प्रमोद मिश्रा
चित्रकूट उत्तर प्रदेश । जिले के मऊ तहसील अंतर्गत नेशनल हाईवे 76 से लगा हुआ मऊ ब्लाक कार्यालय मुख्य मार्ग पर स्थित है। पीडब्ल्यूडी द्वारा दो पुलिया लगाई गई हैं जिसमें से नेशनल हाईवे का पानी निकलता है। ब्लॉक के मुख्य कार्यालय में घुसते हुए यह पुलिया दो जगह से टूट गई है वह भी ज्यादा जगह ले कर के, जिसके कारण आए दिन ब्लॉक में आने वाले अधिकारियो, कर्मचारियों के वाहनों के अलावा जनता के वाहन भी इसमें फस जाते हैं.
बहुत से दो पहिया वाहन चालक भी इनमे गिरकर क्षतिग्रस्त और चोटिल हो गए। नगर पंचायत का दर्जा मऊ को मिलना था प्रथम बार इसलिए 8 महीना से यहां पर वैसे भी सारी रोड और नालियां एक चुनौती बन गई हैं ।और ब्लॉक के अंदर अभी बहुत सारा पैसा सरकार ने दिया था ब्लॉक के अंदर पानी निकासी की व्यवस्था के लिए नाली बनाई गई जिसमें पाटन लगाए गए ब्लॉक के ही कर्मचारी और ठेकेदार इसको बनवाते हैं लेकिन नाली के पाटन जो कि एक काफी मोटाई से बना हुआ है और वह एक दो पहिया चार पहिया वाहन के निकलन से टूट जाता है। उसमें गुणवत्ता का पता चलता है.
ब्लॉक में कुछ प्रधानों कर्मचारियों से पूछने पर भाई लोगों ने बताया इतना कमजोर इसलिए है कि हर कर्मचारी प्रधान बताते हैं 48 ,50 प्रतिशत कमीशन लिया जाता है।ब्लॉक में बहुत सी योजनाएं आती हैं जो कि पात्र को मिलना चाहिए उनको नहीं मिलती हैं जबकि सरकार यह व्यवस्था करती है गांव में कोई आवास के लिए ना बचे इसलिए वहां का सचिव प्रमाण पत्र दे कि हमारे यहां कोई पात्र आवास के लिए नहीं बचा है।लेकिन उसमें भी कई हिला वाली करते हुए अच्छे से कोई पारदर्शिता से काम नहीं होता है ।जिससे बहुत से पात्र गरीब अभी भी मकानों के लिए तरस रहे हैं ।
और मुख्यतया इस समय कमीशन खोरी पर निर्माण कार्य ज्यादा बत्तर हो रहे हैं इसलिए सरकार को चाहिए कि ऊन कर्मचारीयों अधिकारियों को जो कमीशन लेते हैं उनका वेतन और थोड़ा बढ़ा दे और कमीशन लेना बंद कर दे तो कम से कम 100 परसेंट योजना का लाभ तो लोगों को मिले। लेकिन ऐसी समस्या लिखी जा रही हैं कोई सुनने वाला नहीं है कोई कुछ करने वाला नहीं है कलम का सिपाही तो लिखता रहता है अधिकारी पलट कर रख देते हैं या देख कर करके डिलीट कर देते हैं ।इस समय ब्लॉक की एक योजना व्यवस्था है ।गौशाला में मऊ ब्लाक में इस समय पूरी 56 ग्राम पंचायतों में गौशालाएं बनी है ।सभी गौशालाओं में गोवंश बंधे हुए हैं।
इसके बावजूद गांव के लोग फिर से अपने निरर्थक पशु छोड़ दिए हैं और सार्थक पशु तो बांधे रहते हैं निरर्थक को छोड़ देते हैं जो आगे चलकर फिर बड़ी संख्या में ग्राम प्रधानों के लिए चुनौती बनेंगे। जिस से क्या होगा भूसा का पैसा सरकार देती है समय से देती है या अधिकारी कर्मचारी लेट कराते आते हैं। इस व्यवस्था का भी अभी कोई पारदर्शिता नहीं है जून के महीने में फरवरी का पैसा आता है। दूसरी बात पशु का इतना बडा पेट पशु बहुत ज्यादा खाते हैं पशु को चाहिए तो बहुत ज्यादा पर , ना दो तो 4 दिन भूखा भी रहेगा लेकिन इस पाप के भागीदार कौन होंगे। अभी 2 महीने पहले मऊ तहसील में पशु पकड़ने वाली 2 गाड़ियां आई हैं जो कि खड़ी हैं ।उनसे कोई पशु की पकड़ने, धरने की कोई व्यवस्था नहीं की जा रही है।