हमारे आपके परिवारों से ही बनता है राष्ट्र ? पर क्या आने वाली पीढियां कर पायेगी एक सशक्त भारत का निर्माण ?

Aanchalik Khabre
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indipendence Day

आज हम 78 वे स्वतंत्रता दिवस की दहलीज पर खड़े है, हम गुलामी के दौर से औपनिवेशिक वातावरण से कोसों दूर निकल आये है और हमारे सपनों का देश आज साकार हो रहा है, देश का युवा सक्रिय रूप से देश निर्माण में अपनी भागीदारी निभा रहा है, राजनीती, युवाओं को चाहे कहीं भी खींचना चाहे पर आज का युवा राजनितिक रूप से परिपक़्व हो रहा है। वह राजीनीतिक ”हिप्पोक्रेसी की सीमा” को समझता है।छदम और वास्तविक पोलिटिकल कांसेप्ट को समझता है।एजेंडा और प्रोपेगंडा को जानता है और उनको हवा देने वाले माध्यमों को पहचान लेता है।बुद्धजीवियों के गढ़े गए नैरेटिव में मूलभूत खामियों को खंगाल लेता है। परिपक़्वता के साथ-साथ युवाओं में राजनीतिक सूझ बुझ भी दिखती है। वह अपना गुस्सा, आक्रोश, राजनीति के ऑफेन्स कल्चर के उलट मेमे कल्चर में व्यक्त करते है। विरोध और असहमति के विरुद्ध सहिष्णु रहते है साथ ही साथ अपने विचारों से विचलित नहीं होते।निष्कर्षतः आज का युवा राष्ट्र और समाज की स्पष्ट तस्वीर देखता है। सार्वजनिक मंचो के विचार विमर्श से जुड़ता है। राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों से खुद को अपडेट रखता है।जागरूकता और परिपक़्वता की इस प्रक्रिया में सबसे अहम् यह है की राष्ट्र की भावी तस्वीर कैसी हो ? राष्ट्र की निर्माण-प्रक्रिया में उसकी भूमिका क्या हो ? ये सभी विचार आज के युवाओं की प्रेणनाओँ का हिस्सा है।

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युवा के तौर पर राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी का भाव मै भी महसूस करता हूँ।यद्दपि मै राजनीती या सार्वजनिक जीवन से जुड़ने का इच्छुक नहीं हूँ। तब मेरी राष्ट्र निर्माण में क्या भूमिका हो? हालाकिं राष्ट्र सेवा किसी क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं है इसकी परिधि असीमित है परन्तु राष्ट्र निर्माण एक सुन्योजित प्रकिया है और मेरा मानना है की बड़े परिदृश्य में राष्ट्र निर्माण की तस्वीर धुंधली हो जाती है। वास्तविक राष्ट्र और समाज की तस्वीर तब उभर कर आती है जब हम इसको इसकी सूक्ष्मता से देखते है।किसी भी राष्ट्र की सुक्ष्मतम इकाई इसके परिवारों में बसती है। हमारे-आपके परिवारों में। परिवारों में ही वो समाज बसता है जिसे हम जीना चाहते, थामना चाहते है , बदलना चाहते है और परिवारों में ही राष्ट्र-निर्माण का चरखा चलता है। हमारे दादा-दादी, माता-पिता, हम और हमारी आने वाली पीढ़ी के बीच का अंतर्संबध ही राष्ट्र निर्माण का चरखा है।हम अपने बुजर्गों से लिए संस्कार, अनुभव, सीख अपनी आने वाली पीढ़ियों को देते हैं।

परिवार, राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया का सबसे व्यावहारिक आयाम है क्यूंकि इसमें आपसी अन्तर्सम्बन्धों में प्यार ,आत्मीयता,विश्वास,भरोसा,कर्त्तव्य,त्याग,समपर्ण वह सभी आध्यात्मिक पक्ष शामिल है जिनसे मानव ऊँचा उठता है और दूसरी तरफ परिवार में कोई भी बेवजह राजनीतिक गतिरोध भी नहीं है, असहमति अक्सर आत्मीयता के आगे घुटने टेक देती है, स्वार्थ अक्सर कर्त्तव्य के आगे हार जाता है। गाँधी भी जब व्यक्ति के अधिकारों से ऊपर उसके कर्तव्यों को रखते है तब वे राष्ट्र निर्माण के इसी व्यवहारिक पक्ष को बल देते है।

शायद उनको शंका थी की कहीं अधिकारों को उन्मुख समाज स्वार्थ को संस्कारों में न उतार ले, और एक दृष्टि से हुआ भी वही, परिवारों के स्वरुप छोटे हो गए है, अपनों से अंतरंगता, आत्मीयता, अपनत्व की जगह अब खोखली व्यक्तिगत इच्छा, आकांक्षाओ ने ली है, जिसको कभी इंडिविजुअल फ्रीडम तो कभी इंडिविजुअल स्पेस का नाम दे दिया जाता है, कभी हमारे परिवार में अक्सर वित्तीय रूप से कमजोर स्वजनों की सहायता की जाती थी, यह गाँधी के आध्यात्मिक समाजवाद(जो हमारे राष्ट्र जीवन का परम आदर्श है ) का जीवित पक्ष था।

गाँधी का राष्ट्र की अंतरात्मा में यही विश्वास हमे साम्राज्य वाद और मार्क्सवाद के दौर मे संयमित और विवेकशील बनाये रखा, गाँधी का विश्वास था अधिकारों की चाह में यह समाज अपने कर्तव्यों को नहीं भूलेगा, पर आज जब स्तिथि थोड़ी विपरीत है, समाज और राष्ट्र की तस्वीर पूरी धुंधली हो गयी है, सोशल मीडिया की चकाचौंध में हमारे परिवार टूटते जा रहे है और राष्ट्र की नींव कमजोर हो रही है ऐसे में जरुरत है की हम वापस राष्ट्र की सबसे स्पष्ट तस्वीर , सबसे पहली इकाई – वापस हमारे परिवारों की ओर मुड़े और राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया से जुड़े. हम जैसे राष्ट्र की कल्पना को साकार करना चाहते है वेसा ही आकार हमे अपने परिवारों को भी देना होगा

इसी तरह स्त्रियों की स्वच्छंदता आत्मनिर्भरता और उनकी सुरक्षा की वकालत हम राष्ट्र जीवन में करते है उसकी वास्तविक नींव भी हमारे अपने परिवारों से बनती है। युवा के तौर पर हमारी जिम्मेदारी है की हम वृद्धों, स्त्रियों, बच्चों से सम्बंधित विषयों के प्रति संवेदशीलता के साथ जुड़े एवं जनरेशन गैप और परिवारों के कम होते आकार जैसी नवीन समस्यायों के उपाय तलाशें।यह सब राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में अवरोध है।हमे इन अवरोधों को पाटना होगा अगर हम राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को सतत और अनवरत चलना देना चाहते हैं।

अंततः हमारे परिवारों से ही राष्ट्र निर्माण का रास्ता तय होता है और हम यह कभी न भूले की राष्ट्र की कल की तस्वीर हमारे आज के परिवारों में ही हमारी अगली पीढ़ी के रूप में बसती है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने इसी संदर्भ में कहा है की एक सुंदर एवं मूल्यवान राष्ट्र बनाने में माता-पिता और शिक्षक का अहम् योगदान होता है। विवेकानंद राष्ट्र को एक परिवार की तरह देखते थे इसलिए राष्ट्र के निर्माता के रूप में युवा शक्ति पर उनकी गहरी आस्था थी। अतः युवा राष्ट्र निर्माण में अपनी सक्रिय भूमिका सुनिश्चित करके ही हमारे राष्ट्र के रूप में अस्तित्व को सारगर्भित करेगें.

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