रूपम वर्मा
नोएडा: वृक्षारोपण तभी करें जब आप इसके प्रति दिल से गंभीर हों ना कि सोशल मीडिया में दिखाने के लिए. बरसातों में ऐसी कई पोस्ट आपको रोज़ देखने को मिल जाएँगी जिनका मक़सद बस केवल ख़ानापूर्ति करना ही है. मज़ा तो तब है जब आप लगाये हुए पोंधे की सेल्फ़ी बार बार डालें कि ये पोंधा इतना बड़ा हो गया है. जिन्होंने भी वृक्षारोपण किया होगा उनमें से 80 प्रतिशत लोगों ने तो दुबारा पलट के भी नहीं देखा होगा कि लगाए हुए पेड़ ज़िंदा भी हैं या नहीं.
एक प्रचलन चल चुका है दिखावा करने का इससे बचें क्यूँकि वृक्षारोपण करना तभी सार्थक है जब आप इसके लालन पालन की भी ज़िम्मेदारी उठाते हैं किसी अबोध बच्चे की ही तरह इसकी परवरिश करते हैं और इसे पाल पोस के बढ़ा करते हैं. हर साल बरसातों में लाखों पेड़ लगायें जाते हैं अगर उनमें से ५० प्रतिशत पेड़ भी वृक्ष बन जाते तो हर साल वृक्षारोपण का रोना नहीं रोना पढ़ता क्यूँकि पेड़ लगाना तो आसान है पर उसकी परवरिश उतनी ही मुश्किल और हमें उतना समय कहाँ.
हम तो वृक्षारोपण करके अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर लेते हैं, पेड़ जिये या मरे ये किसको पड़ी है और हमारी यही सोच का नतीजा है कि वृक्षारोपण के दौरान लगाये गए पोंधों में से मात्र १० प्रतिशत ही पेड़ बन पाते हैं बाक़ी देखरेख ना होने की वजह से दम तोड़ देते हैं. हालाँकि ऐसी कई संस्थाएँ और लोग हैं जो अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाहन पूरे ईमानदारी से कर रहें है और लगाये/लगवाये गए पेड़ों की परवरिश भी.
ऐसे कई उदाहरण आपको मिल जाएँगे जिन्होंने उजाड़/वीरान जैसी जगह पर अपनी मेहनत के दम पर, बिना दिखावा करे सेवा भाव से जीवंत जंगल बसा दिया है. वृक्षारोपण की आवश्यकता वहीं है जहां इसकी ज़रूरत है जंगल में वृक्षारोपण करने के क्या मायने? जंगल में वृक्षारोपण तो जंगली जानवरों व पक्षियों द्वारा ही हो जाता है.
प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना बंद कर दो वो अपनी केयर ख़ुद कर लेगी
वृक्षारोपण की आवश्यकता तो अब हुई ना जब हमने विकास के नाम पर इसका अंधाधुंध दोहन कर दिया. वरना जब प्रकृति अपने मूलस्वरूप में थी तब कहाँ ज़रूरत थी. वैसे भी मधुमक्खी, तितली, पक्षी और कई जानवर से ही जंगल का वृक्षारोपण हो जाता है
अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि वृक्षारोपण को एक ज़िम्मेदारी के रूप में लें ना की औपचारिकता के रूप में. और जी भी पोधें आप लगाएँ उसके परवरिश की भी ज़िम्मेदारी उठाएँ तभी वृक्षारोपण करने के असल मायने हैं.