New Parliament Inauguration Controversy : नए संसद भवन के उद्घाटन का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। विपक्षी दलों का कहना है कि नए संसद भवन का उद्घाटन करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की बजाय राष्ट्रपति मुर्मू को आमंत्रित किया जाना चाहिए.
बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति से संसद भवन का उद्घाटन कराने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि लोकसभा सचिवालय ने राष्ट्रपति को उद्घाटन के लिए आमंत्रित न करके संविधान का उल्लंघन किया है। एडवोकेट सीआर जया सुकिन ने पार्टी-इन-पर्सन के रूप में याचिका दायर की है। याचिका में लोकसभा सचिवालय को निर्देश देने की मांग की गई है कि नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराया जाए।
दो चरणों में होगा उद्घाटन
नए संसद भवन का उद्घाटन दो चरणों में होगा। उद्घाटन समारोह से पहले की रस्में सुबह शुरू होंगी जो कि संसद में महात्मा गांधी प्रतिमा के पास एक पंडाल में आयोजित होने की संभावना है। पीएम मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश और सरकार के कुछ वरिष्ठ मंत्रियों के समारोह में शामिल होने की उम्मीद है। वहीँ दूसरा चरण दोपहर में राष्ट्रगान के गायन के साथ होगा शुरू।
नेता लोकसभा और राज्यसभा कक्ष का करेंगे निरीक्षण
बताया जा रहा है कि पूजा के बाद गणमान्य लोग नए भवन में लोकसभा के कक्ष और राज्यसभा कक्ष के परिसर का निरीक्षण करेंगे। संभावना है कि कुछ अनुष्ठानों के बाद लोकसभा कक्ष में स्पीकर की कुर्सी के ठीक बगल में पवित्र ‘सेंगोल’ स्थापित किया जाएगा, जिसके लिए इसे डिजाइन करने वाले मूल जौहरी सहित तमिलनाडु के पुजारी मौजूद रहेंगे। सूत्रों का कहना है कि नए संसद भवन के परिसर में एक प्रार्थना समारोह भी आयोजित किया जाएगा।
उधर विपक्षी दल केंद्र की मोदी सरकार को इस मुद्दे पर घेरने की कोशिश में जुट गई है. कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार कर दिया है.
किस किस ने जताया विरोध
कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, टीएमसी, डीएमके, वाम दल, राष्ट्रीय जनता दल, जेडीयू, एनसीपी, समाजवादी पार्टी, उद्धव ठाकरे की शिवसेना समेत 19 दलों ने बुधवार को कहा कि वे इस आयोजन का हिस्सा नहीं बनेंगे. कांग्रेस शुरू से ही यह मुद्दा उठा रही है कि नए भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री की बजाय राष्ट्रपति से कराया जाना चाहिए. कांग्रेस के पूर्व सांसद राहुल गांधी ने एक ट्वीट किया था, “नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति जी को ही करना चाहिए, प्रधानमंत्री को नहीं!” इसके बाद कांग्रेस ने इस मुद्दे पर विस्तार से प्रेस वार्ता कर प्रधानमंत्री द्वारा नए भवन के उद्घाटन पर सवाल उठाया था. साथ ही कांग्रेस ने इस भवन के निर्माण का औचित्य भी पूछा था.
राष्ट्रपति से संसद का उद्घाटन न करवाना और न ही उन्हें समारोह में बुलाना – यह देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद का अपमान है।
संसद अहंकार की ईंटों से नहीं, संवैधानिक मूल्यों से बनती है।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 24, 2023
कौन-कौन दल रहेंगे मौजूद
इसी को लेकर लगातार सियासी बवाल मचा हुआ है। 28 मई को होने वाले समारोह का जहां कई राजनीतिक दलों ने बहिष्कार किया है। वहीं, कइयों ने शामिल होने की पुष्टि की है। समारोह में शामिल होने वाले राजनीतिक दल तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी), शिरोमणि अकाली दल, बीजू जनता दल (बीजेडी) और युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) है। इन पार्टियों ने बुधवार को एलान किया था कि वह उद्घाटन के समय उपस्थित रहेंगे।
विपक्ष ने किया बहिष्कार का ऐलान
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि करीब 900 करोड़ रुपये खर्च करने की क्या जरूरत थी. उन्होंने कहा, “भारत दुनिया का पहला लोकतंत्र होगा, जिसे अपना नया संसद भवन बनाने की जरूरत पड़ी. दुनिया के किसी भी लोकतंत्र ने अपने इतिहास में संसद भवन को नहीं बदला. जरूरत पड़ने पर तमाम देशों ने उसकी मरम्मत जरूर करवाई है.”
आनंद शर्मा का कहना था कि विदेशी संसदों की तुलना में देश की संसद अपेक्षाकृत कम उम्र की और बेहद मजबूत इमारत है. इससे भारत की आजादी का इतिहास जुड़ा है. उन्होंने कहा, “संसद केवल एक इमारत भर नहीं है, यह देश और देश के लोगों के लिए हमारी संप्रभुता का प्रतीक है.”
बुधवार को कांग्रेस ने एक बयान जारी कर नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार का ऐलान भी कर दिया. कांग्रेस ने अपने बयान में कहा, “नए संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी को पूरी तरह से दरकिनार करना ना केवल महामहिम का अपमान है बल्कि लोकतंत्र पर सीधा हमला भी है. जब लोकतंत्र की आत्मा को ही संसद से निष्कासित कर दिया गया है, तो हमें नई इमारत में कोई मूल्य नहीं दिखता. हम नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने के अपने सामूहिक निर्णय की घोषणा करते हैं.”
नए संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी को पूरी तरह से दरकिनार करना न केवल महामहिम का अपमान है बल्कि लोकतंत्र पर सीधा हमला भी है।
जब लोकतंत्र की आत्मा को ही संसद से निष्कासित कर दिया गया है, तो हमें नई इमारत में कोई मूल्य नहीं दिखता। हम नए संसद भवन के… pic.twitter.com/TTJnNFC2rG
— Congress (@INCIndia) May 24, 2023
मायावती विपक्ष के बहिष्कार में नहीं होगी शामिल
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने नए संसद भवन के उद्घाटन में शामिल होने या बहिष्कार करने पर अपना रुख साफ कर दिया है. मायावती ने ट्वीट कर बताया है कि बसपा विपक्ष के बहिष्कार में शामिल नहीं होगी. हालांकि व्यस्तता का हवाला देते हुए मायावती ने खुद कार्यक्रम में शामिल होने में असमर्थता जताई है. बता दें कि विपक्ष का कहना है कि मोदी सरकार नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से नहीं करवा रही है, जो आदिवासी समाज से आती हैं. इसे विपक्ष ने आदिवासियों के सम्मान से जोड़ा है. वहीं, विपक्ष के इस मुद्दे का मायवाती ने पलटवार किया है. मायावती ने कहा कि ‘इसको आदिवासी महिला सम्मान से जोड़ना अनुचित है.’
1. केन्द्र में पहले चाहे कांग्रेस पार्टी की सरकार रही हो या अब वर्तमान में बीजेपी की, बीएसपी ने देश व जनहित निहित मुद्दों पर हमेशा दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उनका समर्थन किया है तथा 28 मई को संसद के नये भवन के उद्घाटन को भी पार्टी इसी संदर्भ में देखते हुए इसका स्वागत करती है।
— Mayawati (@Mayawati) May 25, 2023
बसपा चीफ ने ट्वीट कर कहा, “केंद्र में पहले चाहे कांग्रेस पार्टी की सरकार रही हो या अब वर्तमान में बीजेपी की, बीएसपी ने देश व जनहित निहित मुद्दों पर हमेशा दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उनका समर्थन किया है. तथा 28 मई को संसद के नए भवन के उद्घाटन को भी पार्टी इसी संदर्भ में देखते हुए इसका स्वागत करती है.”
मायावती ने कहा, “राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा नए संसद का उद्घाटन नहीं कराए जाने को लेकर बहिष्कार अनुचित. सरकार ने इसको बनाया है इसलिए उसके उद्घाटन का उसे हक है. इसको आदिवासी महिला सम्मान से जोड़ना भी अनुचित. यह उन्हें निर्विरोध न चुनकर उनके विरुद्ध उम्मीदवार खड़ा करते वक्त सोचना चाहिए था.”
उन्होंने आगे कहा, “देश को समर्पित होने वाले कार्यक्रम अर्थात नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का निमंत्रण मुझे प्राप्त हुआ है, जिसके लिए आभार और मेरी शुभकामनाएं. किंतु पार्टी की लगातार जारी समीक्षा बैठकों संबंधी अपनी पूर्व निर्धारित व्यस्तता के कारण मैं उस समारोह में शामिल नहीं हो पाऊंगी.”
नई संसद में सेंगोल स्थापित करेंगे मोदी
नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बताया कि नए भवन में सेंगोल को स्थापित किया जाएगा. उन्होंने कहा, “इस अवसर पर एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित होगी. इसके पीछे युगों से जुड़ी हुई एक परंपरा है. इसे तमिल में सेंगोल कहा जाता है और इसका अर्थ संपदा से संपन्न और ऐतिहासिक है.
अमित शाह के मुताबिक 14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी. इसके 75 साल बाद आज देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा, “सेंगोल ने हमारे इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई थी. यह सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था. इसकी जानकारी पीएम मोदी को मिली तो गहन जांच करवाई गई. फिर निर्णय लिया गया कि इसे देश के सामने रखना चाहिए. इसके लिए नए संसद भवन के लोकार्पण के दिन को चुना गया.”
सेंगोल क्या है?
सेंगोल शब्द तमिल शब्द सेम्मई’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘नीतिपरायणता’. सेंगोल एक राजदंड होता है. चांदी के सेंगोल पर सोने की परत होती है. इसके ऊपर भगवान शिव के वाहन नंदी महाराज विराजमान होते हैं. सेंगोल पांच फीट लंबा है. इसे तमिलनाडु के एक प्रमुख धार्मिक मठ के मुख्य आधीनम (पुरोहितों) का आशीर्वाद प्राप्त है. 1947 के इसी सेंगोल को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लोकसभा में अध्यक्ष के आसन के पास प्रमुखता से स्थापित किया जाएगा. सेंगोल विशेष अवसरों पर बाहर ले जाया जाएगा, ताकि जनता भी इसके महत्व को जान सके.
आजादी के 15 मिनट पहले पहले पीएम नेहरू को मिला था सेंगोल
ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक, तमिल परंपरा में राज्य के महायाजक (राजगुरु) नए राजा को सत्ता ग्रहण करने पर एक राजदंड भेंट करता है. परंपरा के अनुसार यह राजगुरु, थिरुवदुथुरै अधीनम मठ का होता है. इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने 14 अगस्त 1947 को रात के 11.45 बजे यानी आजादी मिलने से 15 मिनट पहले थिरुवदुथुरै अधीनम मठ के राजगुरु ने राजदंड माउंटबेटन को दिया. बकायदा पूजा के बाद राजदंड सेंगोल को पहले पीएम नेहरू को भेंट किया गया.
कहां रखा था सेंगोल?
इस समारोह के बाद ये राजदंड इलाहाबाद (प्रयागराज) संग्रहालय यानी आनंद भवन में रख दिया गया. यह नेहरू परिवार का पैतृक निवास है. 1960 के दशक में इसे वहीं के संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया. 1975 में शंकराचार्य ने अपनी किताब में इसका जिक्र किया. इसके बाद 1978 में, कांची मठ के ‘महा पेरियवा’ (वरिष्ठ ज्ञाता) ने इस घटना को एक शिष्य को बताया. बाद में इसे घटना को प्रकाशित भी किया गया था. यह वाकया पिछले साल तमिलनाडु में आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर एक बार फिर सामने आया.
कैसे हुई खोज?
पीएम नरेंद्र मोदी को डेढ़ साल पहले सेंगोल को लेकर 1947 की इस ऐतिहासिक घटना के बारे में बताया गया था. उसके बाद 3 महीने तक इसकी खोजबीन होती रही. देश के हर संग्रहालय में इसे ढूंढा गया. फिर प्रयागराज के संग्रहालय में इसका पता चला. 1947 में जिन्होंने इसे बनाया था, उन्होंने ही इसकी सत्यता की पुष्टि की.
न्यायपूर्ण और निष्पक्ष शासन के आदेश का प्रतीक है सेंगोल
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सेंगोल को ग्रहण करने वाले व्यक्ति को न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने का ‘आदेश’ (तमिल में‘आणई’) होता है. यह बात सबसे अधिक ध्यान खींचने वाली है. जनता की सेवा के लिए चुने गए प्रतिनिधियों को इसे कभी नहीं भूलना चाहिए.
सेंगोल में तमिलनाडु सरकार की भूमिका
तमिलनाडु सरकार ने 2021-22 के ‘हिन्दू रिलिजियस एंड चैरिटेबल एंडोमेंट डिपार्टमेंट’- हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (एचआर एंड सीई) के पॉलिसी नोट में राज्य के मठों द्वारा निभाई गई भूमिका को गर्व से प्रकाशित किया है. इस दस्तावेज़ के पैरा 24 में मठों द्वारा शाही परामर्शदाता के रूप में निभाई गई भूमिका पर स्पष्ट रूप से प्रकाश डाला गया है.
यह ऐतिहासिक योजना आधीनम के अध्यक्षों से विचार-विमर्श करके बनाई गई है. सभी 20 आधीनम के अध्यक्ष इस शुभ अवसर पर आकर इस पवित्र अनुष्ठान की पुनर्स्मृति में अपना आशीर्वाद भी प्रदान कर रहे हैं. इस पवित्र समारोह में 96 साल के श्री वुम्मिडी बंगारु चेट्टी जी भी सम्मिलित होंगे, जो इसके निर्माण से जुड़े रहे हैं.