प्रस्तावना:-
भारत में जब भी कोई बड़ा ऑपरेशन या अभियान सामने आता है, तो उसकी पृष्ठभूमि में राजनीति, कूटनीति और खुफिया तंत्र की जटिलताएं छिपी होती हैं। ऑपरेशन सिंदूर भी ऐसा ही एक रहस्यमयी अभियान है, जिसने देश के अंदर और बाहर कई बहसों को जन्म दिया है। इस लेख में हम जानने की कोशिश करेंगे कि ऑपरेशन सिंदूर वास्तव में क्या है, इसके पीछे कौन-से पक्ष सक्रिय हैं, और इस पूरे घटनाक्रम में भारत की कूटनीति तथा सुरक्षा एजेंसियों की भूमिका क्या रही।
ऑपरेशन सिंदूर: रहस्य से शुरुआत:-
ऑपरेशन सिंदूर का नाम पहली बार मीडिया में तब आया जब कुछ प्रवासी भारतीयों ने विदेशी धरती पर शोषण, फर्जीवाड़े और सुरक्षा संबंधी खतरे की बात उठाई। यह ऑपरेशन उन गतिविधियों से जुड़ा है, जिसमें भारतीय नागरिकों को धार्मिक, रोजगार या सांस्कृतिक अवसरों के नाम पर विदेश भेजा जाता है, लेकिन वहां उन्हें असंवैधानिक गतिविधियों में फंसाया जाता है।
इस ऑपरेशन के दौरान सामने आई घटनाएं न सिर्फ मानवाधिकार उल्लंघन की ओर इशारा करती हैं, बल्कि इसमें भारत की विदेश नीति और खुफिया एजेंसियों की भूमिका पर भी गहरा संदेह उत्पन्न करती हैं।
ऑपरेशन सिंदूर और सुरक्षा तंत्र की नाकामी:-
कई विशेषज्ञों का मानना है कि ऑपरेशन सिंदूर ने भारत के सुरक्षा ढांचे में छिपे खामियों को उजागर किया है। विदेशी एजेंसियों और स्थानीय दलालों के गठजोड़ ने यह दिखाया कि किस तरह से भारतीय नागरिकों को निशाना बनाया जा सकता है। यह सीधे तौर पर खुफिया तंत्र की लापरवाही को दर्शाता है।
एक तरफ तो खुफिया एजेंसियों को इन गतिविधियों की भनक तक नहीं लगी, दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की स्थिति कमजोर दिखी। यह सवाल भी उठता है कि क्या एजेंसियां देश के भीतर की साजिशों से वाकिफ हैं या सिर्फ सतही कार्रवाई कर रही हैं?
भारत की विफल विदेश नीति पर सवाल:-
ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि में जिस तरह से भारतीय नागरिकों की सुरक्षा को नजरअंदाज किया गया, वह सीधे तौर पर भारत की विफल विदेश नीति की ओर इशारा करता है। भारत दुनिया की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था और मजबूत लोकतंत्र होने का दावा करता है, लेकिन अपने नागरिकों की विदेशों में सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाने में बार-बार असफल रहा है।
जब विदेशी मीडिया इस ऑपरेशन की परतें खोल रहा था, तब भारतीय दूतावास या राजनयिक स्तर पर कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं दिखी। इससे यह साफ होता है कि सरकार की विदेश नीति में मानवीय सुरक्षा की प्राथमिकता कहीं पीछे छूट रही है।
इसी संदर्भ में संगरूर से आम आदमी पार्टी के लोकसभा सदस्य गुरमीत सिंह मीत हेयर ने संसद में चल रही बहस के दौरान भारत की विफल विदेश नीति पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा:
सूचना एवं लोक संपर्क विभाग, पंजाब
मीत हेयर ने संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस के दौरान विफल विदेश नीति का
मुद्दा उठाया
केंद्र सरकार ने खुफिया तंत्र की लापरवाही की जिम्मेदारी तक नहीं
स्वीकारी : मीत हेयर
नई दिल्ली, 29 जुलाई
संगरूर से आम आदमी पार्टी के लोकसभा सदस्य गुरमीत सिंह मीत हेयर ने संसद
में ऑपरेशन सिंदूर पर चल रही बहस के दौरान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर जारी
युद्ध के हालात में असफल साबित हुई भारत की विदेश नीति का गंभीर मुद्दा
उठाया।
मीत हेयर ने सबसे पहले सेना के जवानों को नमन करते हुए उनकी बहादुरी को
याद किया और कहा कि पाकिस्तान के साथ जारी युद्ध के दौरान “विश्व गुरु”
कहलाने वाले देश की मदद को कोई भी देश सामने नहीं आया। चीन और तुर्की
जैसे देश खुलेआम पाकिस्तान की मदद कर रहे थे, वहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा
कोष (आईएमएफ) ने भी उसी समय पाकिस्तान को वित्तीय सहायता मंजूर कर दी।
भारत की ओर से विदेशों में गए संसदीय प्रतिनिधिमंडल को गिने-चुने देशों
को छोड़कर कहीं भी किसी कैबिनेट मंत्री से भेंट तक नहीं हो सकी।
मीत हेयर ने केंद्र सरकार की गैर-जिम्मेदाराना रवैये पर सवाल उठाते हुए
कहा कि कभी एक मामूली रेल हादसे पर भी रेल मंत्री नैतिक आधार पर इस्तीफा
दे देता था, लेकिन भारतीय खुफिया तंत्र की लापरवाही से हुए इतने बड़े
आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई, फिर भी सरकार में किसी
ने न इस्तीफा दिया, न ही किसी ने इसकी जिम्मेदारी स्वीकार की।
लोकसभा सदस्य ने कहा कि रक्षा मंत्री और गृह मंत्री की लंबी-लंबी तकरीरों
में देश के आम लोगों द्वारा उठाए गए सवालों का कोई उत्तर तक नहीं दिया
गया। उन्होंने कहा कि बाकी देशों ने तो सोशल मीडिया और टीवी पर युद्ध
जैसे हालात देखे, लेकिन सीमा राज्य पंजाब के लोगों ने हर दिन ड्रोन
हमलों, सायरनों और ब्लैकआउट के साये में गुजारा था।
ऑपरेशन सिंदूर में राजनीतिक बवाल:-
ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में विपक्षी दलों ने तीखा हमला बोला। खासकर आम आदमी पार्टी के लोकसभा सदस्य ने सरकार से इस मिशन की पूरी जानकारी सार्वजनिक करने की मांग की। उनका कहना था कि सरकार को बताना चाहिए कि इस ऑपरेशन में किन एजेंसियों की भूमिका रही, और किन-किन नागरिकों को निशाना बनाया गया।
इससे यह स्पष्ट होता है कि ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ सुरक्षा या कूटनीतिक विफलता का मामला नहीं, बल्कि यह भारतीय राजनीति का भी संवेदनशील मुद्दा बन गया है। इसमें सत्ता और विपक्ष की राजनीति भी शामिल हो गई है।
ऑपरेशन सिंदूर: मीडिया की भूमिका:-
जब सरकार और एजेंसियां चुप थीं, तब मीडिया ने ऑपरेशन सिंदूर की परतें खोलने का बीड़ा उठाया। स्वतंत्र पत्रकारों और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स ने सामने लाया कि किस तरह विदेशों में भारतीय मूल के लोगों को फर्जी वीजा, दस्तावेज और वादों के सहारे फंसाया गया।
मीडिया की जांच से यह भी सामने आया कि कुछ प्राइवेट एजेंसियों और धार्मिक संस्थाओं का नाम इस ऑपरेशन से जुड़ा है, जिन्होंने धर्म या नौकरी के नाम पर मासूम लोगों को निशाना बनाया।
ऑपरेशन सिंदूर का सामाजिक प्रभाव:-
ऑपरेशन सिंदूर के चलते कई भारतीय परिवार बर्बाद हो गए। कुछ युवाओं ने अपनी ज़िंदगी की पूंजी खर्च कर विदेश की ओर रुख किया, पर उन्हें बंधुआ मजदूरी, मानसिक शोषण और कभी-कभी मौत तक का सामना करना पड़ा। इस ऑपरेशन ने भारत के समाज को गहरे स्तर पर झकझोर दिया।
सरकार की प्रतिक्रिया:-
सरकार ने शुरुआती दौर में ऑपरेशन सिंदूर पर कोई विशेष बयान नहीं दिया, लेकिन बाद में जब विपक्ष और जनता का दबाव बढ़ा, तब विदेश मंत्रालय ने एक जाँच कमेटी का गठन किया। पर सवाल यह है कि क्या यह जांच भी उन सैकड़ों पीड़ितों को न्याय दिला सकेगी जिनका जीवन इस ऑपरेशन ने बदल दिया?
समाधान की राह:-
ऑपरेशन सिंदूर जैसे मामलों से बचने के लिए सरकार को चाहिए कि वह—
- विदेश भेजने वाले एजेंटों और संस्थाओं पर कड़ी निगरानी रखे।
- प्रवासी भारतीयों के लिए एक मजबूत सहायता तंत्र बनाए।
- विदेशों में भारतीय दूतावासों को और अधिक सक्रिय और उत्तरदायी बनाया जाए।
- खुफिया तंत्र को अपग्रेड कर संभावित खतरों का पूर्वानुमान लगाया जाए।
- विदेश नीति में मानवाधिकार और नागरिक सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।
निष्कर्ष:-
ऑपरेशन सिंदूर केवल एक सुरक्षा विफलता नहीं, बल्कि यह एक राष्ट्रीय चेतावनी है। इसने यह दिखा दिया कि जब तक हमारे देश की नीतियां और एजेंसियां सजग नहीं होंगी, तब तक भारत के नागरिक चाहे देश में हों या विदेश में — सुरक्षित नहीं माने जा सकते।
यह समय है जब सरकार को सिर्फ राजनीतिक बयानबाज़ी से आगे बढ़कर ऑपरेशन सिंदूर जैसी घटनाओं को गंभीरता से लेना होगा और ठोस नीति बनानी होगी। नहीं तो आने वाले समय में यह ऑपरेशन एक ‘मॉडल’ बन जाएगा, जिसका इस्तेमाल और भी घातक रूपों में हो सकता है।
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