पदमा एस. कर्वे | मुंबई
- लोकतंत्र में भय का माहौल
- प्रेस कॉन्फ्रेंस में गंभीर आरोप
- कुरैशी समाज और मांस व्यापार : एक पारंपरिक संबंध
- वैधता के बावजूद उत्पीड़न
- मराठवाड़ा से उठती पीड़ा : किसानों पर भी असर
- अन्य वक्ताओं की चिंता
- प्रशासन की चुप्पी और कानून व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न
- न्याय की मांग : संविधान के मूल्यों की रक्षा हो
- निष्कर्ष : यह केवल एक समुदाय नहीं, पूरे समाज का सवाल है
लोकतंत्र में भय का माहौल
मुंबई जैसे प्रगतिशील और संवैधानिक मूल्यों पर आधारित शहर में अगर किसी समुदाय को उसके पारंपरिक व्यवसाय के चलते डराया, धमकाया और हमला किया जा रहा हो, तो यह न केवल कानून व्यवस्था के लिए चिंता का विषय है, बल्कि संविधान और समानता के अधिकारों पर भी सीधा आघात है। कुछ ऐसा ही हो रहा है कुरैशी समाज के साथ — जो परंपरागत रूप से मांस व्यापार और पशु परिवहन से जुड़ा हुआ है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में गंभीर आरोप
फेडरेशन ऑफ महाराष्ट्र मुस्लिम द्वारा मुंबई प्रेस क्लब में आयोजित एक महत्वपूर्ण प्रेस कॉन्फ्रेंस में जाने-माने मुस्लिम नेता महमूद दरियाबादी ने यह गंभीर आरोप लगाए कि :“पुलिस की मिलीभगत से तथाकथित ‘स्वयंभू गो रक्षक समूह’ कुरैशी समाज के पशु व्यापारियों और किसानों पर हमला कर रहे हैं। प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है, जिससे हिंसक तत्वों के हौसले बुलंद हैं।”
कुरैशी समाज और मांस व्यापार : एक पारंपरिक संबंध
महमूद दरियाबादी ने बताया कि कुरैशी समाज कई पीढ़ियों से पारंपरिक मांस व्यापार से जुड़ा रहा है। यह कार्य केवल एक व्यवसाय नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की कृषि आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न हिस्सा भी है। भैंसों और अन्य जानवरों का वैध परिवहन गांवों की आजीविका का आधार है। लेकिन वर्तमान में ये व्यवसाय अवैध हमलों, जबरन वसूली और डर के माहौल के कारण बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
वैधता के बावजूद उत्पीड़न
दरियाबादी ने स्पष्ट रूप से बताया कि जिन वाहनों से जानवरों का परिवहन किया जाता है, वे मोटर वाहन अधिनियम 1976 (संशोधित 2015) के अंतर्गत पूरी तरह वैध हैं। इसके बावजूद पुलिस और गो रक्षक मिलकर झूठी शिकायतें दर्ज कर वाहनों को जब्त कर रहे हैं, व्यापारियों को गिरफ्तार किया जा रहा है और कई बार जानलेवा हमले तक किए जा रहे हैं।
मराठवाड़ा से उठती पीड़ा : किसानों पर भी असर
प्रेस कांफ्रेंस में मराठवाड़ा के रफीक कुरैशी ने भी आवाज़ उठाई। उन्होंने कहा कि यह संकट केवल कुरैशी समाज का नहीं, बल्कि उन हजारों किसानों का भी है, जो अपने जानवरों को बेचकर जीविकोपार्जन करते हैं। जब जानवरों की खरीद-फरोख्त ही रुक गई है, तो किसानों की आय का स्रोत भी समाप्त हो गया है।
अन्य वक्ताओं की चिंता
इस अवसर पर एडवोकेट मजीद कुरैशी, फरीद शेख, जावेद कुरैशी, मुजीब शेख, आसिफ कुरैशी और अन्य वक्ताओं ने भी इस समस्या को गंभीर बताते हुए सरकार से त्वरित हस्तक्षेप और सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की। उन्होंने कहा कि यह स्थिति सांप्रदायिक सौहार्द, कानून का राज और मानवाधिकारों के विरुद्ध है।
प्रशासन की चुप्पी और कानून व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न
बार-बार शिकायतों के बावजूद स्थानीय प्रशासन और पुलिस की चुप्पी इस पूरे प्रकरण को और अधिक शक के घेरे में डाल रही है। क्या प्रशासन असामाजिक तत्वों के आगे बेबस हो चुका है? या कहीं न कहीं राजनीतिक संरक्षण इस हिंसा को बढ़ावा दे रहा है? इन सवालों का उत्तर अब सरकार को देना होगा।
न्याय की मांग : संविधान के मूल्यों की रक्षा हो
सभी वक्ताओं ने मिलकर यह मांग की कि सरकार:
- इन तथाकथित गो रक्षकों की पहचान करे और गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करे|
- वैध परिवहन करने वाले व्यापारियों और किसानों को संरक्षण प्रदान करे|
- पुलिस की मिलीभगत की निष्पक्ष जांच कराए|
- पीड़ितों को मुआवजा और न्याय सुनिश्चित किया जाए|
निष्कर्ष : यह केवल एक समुदाय नहीं, पूरे समाज का सवाल है
कुरैशी समाज की यह पीड़ा केवल एक जाति या वर्ग का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह भारत के धार्मिक सहिष्णुता, संवैधानिक अधिकारों और लोकतांत्रिक शासन की असल परीक्षा है। जिस देश में हर नागरिक को अपनी आजीविका चुनने का अधिकार है, वहां यदि किसी समूह को डर और हिंसा के बल पर व्यवसाय छोड़ने पर मजबूर किया जाए, तो यह पूरी व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह है।
सरकार को चाहिए कि वह इस मामले में त्वरित हस्तक्षेप करते हुए कानून व्यवस्था की रक्षा करे, ताकि महाराष्ट्र और देश की सांप्रदायिक सौहार्द की परंपरा अक्षुण्ण बनी रहे।
Also Read This – सतनवाड़ा मंडल में तिरंगा यात्रा हेतु कार्यकर्ता बैठक संपन्न