पितृपक्ष का महत्व
सनातन धर्म में पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है। यह वह समय है जब हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं, उनका आभार व्यक्त करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। श्राद्ध केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन की एक गहरी शिक्षा है—हमारी जड़ों से जुड़ने, उन आत्माओं का सम्मान करने और उनके आशीर्वाद को महसूस करने की।
श्राद्ध के दौरान किए गए हर छोटे-बड़े कार्य का फल सीधे हमारे पूर्वजों तक पहुँचता है। संतुष्ट पितर हमारे परिवार को सुख, समृद्धि और सफलता का आशीर्वाद देते हैं।
श्राद्ध के नियम और मंत्र
भगवद्गीता का पाठ
श्राद्ध के दिन भगवद्गीता के सातवें अध्याय का महात्म्य पढ़कर पूरा अध्याय पढ़ना चाहिए और उसका फल मृतक आत्मा को अर्पित करना चाहिए।
आरंभ और समापन मंत्र
श्राद्ध के आरम्भ और अंत में तीन बार निम्न मंत्र का जप करें:
(समस्त देवताओं, पितरों, महायोगियों, स्वधा एवं स्वाहा को नमस्कार।)
विशेष मंत्र
पितरों को संतुष्टि देने के लिए एक विशेष मंत्र भी उच्चारित करना चाहिए:
श्राद्ध करने की प्रक्रिया
-
जिसका कोई पुत्र न हो, उसका श्राद्ध दौहिक (पुत्री के पुत्र) या पत्नी कर सकती है।
-
पूजा के समय गंध रहित धूप का प्रयोग करें और बिल्व फल का उपयोग न करें।
-
यदि पंडित नहीं हैं, तो सूर्य नारायण के सामने खुले हाथों से अर्घ्य अर्पित करें।
जप और मंत्र
श्राद्ध पक्ष में प्रतिदिन द्वादश अक्षर मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जप करना चाहिए और उसका फल अपने पितरों को अर्पित करना चाहिए।
भोजन और आमंत्रण
-
श्राद्ध से एक दिन पूर्व श्रेष्ठ ब्राह्मणों को आमंत्रित करना चाहिए।
-
श्राद्ध के दिन बिना निमंत्रण आए ब्राह्मणों को भी भोजन कराना चाहिए।
-
भोजन स्वादिष्ट, पर्याप्त और श्रद्धापूर्वक होना चाहिए।
-
भोजन देते समय कहें:
“हे महानुभावो! अब आप लोग अपनी इच्छा के अनुसार भोजन करें।”
श्राद्धकाल में सात विशेष शुद्धताएँ
-
शरीर
-
द्रव्य
-
स्त्री
-
भूमि
-
मन
-
मंत्र
-
ब्राह्मण
श्राद्ध में तीन मुख्य बातों का ध्यान रखें: शुद्धि, अक्रोध और अत्वरा (जल्दबाजी न करना)।
मंत्रोच्चारण का महत्व
श्राद्ध में मंत्र का उच्चारण अत्यंत महत्वपूर्ण है। आपके द्वारा दी गई वस्तु कितनी भी मूल्यवान क्यों न हो, लेकिन यदि मंत्र का उच्चारण शुद्ध न हो, तो श्राद्ध का उद्देश्य पूरा नहीं होता।
पितृपक्ष के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें
-
दीपक जलाएँ और पूर्वजों के नाम पर भोजन या दान करें।
-
मौन रहकर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें।
-
उनका आशीर्वाद ही हमारे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है।
पितृपक्ष 2025 में हम सभी को अपने पूर्वजों को सच्ची श्रद्धा और प्रेम से याद करना चाहिए। उनके लिए किए गए हर अनुष्ठान से न केवल उनकी आत्मा की शांति होती है, बल्कि यह हमारे परिवार के कल्याण का मार्ग भी खोलता है।
Also Read This – डॉक्टर की हत्या कर शव गंगा में फेंका