” One Nation, One Election “: फायदे और चुनौतियाँ

Aanchalik Khabre
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One Nation, One Election

लोकतंत्र में एक नई क्रांति की ओर

भारतीय लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहाँ हर वर्ष किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। इस चुनावी सिलसिले में भारी धन खर्च, प्रशासनिक बाधाएँ और विकास कार्यों में रुकावट जैसी समस्याएँ लगातार उठती रही हैं। इन्हीं समस्याओं के समाधान के रूप में केंद्र सरकार ने “One Nation, One Election” यानी एक देश, एक चुनाव की अवधारणा को प्रस्तावित किया है।

“One Nation, One Election” का आशय है कि लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ एक ही समय पर कराए जाएँ। यह विचार राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर बहस और विश्लेषण का प्रमुख विषय बन चुका है।

इतिहास और पृष्ठभूमि: क्या पहले हुआ है ऐसा?

1951-52 में जब भारत में पहला आम चुनाव हुआ, तब केंद्र और राज्यों के चुनाव एक साथ हुए थे। यह सिलसिला 1967 तक चला, लेकिन 1968-69 में कुछ राज्य सरकारों और फिर केंद्र सरकार के कार्यकाल के बीच अवरोध आने के कारण यह क्रम टूट गया। परिणामस्वरूप अब हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव होते हैं।

“One Nation, One Election” की बात पहली बार 1999 में विधि आयोग ने की थी। इसके बाद 2014 और फिर 2019 में इस विचार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुनः गंभीरता से उठाया।

One Nation, One Election के संभावित फायदे

  1. चुनावी खर्च में भारी कटौती

अलग-अलग समय पर चुनाव कराने में केंद्र और राज्य सरकारों को भारी खर्च उठाना पड़ता है। “One Nation, One Election” से चुनाव आयोग, सुरक्षा बलों और प्रचार पर होने वाला खर्च एकमुश्त घट जाएगा। इससे सरकारी धन का दुरुपयोग रोका जा सकेगा।

  1. विकास कार्यों में निरंतरता

अलग-अलग राज्यों में आचार संहिता लागू होने के कारण विकास कार्य रुक जाते हैं। यदि “One Nation, One Election” को लागू किया जाए, तो पाँच वर्षों तक आचार संहिता की बाधा नहीं आएगी, जिससे योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन संभव होगा।

  1. प्रशासनिक और सुरक्षाबलों की कुशलता

हर चुनाव में लाखों पुलिसकर्मियों और प्रशासनिक अधिकारियों को चुनावी ड्यूटी पर लगाया जाता है। इससे शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे जरूरी क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ता है। One Nation, One Election से इस समस्या का समाधान हो सकता है।

  1. मतदाताओं की भागीदारी बढ़ेगी

अगर सभी चुनाव एक साथ कराए जाएँ, तो जनता को बार-बार मतदान केंद्रों पर नहीं जाना पड़ेगा। इससे वोट प्रतिशत में वृद्धि हो सकती है और लोकतंत्र की भागीदारी भी मजबूत होगी।

  1. राजनीतिक स्थिरता को बल

“One Nation, One Election” के माध्यम से एक जैसी विचारधारा वाले दल केंद्र और राज्यों में आ सकते हैं, जिससे नीति-निर्माण और कार्यान्वयन में टकराव की संभावना कम हो जाएगी।

One Nation, One Election की प्रमुख चुनौतियाँ

  1. संविधानिक संशोधन की जटिलता

संविधान के अनुच्छेद 83(2), 85(2), 172 और 174 को संशोधित करना पड़ेगा ताकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल एक साथ हो सके। यह कार्य कानूनी और राजनीतिक रूप से अत्यंत कठिन है।

  1. राज्यों की स्वायत्तता पर प्रश्न

“One Nation, One Election” को लेकर कुछ राज्य यह तर्क देते हैं कि इससे उनकी स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है। हर राज्य की राजनीतिक स्थिति और जरूरतें अलग होती हैं, जिन्हें एकरूप ढांचे में बाँधना लोकतांत्रिक भावनाओं के विरुद्ध हो सकता है।

  1. अविश्वास प्रस्ताव का प्रभाव

यदि किसी राज्य सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है और वह गिर जाती है, तो क्या पूरे देश के चुनाव फिर से होंगे? इस स्थिति में One Nation, One Election की निरंतरता कैसे बनाए रखी जाएगी, यह स्पष्ट नहीं है।

  1. मतदाता की मानसिक उलझन

कई विशेषज्ञों का मानना है कि यदि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं, तो मतदाता केंद्रीय और राज्य सरकारों के मुद्दों को अलग-अलग देखने के बजाय एक ही नजरिए से वोट डाल सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय मुद्दों की उपेक्षा हो सकती है।

  1. तकनीकी और लॉजिस्टिक चुनौतियाँ

देश में 90 करोड़ से अधिक मतदाता हैं। एक साथ इतने बड़े स्तर पर चुनाव कराना तकनीकी दृष्टि से बेहद चुनौतीपूर्ण होगा। पर्याप्त ईवीएम मशीन, वीवीपैट, कर्मचारियों और सुरक्षा व्यवस्था की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक बड़ी बाधा है।

राजनीतिक दृष्टिकोण: समर्थन Vs विरोध

“One Nation, One Election” को लेकर राजनीतिक दलों के बीच स्पष्ट मतभेद हैं।

  • समर्थन करने वाले दलों का कहना है कि यह विचार राष्ट्रहित में है और इससे संसाधनों की बचत होगी।
  • विरोधी दलों का मानना है कि यह केंद्र सरकार द्वारा राज्यों की राजनीतिक स्वतंत्रता को सीमित करने का प्रयास है।

इन मतभेदों के बावजूद, One Nation, One Election पर एक व्यापक और निष्पक्ष संवाद आवश्यक है।

विदेशी उदाहरण: क्या दुनिया में ऐसा होता है?

  • दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, इंडोनेशिया, बेल्जियम और अमेरिका जैसे देशों में अधिकांश चुनाव एक साथ होते हैं।
  • इन देशों में संसदीय और प्रांतीय/राज्यीय चुनाव एक तय समय पर होते हैं, जिससे खर्च और समय की बचत होती है।

भारत में भी One Nation, One Election की सफलता के लिए इन मॉडलों का अध्ययन आवश्यक है।

One Nation, One Election के लिए जरूरी बदलाव

  1. कानूनी ढांचा तैयार करना
    संसद को विधेयक पारित करने होंगे और संभवतः संविधान में संशोधन करना होगा।
  2. चुनाव आयोग की भूमिका मजबूत करना
    भारत निर्वाचन आयोग को और अधिक स्वायत्त व सक्षम बनाना होगा ताकि वह इतने बड़े पैमाने पर चुनाव कराने में समर्थ हो।
  3. सर्वदलीय सहमति बनाना
    “One Nation, One Election” को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए सभी राज्यों और प्रमुख राजनीतिक दलों की सहमति जरूरी है।
  4. जन जागरूकता अभियान चलाना
    मतदाताओं को इस नए प्रणाली की जानकारी देना और उसमें उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना भी अत्यंत आवश्यक है।

 

निष्कर्ष: संतुलित सोच की आवश्यकता

“One Nation, One Election” कोई सरल निर्णय नहीं है। यह विचार जहां भारत को चुनावी थकावट और खर्च से बचा सकता है, वहीं इसके व्यावहारिक पक्ष भी जटिल हैं। इसके लिए संविधानिक, राजनीतिक और सामाजिक सहमति जरूरी है।

यदि ईमानदारी से इस प्रणाली को लागू किया जाए, तो यह भारत की लोकतांत्रिक यात्रा में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हो सकता है। लेकिन यदि इसे जल्दबाज़ी में या बिना सभी पक्षों की राय लिए लागू किया गया, तो यह लोकतंत्र के लिए उलटा भी साबित हो सकता है।

इसलिए, One Nation, One Election पर निर्णय लेते समय देशहित को सर्वोपरि रखना होगा, न कि केवल राजनीतिक स्वार्थ को।

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