प्रस्तावना: एक विरासत, जो सिर्फ रक्त से नहीं, आत्मबल से बनती है:
भारतीय इतिहास में अनेक महान योद्धाओं ने जन्म लिया है, लेकिन जिनकी वीरता धर्म की रक्षा, संस्कृति के सम्मान और राष्ट्रहित के लिए सर्वोच्च बलिदान बन गई हो, ऐसे नाम विरले ही मिलते हैं। Sambha Ji Maharaj, जो कि Chhatrapati Shiva Ji Maharaj के पुत्र और उत्तराधिकारी थे, उन्हीं असाधारण योद्धाओं में से एक थे। उन्होंने अपने अल्पकालीन जीवन में न केवल तलवार से युद्ध लड़ा, बल्कि आत्मा से विचारधारा की भी रक्षा की।
उनका जीवन केवल एक साम्राज्य के युवराज का नहीं था, बल्कि एक विचारशील, सांस्कृतिक रूप से समर्पित, साहसी और अत्यंत जागरूक राष्ट्रसेवक का था। जब पूरा देश मुगल आक्रांताओं से त्रस्त था और धर्म परिवर्तन की आँधी तेज हो रही थी, तब Sambha Ji Maharaj ने अपना सब कुछ न्योछावर करके स्वाभिमान की रक्षा की। उनके बलिदान ने आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाया कि सच्चा स्वराज्य तलवार से नहीं, बल्कि आत्मबल से प्राप्त होता है।
Sambha Ji Maharaj का जन्म, शिक्षा और बाल्यकाल: एक योद्धा की नींव:
Sambha Ji Maharaj का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर किले में हुआ था। वे Chhatrapati Shiva Ji Maharaj और साईबाई के पुत्र थे। उनका बचपन विलासिता में नहीं, बल्कि अनुशासन और राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत माहौल में बीता। उनकी परवरिश में सबसे प्रमुख भूमिका माँ साईबाई और दादी जीजाबाई ने निभाई, जिन्होंने उन्हें आत्मसम्मान, धर्मनिष्ठा और वीरता का पाठ पढ़ाया।
शैक्षिक दृष्टि से Sambha Ji Maharaj एक विलक्षण प्रतिभा थे। वे संस्कृत, मराठी, फारसी और अरबी भाषा में पारंगत थे। उन्होंने वेद, पुराण, राजनीति और सैन्य नीति का गहन अध्ययन किया। कहा जाता है कि उनकी स्मरणशक्ति इतनी प्रबल थी कि वे एक बार पढ़ी हुई श्लोकों की पंक्तियाँ बिना दोहराए याद कर लेते थे।
उन्होंने “बुद्धभूषण” नामक संस्कृत ग्रंथ की रचना की, जिसमें नीति, धर्म और शासन व्यवस्था का गहन विवेचन है। बाल्यकाल में ही उनमें विचारशीलता, नेतृत्व क्षमता और स्वराज्य के प्रति समर्पण की भावना अंकुरित हो चुकी थी, जो भविष्य में एक महान राजा के रूप में फलीभूत हुई।
Sambha Ji Maharaj की विचारधारा: तलवार के साथ कलम का भी बल:
अक्सर राजकुमार युद्धकला में दक्ष होते हैं, लेकिन Sambha Ji Maharaj उन विरले योद्धाओं में से थे, जिनके हाथ में तलवार भी थी और विचारों में कलम भी। वे केवल रणभूमि के सेनापति नहीं, बल्कि विचारों के भी सम्राट थे। उन्होंने राज्य संचालन को केवल शक्ति प्रदर्शन तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसमें संस्कृति, न्याय और लोकहित को समाहित किया।
Sambha Ji Maharaj की विचारधारा धर्मनिष्ठ और राष्ट्रवादी थी। वे मानते थे कि एक राष्ट्र तभी सुरक्षित रह सकता है जब उसकी संस्कृति जीवित हो। इसीलिए उन्होंने साहित्य, संगीत और शिक्षा को भी राज्य का आधार बनाया। उन्होंने बुद्धभूषण में नीति, धार्मिक सहिष्णुता और वीरता को एक साथ जोड़ा।
उनकी एक बड़ी विशेषता यह थी कि वे कट्टर नहीं थे। उन्होंने कभी भी मुस्लिम प्रजा या सैनिकों के प्रति भेदभाव नहीं किया। बल्कि उन्होंने अपने शत्रु मुगलों की तुलना में अधिक धार्मिक सहिष्णुता दिखाई। यही कारण था कि उनका राज्य न केवल हिन्दुओं में, बल्कि सभी वर्गों में सम्मानित रहा।
शिवाजी की मृत्यु और Sambha Ji Maharaj की सत्ता संघर्ष में जीत:
1680 में जब Chhatrapati Shiva Ji Maharaj का स्वर्गवास हुआ, तब मराठा साम्राज्य में सत्ता को लेकर गहरा संकट उत्पन्न हुआ। Sambha Ji Maharaj का सौतेला भाई राजाराम और उसकी माँ सोयराबाई ने उन्हें गद्दी से दूर रखने के लिए षड्यंत्र रच डाला। लेकिन Sambha Ji Maharaj ने अपने बुद्धिमत्ता, युद्ध कौशल और राजनीतिक समझ से इन सभी षड्यंत्रों को विफल कर दिया।
गद्दी पर बैठने के बाद भी Sambha Ji Maharaj ने बदले की भावना से शासन नहीं किया। उन्होंने राजाराम और उनके समर्थकों को क्षमा कर दिया। यह दिखाता है कि वे केवल विजेता नहीं थे, बल्कि एक परिपक्व और नीति-संपन्न शासक भी थे।
उन्होंने रायगढ़ किले से शासन आरंभ किया और राज्य की सीमाओं की रक्षा को प्राथमिकता दी। उनका ये शासनकाल कठिनाइयों से भरा रहा, क्योंकि औरंगजेब ने मराठों को समूल नष्ट करने का संकल्प ले लिया था। Sambha Ji Maharaj ने इस समय में न केवल राज्य की रक्षा की, बल्कि उसकी सीमाओं को भी विस्तार दिया।
मुगलों के विरुद्ध Sambha Ji Maharaj की वीरता:
औरंगजेब ने Sambha Ji Maharaj को समाप्त करने के लिए दक्षिण में अपने सभी सेनापतियों को लगाया। इसके बावजूद Sambha Ji ने मुगलों को अनेक युद्धों में पराजित किया। वे लगभग आठ वर्षों तक मुगलों के विरुद्ध लगातार युद्ध करते रहे, जिनमें उन्होंने 120 से अधिक सफल लड़ाइयाँ लड़ीं।
उन्होंने कोंकण, कर्नाटक और गोवा के क्षेत्रों में मुगलों और उनके सहयोगियों से वीरता से लड़ा। Sambha Ji Maharaj की रणनीति “गुरिल्ला युद्ध” से कहीं आगे थी। वे योजनाबद्ध ढंग से शत्रु की आपूर्ति लाइनों को काटते और किलों को बार-बार जीतते और बचाते रहे।
उनकी सेना सीमित संसाधनों के बावजूद भी अनुशासित, उत्साही और राष्ट्रप्रेम से भरी हुई थी। Sambha Ji ने दिखा दिया कि एक सच्चे राष्ट्रनायक की पहचान युद्धों में विजय से नहीं, बल्कि आत्मबल और संगठन क्षमता से होती है।
Sambha Ji Maharaj और धर्म रक्षा का संघर्ष:
Sambha Ji Maharaj का सबसे महान कार्य था—धर्म और संस्कृति की रक्षा। जब औरंगजेब ने काशी के राजा की पुत्री का बलात् धर्मांतरण किया, तब Sambha Ji Maharaj ने उसे बचाकर सुरक्षित घर पहुंचाया। यह घटना औरंगजेब के अहंकार को गहरा आघात देने वाली थी।
इसके बाद औरंगजेब ने Sambha Ji Maharaj को पकड़ने का विशेष आदेश जारी किया। दुर्भाग्यवश, 1689 में एक गद्दार की सूचना पर Sambha Ji Maharaj और उनके मित्र कविकलश पकड़े गए। औरंगजेब ने उन्हें मुसलमान बनाने के लिए अनेक प्रलोभन और भय दिखाए, लेकिन Sambha Ji ने स्पष्ट शब्दों में कहा: “मैं मर जाऊँगा पर धर्म नहीं बदलूँगा।”
यह एक राजा का नहीं, एक संत का वाक्य था। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि मराठा केवल तलवार से नहीं, आत्मा से भी लड़ने वाले होते हैं।
बलिदान: Sambha Ji Maharaj की अमर गाथा:
औरंगजेब ने Sambha Ji Maharaj पर क्रूरता की सारी सीमाएँ लांघ दीं। उन्हें लगातार 21 दिनों तक अमानवीय यातनाएँ दी गईं। उनके शरीर के अंग एक-एक करके काटे गए, जीभ निकाली गई, लेकिन Sambha Ji Maharaj की आँखों में डर नहीं, बल्कि आस्था और स्वाभिमान था।
उनकी शहादत एक क्रांतिकारी विचार थी – कि धर्म, मातृभूमि और आत्मसम्मान के लिए किसी भी हद तक जाया जा सकता है। Sambha Ji Maharaj की मृत्यु उनके शरीर की थी, आत्मा की नहीं। उनकी आत्मा आज भी हर राष्ट्रप्रेमी के भीतर जीवित है।
Sambha Ji Maharaj की नीति, शासन और लोकहित की भावना:
Sambha Ji Maharaj के शासनकाल में अनेक सामाजिक और प्रशासनिक सुधार हुए। उन्होंने किसानों के लिए कर प्रणाली को सरल बनाया, नौसेना को सशक्त किया, किलों की मरम्मत करवाई और सीमावर्ती क्षेत्रों में नई चौकियाँ स्थापित कीं। उन्होंने सेनापतियों को जवाबदेह बनाया और दरबारी भ्रष्टाचार पर कड़ा नियंत्रण रखा।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता बनाए रखी। मुस्लिम नागरिकों को कोई भी क्षति नहीं पहुँचने दी गई। Sambha Ji Maharaj ने यह स्पष्ट कर दिया था कि उनकी लड़ाई औरंगजेब की नीति से है, न कि किसी धर्म से।
Sambha Ji Maharaj की विरासत और आधुनिक भारत में उनकी प्रेरणा:
Sambha Ji Maharaj की शहादत आज के भारत में भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी 17वीं सदी में थी। जब आज के युवा राष्ट्रवाद, संस्कृति और स्वतंत्रता की बात करते हैं, तो Sambha Ji Maharaj का उदाहरण उन्हें संकल्प, साहस और सिद्धांतों की शिक्षा देता है।
उनका जीवन यह बताता है कि कठिन परिस्थितियों में भी झुकना नहीं है, बल्कि सत्य, धर्म और राष्ट्रहित के लिए अडिग रहना है। उनके बलिदान ने मराठा साम्राज्य की आत्मा को नया जीवन दिया और आने वाले छत्रपतियों को प्रेरणा प्रदान की।
निष्कर्ष: Sambha Ji Maharaj – एक राजा नहीं, युग-पुरुष:
Sambha Ji Maharaj का जीवन केवल एक ऐतिहासिक अध्याय नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है। उन्होंने केवल अपने पिता की विरासत नहीं संभाली, बल्कि उसे नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। उनके बलिदान ने यह सिखाया कि धर्म, संस्कृति और मातृभूमि की रक्षा किसी भी कीमत पर होनी चाहिए।
आज Sambha Ji Maharaj का नाम भारत के हर कोने में श्रद्धा से लिया जाता है। वे मराठों के नहीं, समूचे भारत के गौरव हैं। उनका बलिदान, उनकी नीति, और उनका विचार आज भी हमें प्रेरणा देता है – सत्य और स्वराज्य के लिए अंतिम साँस तक लड़ने की।
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