RJS फैमिली ने, दी आवाज,
सकारात्मक बने, हमारा समाज- पार्थ सारथी थपलियाल
सकारात्मकता——— जीवन में दो तरह के विचार आते हैं- सकारात्मक और नकारात्मक विचार। सकारात्मक वे विचार हैं, जो जीवन में खुशी, उमंग और आनंद लाते हैं।और जब व्यक्ति आनंद महसूस करता है तो उसके घर में भी खुशी बनी रहती है। उसके पास-पड़ोस और जान पहचान वालों में उसकी चर्चा होती है. वह व्यक्ति समाज का विश्वसनीय बन जाता है. ऐसे व्यक्ति के कार्य व्यवहार से समाज में अच्छे काम करने का भाव बढ़ता है, जिससे समाज का कल्याण होता है- यह सकारात्मकता है .दया ,करुणा ,अहिंसा, सहायता वे आचरण हैं, जो व्यक्ति अपनी ओर से दूसरों के प्रति करता है ।संविधान आपको कानून के माध्यम से शक्ति देता है, लेकिन आपका आचार-विचार अपना है जो मानवीय आधार पर आप दूसरों के लिए करते हैं. रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है ” परहित सरिस, धर्म नहिं भाई, परपीड़ा सम नहिं अधमाई” अर्थात दूसरों के हित करने जैसा कोई धर्म नहीं है ,और दूसरों को कष्ट पहुंचाने जैसा कोई नीच कर्म नहीं है. यही बात महाभारत के रचयिता वेदव्यास के वेदों और पुराणों के अध्ययन लेखन के बाद का सार है “अष्टादश पुराणेषु व्यास सत्य वचन द्वयं, परोपकाराय पुण्याय पापय परपीडनम.”
18 पुराणों को पढ़ने के बाद यह लगता है वेदव्यास के वचन ही सब कुछ हैं। वह दो वचन हैं- दूसरों का उपकार करना पुण्य है और दूसरों को पीड़ा पहुंचाना पाप है .
इस चिंतन से व्यक्ति में चेतना स्वयं जागृत होती है ,और व्यक्ति यह सोचने लगता है मैं कौन हूं ?कहां से आया हूं? मैं अंत में कहां जाऊंगा? जीवन का उद्देश्य क्या है? क्या मैं किसी की मदद कर सकता हूं? तभी यह ज्ञान प्राप्त होता है- कर भला, हो भला, अंत भले का भला.
लक्ष्य –मनुष्य की इंद्रियां उसे विचलित करने की ताकत रखती हैं .अगर हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करना शुरू कर दें तो बुरे विचार आने ही बंद हो जाएंगे .नफरत, क्रोध, ईर्ष्या लोभ, लालच आदि मनुष्य के वे गुण हैं जो उसे अच्छा इंसान बनाने से रोकते हैं। प्रत्येक मनुष्य को जीवन को बेहतर बनाने का लक्षित प्रयास करना चाहिए पर ध्यान रहे हमने सकारात्मकता को छोड़ा तो नहीं है ।यही शिक्षा श्री कृष्ण ने अर्जुन को दी थी और कहा था “मामअनुस्मर युद्धच” अर्जुन मुझे याद रखते हुए युद्ध करो.
नकारात्मकता —
नकारात्मक विचार जब हावी हो जाता है, तो व्यक्ति जीवन भर रोता रहता है । तमाम तरह की बीमारियां उसे घेर लेती हैं ।आदमी छल से, बल से, कपट से, ईर्ष्या से दूसरों को लताड़ना चाहता है गिराना चाहता है ।यह उसका नकारात्मक दृष्टिकोण है। मनुष्य को विचारों और भावनाओं का अंतर समझने का प्रयास करना चाहिए। विचारों के प्रति हमारी जो प्रतिक्रिया होती है वह भावना को प्रकट करती है ।यह महत्वपूर्ण स्थान है जहां पर व्यक्ति अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए निर्णय करता है । जो व्यक्ति नकारात्मक सोच का होगा, वह ईर्ष्या-द्वेष-घृणा और असंयमित भाषण करने वाला होगा ।ऐसा इंसान उदार नहीं होता ।उस व्यक्ति का हर विचार “न” से शुरू होगा .ऐसे व्यक्ति के जीवन में कभी सफलताएं नहीं मिलेंगी. उत्साह ,उमंग ,आनंद और खुशी उससे दूर ही रहते हैं. ऐसे व्यक्ति को यश नहीं मिल पाता .यह नकारात्मकता है. सकारात्मक विचार—
प्रकृति भी भावनाएं समझती हैं। आप सकारात्मक जीवन बना लिए हैं तो नकारात्मक विचार मन में ही नहीं आएंगे। ऐसा व्यक्ति किसी काम को करने का विचार प्रकट करता है तो उसके जीवन की सफलता के द्वार एक के बाद एक खुलते जाते हैं ।दृढ़ निश्चय करने वाले व्यक्ति के सामने तमाम बाधाएं दूर हो जाती हैं । एक बार हॉस्पिटल में एक मरीज के तीमारदार से बात कर रहा था ।वह बार-बार अपने मरीज के बारे में बताने लगा । मेरे पिताजी कल से एडमिट है दो बार सिर्फ दूध पिया है । पता नहीं बच पाएंगे या नहीं । यह नकारात्मक सोच है ।आपने निराशा का वातावरण बना दिया है ।
दृष्टिकोण—-अपना दृष्टिकोण बदलिए ।जिस भी क्षेत्र में काम कर रहे हैं ।उसकी समस्याओं को समझें, और फिर कहें हां मैं इसे कर सकता हूं ।आपका ये वाक्य आपकी ताकत बन जाएगा। ईश्वर पर विश्वास—–
आप प्रतिदिन मन में विचार करें ,ईश्वर ने मुझे अच्छे काम करने के लिए भेजा है ।ईश्वर मुझे अच्छे काम करने की शक्ति दो।
आशावान बनें—
भाग्य को दोष ना दें .आपका भाग्य दूसरा कैसे बना सकता है ? आप अपना भाग्य स्वयं बनाएं । भाग्य हाथों की रेखाओं से नहीं ,काम करने से बनता है। भाग्य तो उनका भी बनता है जिनके दोनों हाथ नहीं होते हैं। मैथिली शरण गुप्त की कविता याद रखें “नर हो न निराश करो मन को ,कुछ काम करो कुछ काम करो” .
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो, समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो ।कुछ तो उपयुक्त करो तन को, नर हो ना निराश करो मन को।
अच्छी संगत करें—–
जीवन में निकम्मे , निठल्ले, लड़ाकू ,झगड़ालू ,आलसी, धोखेबाज और मूर्ख लोगों का साथ करोगे तो ना चाहते हुए भी आप भी कुतर्क करने वाले बन जाओगे। संगति का ध्यान रखें । कोयले के गोदाम में काम करने वाले प्रबंधक पर भी कहीं न कहीं कालिख लग जाती है।
आत्मविश्वासी बनें ——जो व्यक्ति स्वयं पर विश्वास नहीं करता, वह ईश्वर पर भी दिखावे का विश्वास करता है। आशावान बनिए, इच्छा शक्ति को मजबूत कीजिए। फिर अपने पर विश्वास करना स्वयं आ जाएगा ।ईश्वर उनकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं। उदारता और उच्च विचार ग्रहण करें——
सकारात्मक सोच व्यक्ति को वैचारिक उदारता और उच्चता दिलाती है। उदारता और उच्चता किसी वीरता से कम नहीं है ।आपने देखा होगा समाज में वीरों का, विद्वानों का, समाज सेवियों और महान विभूति का सम्मान होता है ।कायर, डरपोक ,मूर्ख और धुर्त लोगों का सम्मान नहीं होता है ।
दृढ़ संकल्प———
व्यक्ति लक्ष्य को पाने के लिए दृढ़ संकल्प कर लेता है , तब व्यक्ति में ईश्वरीय शक्ति स्वयं आ जाती है। दिव्यांग महिला अरुणिमा सिन्हा ने
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने में सफलता पाई।इसके लिए उन्होंने दृढ़-संकल्प किया था। मानसिक शांति —–जीवन में समस्याएं आती रहती हैं। समस्या का हल भी समस्या में ही होता है ।शांत मन से उस हल को ढूंढा जा सकता है। शांत पानी में आप अपना प्रतिबिंब देख सकते हैं। उबलते पानी में नहीं। समय के अनुरुप सद्विचार————- दृष्टिकोण बदलिए .जंग लगे औजारों से सफल ऑपरेशन नहीं होगा। दरिद्र विचार रखो और महान बन जाओ यह संभव नहीं है ।कुछ लोग अनाचार ,दुराचार और भ्रष्टाचार से फलते- फूलते नजर आते हैं ।लेकिन वे अपयश वाला जीवन जीते हैं। भारत के भगोड़े तथा अनेक राजनीतिक लोग अथाह सम्पत्ति के मालिक होकर भी अपयश का जीवन भोग रहे हैं । क्या उनका जीवन अनुकरणीय है?
कुछ बातें ध्यान रखने योग्य है —————–1.आपकी दैहिक भाषा आत्मविश्वास पूर्ण हो।
2.कार्य करते समय विवेक का इस्तेमाल करें .
3.अपनी क्षमता को बढ़ाएं प्रदर्शन न करें।
4. योजना बनाते समय पैनी नजर रखें।
5. शक्ति मितव्ययिता, सत्यनिष्ठा और आत्मविश्वास सफलता की कुंजी है ।
6.जिस काम में लगें, ये सोचें कि यह तो होना ही है ।
7.किसी भी मामले में अपने से बड़ों को सम्मान दें।
8. आपके चेहरे की मुस्कुराहट आपके लिए सफलता की द्वार खोलती है.
9. वाणी की मधुरता आपके व्यक्तित्व की परिचायक होती है .बोलने में विनम्र रहें।
10. गुस्सा किसी भी इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन है. 11.स्वयं को विवादों से बचाएं ,अहंकार से बचें.
सकारात्मक राष्ट्र के लिए उपहार ————सकारात्मक सोच- व्यक्ति, परिवार, कुटुंब ,समाज और राष्ट्र के लिए एक महान उपहार है. भारत में विभिन्न जाति ,धर्म ,संप्रदाय ,भाषा और सोच के लोग रहते हैं. उनमें सकारात्मक सोच स्वभाव के तौर पर स्वीकार हो जाए, तो नफरत ,इर्ष्या, द्वेष सब समाप्त हो जाएगा। ईश्वर हमारी सहायता के लिए तैयार है। हम केवल सकारात्मकता को अपने जीवन का अंग बनाने का संकल्प कर लें।
निवेदक- RJS स्टार पार्थ सारथी थपलियाल, वरिष्ठ प्रसारणकर्मी,999936641व समस्त टीम RJS(राम-जानकी संस्थान नई दिल्ली-43)9811705015.