह समदाउन गाते हुए विसर्जन के लिए समूह में घर से निकलती है। नदी, तालाब के किनारे या जुताई मे मिट्टी तथा खर से बनाए हुये चुगला मे आग लगाकर बुझाती है। फिर सामा चकेवा सहित अन्य को पुन: आने की कामना करते विसर्जन किया जाता है।
मौके पर-कृष्ण मोहन कन्हैया,चन्दन कुमार,टिंकू कुमार,शिव कुमारी देवी,शुशिला देवी,मीरा देवी,राधा देवी,किरण कुमारी,डॉली कुमारी,प्रमोद राम,राम प्रवेश,दिलिप राम,अनील कुमार,राहुल,अभय कुमार
एवं अन्य ग्रामीणों मौजूद थे ।

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