परमार दंपति दिल्ली में पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित होंगे

News Desk
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राजेंद्र राठौर

झाबुआ जिले को सम्मानित करने वाले परमार दंपति के संघर्ष, मेहनत और लगन की हम परिकल्पना भी नहीं कर सकते पिछले 25 से 30 वर्षों से वह झाबुआ जिले की संस्कृति को अपने हाथों की कला से स्वरूप देने का काम कर रहे हैं। परमार दंपति के द्वारा बनाए गए आदिवासी गुड्डे गुड़िया आज देश-विदेश में अपनी पहचान बना चुके हैं। सीधे-साधे सरल जीवन जीने वाले रमेश परमार और उनकी धर्मपत्नी शांति परमार ने अपने कच्चे और छोटे मकान से आदिवासी पहनावे को गुड्डे गुड़िया के रूप में सहेजने का काम शुरू किया शुरुआत में उन्होंने पैसों की कमी होने के कारण लोगों से कपड़े मांग कर आदिवासी गुड्डे गुड़िया बनाने का काम शुरू किया संघर्ष को संकल्प का रूप देकर हमेशा अपने हौसले और जुनून के साथ आगे बढ़ते रहे।
आज परमार दंपति द्वारा बनाए गए गुड्डे गुड़िया देश के कई सारे आयोजन में आकर्षण का केंद्र रहते हैं।

परमार दंपति ने आदिवासी गुड्डे गुड़िया जिसमें गुड्डे के हाथ में तीर कमान और गुड़िया के सर पर बांस की टोकरी के रूप में प्रदर्शित किया। आदिवासी पहनावे गहनों से गुड्डे गुड़ियों को सजाया। आज झाबुआ जिले की आदिवासी संस्कृति की पहचान देश विदेश में अपना परचम लहरा रही है परमार दंपति द्वारा बनाए गए गुड्डे गुड़ियों की मांग देश में ही नहीं विदेशों में भी है।WhatsApp Image 2023 04 04 at 9.01.59 PM
झाबुआ का नाम पूरी दुनिया में सितारे की तरह चमकाने वाले परमार दंपति की सादगी उनके पहनावे में साफ झलकती है रमेश परमार हमेशा कुर्ता पजामा पहनते हैं और उनकी धर्मपत्नी सीधे पल्ले की साड़ी पहनती है। और दिल्ली पद्मश्री लेने भी वह इसी सादगी के साथ रवाना हुए।
झाबुआ और मध्य प्रदेश के लिए यह गर्व की बात है कि हमारे बीच रहने वाले सहज और सरल स्वभाव के सामान्य व्यक्ति अपने संघर्ष से आज पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित हो रहे हैं। जब परमार दंपति का नाम पद्मश्री के लिए नामित हुआ तो उनके घर बधाई देने वालों का ताता लग गया। लेकिन उनके चेहरे पर वही सादगी और सरल व्यक्तित्व ही झलकता रहा।
जब दिल्ली में परमार दंपति को पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा जब झाबुआ, झाबुआ जिले के और मध्य प्रदेश के हर नागरिक को उन पर गर्व होगा। परमार दंपति ने अपने संघर्ष और हौसलों से जो सम्मान पाया है उसके वह हकदार हैं। परमार दंपति कभी संघर्ष से घबराए नहीं मुफलिसी में भी उन्होंने अपने जिले की संस्कृति को पहचान देने का काम सतत जारी रखा आज उन्होंने आदिवासी संस्कृति का जो मान बढ़ाया है उसके लिए उन्हें बहुत साधुवाद।

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