नई दिल्ली – जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स के अध्यक्ष प्रो. भीम सिंह ने कहा कि लद्दाखी प्रतिनिधियों को इस बैठक में बुलाना चाहिए था, क्योंकि लद्दाख भी आज एक केंद्रशासित प्रदेश है। उनकी अनदेखी क्यों की गई? उन्होंने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए आश्चर्य जताया कि इस सत्र में लद्दाख की अनदेखी क्यों की गई?
1. जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराजा हरिसिंह द्वारा 26 अक्टूबर, 1947 को हस्ताक्षरित विलयपत्र को तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने स्वीकार किया था, जिसे आज तक भारत की संसद ने स्वीकार नहीं किया है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि लोकसभा सत्र में बैठें, बहस करें और विलयपत्र को मंजूरी दें जिससे देश के बाकी हिस्सों के तरह जम्मू-कश्मीर को भारत के संघ में जोड़ने का अवसर मिलेगा।
2. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को राज्य का दर्जा बहाल करना, जैसा 5 अगस्त, 2019 को था।
3. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की विधानसभा के लोकतांत्रिक प्रक्रिया और लोगों की सरकार की बहाली के लिए शीघ्र नए सिरे से चुनाव कराए जाए।
4. 2021 की जनगणना पर परिसीमन करना बेहद जरूरी है, ताकि जम्मू-कश्मीर को भी देश के बाकी राज्यों के समान प्रतिनिधित्व मिल सके।
5. किसी भी सफल लोकतंत्र के लिए लोगों की इच्छा सर्वोच्च होती है, क्योंकि यह जनता की सरकार होती है न कि नेताओं व नौकरशाहों की सरकार। लोगों की इच्छा में विश्वास दिखाने से ही लोगों में विश्वास बहाल हो सकता है।
नई दिल्ली में जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों की बैठक में लद्दाक़ी प्रतिनिधियों की अनदेखी- पैंथर्स सुप्रीमो का पीएम मोदी को संदेश-आँचलिक ख़बरें-एस. जेड.मलिक

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