दिल्ली के पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन को लेकर बहुचर्चित PWD घोटाला मामले में आखिरकार CBI द्वारा क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने के बाद अदालत ने उन्हें राहत दे दी है। दिल्ली की एक विशेष अदालत ने सोमवार को इस रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए कहा कि कई वर्षों की जांच के बावजूद जैन या किसी अन्य आरोपी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है, जिससे भ्रष्ट्राचार निरोधक अधिनियम (POC Act) के तहत अपराध सिद्ध हो सके।
क्या था मामला?
यह मामला लोक निर्माण विभाग (PWD) में पेशेवरों की कथित रूप से अनुचित नियुक्ति और कुछ असंबंधित प्रोजेक्ट्स की फंडिंग से भुगतान किए जाने को लेकर दर्ज किया गया था। आरोप था कि कार्यप्रणाली में नियमों की अनदेखी हुई और सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया।
अदालत ने क्या कहा?
विशेष न्यायाधीश दिग विनय सिंह ने अपने फैसले में कहा: “जब जांच एजेंसी इतने लंबे समय तक जांच के बाद भी कोई आपराधिक साक्ष्य पेश नहीं कर सकी, तो आगे की कार्यवाही किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करेगी।”
न्यायाधीश ने आगे यह भी स्पष्ट किया कि: “हर वह निर्णय जो आधिकारिक पद पर रहते हुए नियमों का पालन नहीं करता, जरूरी नहीं कि वह POC अधिनियम के अंतर्गत अपराध हो। केवल कर्तव्य की उपेक्षा या अनुचित निष्पादन ही भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं आता जब तक कि कोई ठोस सबूत न हो।”
CBI की रिपोर्ट पर टिप्पणी
CBI ने अदालत में यह रिपोर्ट दायर करते हुए कहा कि उन्हें किसी भी आरोपी के खिलाफ भ्रष्टाचार या वित्तीय अनियमितताओं का कोई सबूत नहीं मिला, जिस आधार पर मुकदमा चलाया जा सके। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि अधिकांश निर्णय प्रशासनिक विवेक और कार्यशील प्रक्रियाओं के तहत लिए गए थे।
राजनीतिक और कानूनी महत्व
यह निर्णय आप (Aam Aadmi Party) के वरिष्ठ नेता सत्येंद्र जैन के लिए एक बड़ी राहत माना जा रहा है, जिन पर लंबे समय से विपक्ष भ्रष्टाचार के आरोप लगाता आ रहा था। कोर्ट के इस निर्णय से यह भी संकेत गया है कि सिर्फ प्रशासनिक निर्णयों की अनियमितता के आधार पर भ्रष्टाचार का केस नहीं बन सकता, जब तक कि उस पर स्पष्ट आपराधिक मंशा साबित न हो।
निष्कर्ष
यह फैसला एक उदाहरण है कि लंबी जांच प्रक्रिया के बाद भी यदि ठोस साक्ष्य नहीं हो, तो कानून का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए। सत्येंद्र जैन जैसे सार्वजनिक जीवन में सक्रिय व्यक्ति के लिए यह निर्णय न्याय की जीत के रूप में देखा जा रहा है।