Railway Ministery की लूट और भेदभाव नीति

Aanchalik Khabre
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Railway Ministery
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Railway Ministery धीरे धीरे देश के गरीबों को रेल से बाहर करने या उनके लिये अलग से रेल चलाने की योजना पर काम कर रही है

लगता है भारत सरकार(Railway Ministery) धीरे धीरे देश के गरीबों को रेल से बाहर करने या उनके लिये अलग से रेल चलाने की योजना पर काम कर रही है। जैसे नीति आयोग ने किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिये किसानों को खेती से हटाकर उनकी संख्या आधी करने का सुझाव दिया था। वैसे ही ट्रेन में यात्रियों की भीड़ कम करने के लिये साधारण और स्लीपर कोच की संख्या कम करके आम यात्रियों को रेल में यात्रा करने से रोकने का प्रयास होता दिख रहा है।

Railway Ministery
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अब आम यात्रियों को एसी का महंगा टिकट खरीदकर ही सफर करना संभव होगा।भारतीय रेल में कुछ नये बदलाव होते दिख रहे है। नये बदलाव में मेल, एक्सप्रेस, सुपर फ़ास्ट आदिसभी लंबी दूरी की यात्री ट्रेनों में जनरल और स्लीपर क्लास के कोच कम करके एसी कोच कीसंख्या बढाई जा रही है।

जनरल कोच की संख्या अभी 2 कोच तक सीमित की जा रही है और स्लीपर के चार से अधिक कोच कम किये जा रहे है और उसकी जगह एसी-3 के चार से अधिक कोच और एसी-2 के 1 या 2 कोच बढाये जा रहे है। नई हाई स्पीड ट्रेन में केवल एसी कोच की ही व्यवस्था बनाई जा रही है।

यात्री ट्रेन में एसी-1, एसी-2, एसी-3, स्लीपर क्लास और जनरल क्लास के मिलाकर 22 या 24 डिब्बे होते है। सामान्यत: जनरल के तीन, स्लीपर के सात, एसी-3 के छह, एसी-2 के दो, एसी-1 का एक, और इंजन, गार्ड और पेंट्री कार ऐसे कुल 22 डिब्बे होते है। उसकी जगह अब जनरल के दो, स्लीपर के दो, एसी-3 के 10, एसी-2 के 4, एसी-1 का एक और इंजिन, गार्ड और पेंट्री कार ऐसे कुल 22 डिब्बे रहेंगे। जनरल कोच में 103 और स्लीपर कोच में 72 सीटें होती है। वैसे इन डिब्बों में हमेशा क्षमता से ज्यादा भीड़ होती है।

स्लीपर कोच में कई यात्री निचे सोकर सफर करते है और जनरल कोच में क्षमता से देड-दो गुना अधिक यात्री सफर करते दिखते है। एक ट्रेन में 1300 के आसपास सीटें होती है। लेकिन अधिकतर ट्रेनों में 300-400 ज्यादा यात्री सफर करते है। एक ट्रेन में जनरल का एक और स्लीपर के पांच कोच कम करके एसी के कोच बढाने का मतलब है कि एक ट्रेन में जनरल के 103 और स्लीपर क्लास के 360 ऐसे कमसे कम 463 यात्रियों को एसी में सफर करने के लिये मजबूर किया जा रहा है।

इससे मजदूर, किसान और विद्यार्थियो को रेल प्रवास करना मुश्किल हो रहा है। चार साल पहले रेल्वे बोर्ड ने ऐसे किसी बदलाव से इंकार किया था। लेकिन रेल यात्री रेल बोर्ड का झूठ अनुभव कर रहे है। खोज करने पर रेल के उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम ऐसे सभी विभागों में यह बदलाव होते दिख रहे है।

इस बदलाव की खबरें आने के बाद जनरल और स्लीपर कोच की संख्या कम करने के संदर्भ में रेल मंत्रालय की नीति क्या है? Railway Ministery को पूछने पर उन्होंने मिलने या किसी भी प्रकार की जानकारी देने से इंकार कर दिया। इस बदलाव से यात्रियों की कितनी लूट हो रही है इसका अनुमान लगाने पर लूट की बडी तस्वीर उभरती है।

Railway Ministery लगातार किराये में बढ़ोतरी करती जा रही है

Railway Ministery लगातार किराये में बढ़ोतरी
Railway Ministery लगातार किराये में बढ़ोतरी

एसी-3 का किराया स्लीपर क्लास से लगभग ढाई गुना से अधिक होता है और जनरलक्लास से लगभग पांच गुना अधिक होता है। उदाहरण के लिये अगर स्लीपर का टिकट 400 रुपये है तो 3 एसी का टिकट 1000 रुपये से अधिक होता है। एक प्रवासी को 12 घंटे के सफर के लिये
600 रुपये अधिक देने होंगे। और एक ट्रेन में 360 स्लीपर कोच यात्रियों को 360 गुना 600 याने हरदिन कुल 2 लाख 16 हजार रुपये ज्यादा देने होंगे। और जनरल कोच प्रवासियों को 103 गुना 800 याने हरदिन कमसे कम 82 हजार रुपये ज्यादा देने होंगे। अर्थात एक ट्रेन में जनरल और स्लीपर के कोच की संख्या कम कम करके कमसे कम 463 यात्रियों को रेल में यात्रा करने से रोका जा रहा है या महंगा टिकट लेकर सफर करने के लिये मजबूर किया जा रहा है। और यात्रियों से कुल मिलाकर 3 लाख रुपयों से ज्यादा किराया वसूला जा रहा है।

इसके अलावा तत्काल, प्रीमियम तत्काल, डायनेमिक और फ्लेक्सी टिकटों के नामपर भी यात्रियों पर आर्थिक बोजा डाला जा रहा है। प्रश्न एक ट्रेन का नही है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार भारत में रोजाना 13452 यात्री ट्रेनें चलती है और 2.4 करोड यात्री सफर करते है। अगर इस तरह का बदलाव केवल 10 प्रतिशत ट्रेन में मानकर हिसाब करने पर यात्रियों को हररोज लगभग 40.4 करोड रुपयें और हरसाल लगभग 14 हजार 730 करोड रुपये ज्यादा देने होंगे। प्रत्यक्ष में यह आंकडा अनुमान से कई अधिक हो सकता है। यह रेल विभाग द्वारा आम यात्रियों की लूट है। लूट की सही जानकारी रेल मंत्रालय ही दे सकता है। Railway Ministery के अनुसार वित्त वर्ष 2023 में 2.40 लाख करोड रुपये का रिकॉर्ड राजस्व कमाया है।
जो पिछले वर्ष से लगभग 49 हजार करोड रुपये अधिक है। केवल यात्रियों से 63300 करोड का रिकार्ड राजस्व कमाया है। जो पिछले वर्ष से लगभग 24086 करोड रुपये से अधिक है। भारत सरकार ने 9 साल पहले रेल में सुधार के बडी बडी घोषणाऐं की थी।

ट्रेन की भीड़, ट्रेन की देरी, ट्रेन की गंदगी, पिने का अस्वच्छ पानी आदि समस्याओं को दूर करके सबको कंफर्म रिझर्वेशन, वेटिंग यात्रियोंके लिये दूसरी स्वतंत्र ट्रेन की व्यवस्था, ट्रेन समय पर चलाना, ट्रेन में सफाई आदी आश्वासन दिये थे। लेकिन इन विषयों पर कोई सुधार नही हुआ बल्कि समस्याऐं और यात्रियों की दिक्कते अधिक बढ गई है।

Indian Railway में सुधार केवल अमीरों के के लिये होते दिख रहे है

वरिष्ठ नागरिकों की रियायतें खत्म कर दी गई है। लंबी दूरी की ट्रेन में टिकट की मांग बढने पर डायनेमिक या फ्लेक्सी किराया लगाकर टिकटों की किमत बढाई गई है। स्टेशन पर भीड़ को नियंत्रित करने के नामपर त्यौहारों में प्लेटफॉर्म टिकट बढाये जाते है। बोतल बंद पानी की बिक्री
बढाने के लिये रेल्वे स्टेशन पर नल पोस्ट कम किये गये है।

Railway Ministery में सुधार
Railway Ministery में सुधार

रेल स्टेशनों पर Railway Ministery द्वारा उच्च श्रेणी प्रतीक्षालय में रुकने के लिये भी किराया वसूला जाता है। सामान्य यात्रियों के लिये स्वच्छ खाना उपलब्ध कराने के लिये कोई कदम नही उठाये गये। भारतीय रेल में सुधार केवल अमीरों के के लिये होते दिख रहे है। नये रेल ट्रैक बनाये जा रहे है।

राजधानी, शताब्दी, दुरंतो, वंदे भारत जैसी हाई स्पीड ट्रेनों की संख्या बढाई जा रही है। जिसमें केवल एसी कोच ही होंगे। उसका किराया भी ज्यादा होगा। अब मेल, एक्स्प्रेस, सुपर फास्ट ट्रेन में भी स्लीपर कोच कम किये जा रहे है।

साधारण यात्रियों के लिये उसमें भी कोई स्थान नही होगा। Railway Ministery  में सुधार के नाम पर ट्रेन में आम यात्रियों को सफर करने से रोकना चाहती है या एसी में सफर करने के लिये मजबूर करना चाहती है। जिससे यात्रियों को ज्यादा किराया देना पडेगा।

अब साधारण यात्रियों की दिक्कते बढने पर रेल विभाग अलग से साधारण ट्रेन चलाने की बात कर रही है। अगर ऐसा होता है तो यात्रियों की लूट के साथ साथ यह समाज में आर्थिक और सामाजिक आधार पर भेदभाव करना होगा।

Railway Ministery सुधार के नामपर आम लोगों को लूट कर अमीरों को सुविधाऐं पहुंचा रही है। इससे यह स्पष्ट है कि सरकार देश के गरीबों को रेल में सफर करने से रोकना चाहती है या उन्हे रेल से बाहर करना चाहती है। अब वह रेल में भी अमीरों और गरीबों में भेदभाव करना चाहती है। सरकार भलेही इंकार कर रही है, लेकिन वह रेल को निजी हाथों में सौपने की दिशामें आगे बढ रही है।

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