सम्राट Harshvardhan: इतिहास का गौरवशाली अध्याय

Aanchalik Khabre
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Harshvardhan

भारत का इतिहास अनेकों महान सम्राटों, योद्धाओं और विद्वानों की कहानियों से भरा हुआ है। इन्हीं में से एक थे Samrat Harshvardhan, जिनका शासनकाल 7वीं शताब्दी में उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में फैला हुआ था। Harshvardhan न केवल एक पराक्रमी योद्धा थे, बल्कि एक महान प्रशासक, उदार दानवीर और संस्कृति प्रेमी सम्राट भी थे। उनका जीवन भारतीय इतिहास का एक ऐसा स्वर्णिम पृष्ठ है जिसे जितना पढ़ा जाए, उतना कम है।

Contents
Harshvardhan का प्रारंभिक जीवनसत्ता में Harshvardhan का आगमनHarshvardhan का साम्राज्यशासन प्रणाली और प्रशासनHarshvardhan और धर्मह्वेनसांग और Harshvardhan की मुलाकातHarshvardhan का साहित्य प्रेमHarshvardhan की कूटनीति और सैन्य नीतिप्रयाग महाधिवेशनHarshvardhan का निधन और विरासतनिष्कर्षFAQ: सम्राट Harshvardhan के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नQ1: Harshvardhan कौन थे?Q2: Harshvardhan ने किस क्षेत्र पर शासन किया?Q3: Harshvardhan का जन्म और प्रारंभिक जीवन कैसा था?Q4: Harshvardhan की बहन राज्यश्री कौन थीं?Q5: Harshvardhan ने बौद्ध धर्म का समर्थन क्यों किया?Q6: Harshvardhan और ह्वेनसांग का क्या संबंध था?Q7: Harshvardhan ने कौन-कौन से नाटक लिखे?Q8: Harshvardhan की मृत्यु कब और कैसे हुई?Q9: Harshvardhan का शासनकाल क्यों महत्वपूर्ण माना जाता है?Q10: क्या Harshvardhan का उल्लेख आज भी पाठ्यक्रमों में किया जाता है?

Harshvardhan का प्रारंभिक जीवन

Harshvardhan का जन्म 590 ईस्वी के आसपास हुआ था। वह थानेसर (आधुनिक हरियाणा) के पुष्यभूति वंश से संबंधित थे। उनके पिता प्रभाकरवर्धन एक शक्तिशाली राजा थे, जिन्होंने हूणों के आक्रमण से उत्तर भारत की रक्षा की थी। Harshvardhan के दो प्रमुख भाई-बहन थे — राज्यवर्धन और राजकुमारी राज्यश्री।

राज्यवर्धन के मृत होने के बाद, मात्र 16 वर्ष की आयु में Harshvardhan ने सत्ता संभाली। इतनी कम उम्र में भी उन्होंने जिस कुशलता और धैर्य के साथ राज्य का संचालन किया, वह उन्हें एक असाधारण राजा बनाता है।

सत्ता में Harshvardhan का आगमन

Harshvardhan का राज्यारोहण उस समय हुआ जब राज्य राजनीतिक अस्थिरता और पारिवारिक संकट से गुजर रहा था। उनके भाई राज्यवर्धन की हत्या गौड़ शासक शशांक ने कर दी थी और उनकी बहन राज्यश्री को बंदी बना लिया गया था।

Harshvardhan ने पहले अपने भाई की मृत्यु का बदला लिया और शशांक के विरुद्ध सफल सैन्य अभियान चलाया। उन्होंने अपनी बहन को बंदीगृह से मुक्त कराया। यह अभियान उनके अद्वितीय सैन्य कौशल और नेतृत्व क्षमता को दर्शाता है।

Harshvardhan का साम्राज्य

Harshvardhan ने अपना साम्राज्य उत्तर भारत के विशाल भूभाग में फैलाया। उनके साम्राज्य की सीमाएं उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक फैली थीं। पश्चिम में गुजरात और पूर्व में असम तक Harshvardhan का प्रभाव था।

उन्होंने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया और वहाँ से पूरे साम्राज्य का संचालन किया। Harshvardhan का साम्राज्य एक मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था और न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध था।

शासन प्रणाली और प्रशासन

Harshvardhan का प्रशासन केंद्रीकृत था, परंतु उन्होंने स्थानीय प्रशासन को भी पर्याप्त अधिकार दिए। उन्होंने भूमि कर, सिंचाई व्यवस्था और व्यापार पर विशेष ध्यान दिया। उनके शासनकाल में किसानों की स्थिति बेहतर हुई और व्यापारिक गतिविधियाँ तेज़ हुईं।

Harshvardhan ने अपने दरबार में योग्य मंत्रियों, विद्वानों और सैनिकों को सम्मानित स्थान दिया। वह जनता की भलाई के लिए निरंतर प्रयासरत रहते थे। उन्होंने धर्मार्थ कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लिया और अनेकों सराय, स्कूल और अस्पतालों की स्थापना करवाई।

Harshvardhan और धर्म

Harshvardhan स्वयं शैव धर्म के अनुयायी थे, परंतु उन्होंने सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखा। बौद्ध धर्म के प्रति उनके विशेष झुकाव के कारण वे एक उदार धार्मिक नीतिवान सम्राट माने जाते हैं। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग (Xuanzang) ने अपने यात्रा वृत्तांत में Harshvardhan की धार्मिक सहिष्णुता, न्यायप्रियता और विद्वानों के प्रति सम्मान का विस्तार से उल्लेख किया है।

Harshvardhan ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय को दान दिया और काशी, प्रयाग तथा गया जैसे तीर्थस्थलों पर अनेक बौद्ध मठों का निर्माण करवाया।

ह्वेनसांग और Harshvardhan की मुलाकात

चीनी बौद्ध भिक्षु ह्वेनसांग 630 ईस्वी में भारत आया और कई वर्षों तक यहाँ रहा। ह्वेनसांग ने Harshvardhan के शासनकाल का प्रत्यक्ष अनुभव किया और उन्हें ‘श्रेष्ठ राजा’ कहा। उनके अनुसार, Harshvardhan प्रतिवर्ष प्रयाग में एक भव्य सभा आयोजित करते थे जिसमें वे अपनी समस्त सम्पत्ति दान कर देते थे।

इस सभा में हजारों साधु, विद्वान, गरीब और विदेशी यात्री शामिल होते थे। Harshvardhan की उदारता, धर्म के प्रति समर्पण और जनकल्याण की भावना ने ह्वेनसांग को अत्यंत प्रभावित किया।

Harshvardhan का साहित्य प्रेम

Harshvardhan न केवल एक योद्धा और प्रशासक थे, बल्कि एक कवि और नाटककार भी थे। उन्होंने संस्कृत में तीन प्रसिद्ध नाटकों की रचना की:

  1. नागानंद – जिसमें बौद्ध और हिन्दू विचारों का समन्वय है।
  2. रत्नावली – एक प्रेमकथा आधारित नाटक।
  3. प्रियदर्शिका – एक राजकुमारी की जीवनकथा।

इन नाटकों से यह स्पष्ट होता है कि Harshvardhan को साहित्य, कला और संस्कृति में गहरी रुचि थी। उन्होंने साहित्यकारों को संरक्षण दिया और विद्वानों को सम्मानित किया।

Harshvardhan की कूटनीति और सैन्य नीति

Harshvardhan की सेना विशाल और सुसंगठित थी। उनके पास हजारों पैदल सैनिक, घुड़सवार और हाथी होते थे। उन्होंने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की, परंतु दक्षिण में चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय से पराजित हुए।

इस पराजय के बावजूद Harshvardhan की प्रतिष्ठा बनी रही क्योंकि उन्होंने अपने साम्राज्य को संगठित, समृद्ध और शक्तिशाली बनाए रखा।

प्रयाग महाधिवेशन

हर पांच वर्षों में प्रयाग में आयोजित होने वाला “महाधिवेशन” Harshvardhan के शासन की एक विशेष परंपरा थी। इसमें वह अपनी समस्त संपत्ति, आभूषण और वस्त्र तक दान में दे देते थे और अंत में स्वयं भिक्षुक जैसा वस्त्र धारण करते थे। यह Harshvardhan के त्याग, वैराग्य और जनता के प्रति प्रेम को दर्शाता है।

Harshvardhan का निधन और विरासत

Harshvardhan की मृत्यु 647 ईस्वी में हुई। उनकी कोई संतान नहीं थी जो उत्तराधिकारी बन सके, इसलिए उनके बाद पुष्यभूति वंश का अंत हो गया। उनके निधन के बाद भारत में कोई इतना शक्तिशाली सम्राट नहीं हुआ जो समस्त उत्तर भारत को एकजुट रख सके।

फिर भी Harshvardhan की स्मृति आज भी इतिहास के पन्नों में जीवंत है। उनकी उदारता, प्रशासनिक कुशलता, साहित्यिक योगदान और धार्मिक सहिष्णुता उन्हें एक आदर्श सम्राट के रूप में स्थापित करती है।


निष्कर्ष

Samrat Harshvardhan का जीवन भारत के इतिहास का एक गौरवपूर्ण अध्याय है। उन्होंने न केवल एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की, बल्कि अपने शासन में धर्म, संस्कृति, साहित्य और समाज की उन्नति के लिए भी उल्लेखनीय कार्य किए।

उनकी न्यायप्रियता, दानशीलता और धार्मिक सहिष्णुता आज के समय में भी प्रेरणादायक है। Harshvardhan जैसे सम्राट युगों में एक बार ही जन्म लेते हैं। उनका जीवन एक समर्पित, विवेकशील और दूरदर्शी नेतृत्व का प्रतीक है — जो हर भारतीय को गर्व और प्रेरणा देता है।


FAQ: सम्राट Harshvardhan के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q1: Harshvardhan कौन थे?

उत्तर: Harshvardhan सातवीं शताब्दी के एक महान भारतीय सम्राट थे, जिन्होंने पुष्यभूति वंश से उत्तर भारत पर शासन किया। वे एक पराक्रमी योद्धा, न्यायप्रिय शासक और विद्या तथा धर्म के संरक्षक माने जाते हैं।


Q2: Harshvardhan ने किस क्षेत्र पर शासन किया?

उत्तर: Harshvardhan का साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक और पश्चिम में गुजरात से पूर्व में असम तक फैला था। उनकी राजधानी कन्नौज थी।


Q3: Harshvardhan का जन्म और प्रारंभिक जीवन कैसा था?

उत्तर: Harshvardhan का जन्म 590 ईस्वी के आसपास हुआ था। वे प्रभाकरवर्धन के पुत्र थे और मात्र 16 वर्ष की आयु में उन्होंने राज्य की बागडोर संभाली थी।


Q4: Harshvardhan की बहन राज्यश्री कौन थीं?

उत्तर: राज्यश्री, Harshvardhan की बहन थीं, जिन्हें गौड़ शासक शशांक ने बंदी बना लिया था। Harshvardhan ने एक सफल अभियान चलाकर उन्हें मुक्त कराया।


Q5: Harshvardhan ने बौद्ध धर्म का समर्थन क्यों किया?

उत्तर: यद्यपि Harshvardhan स्वयं शैव धर्म के अनुयायी थे, परंतु उन्होंने बौद्ध धर्म को सहिष्णुता और धार्मिक समरसता के प्रतीक रूप में समर्थन दिया। उन्होंने नालंदा जैसे बौद्ध संस्थानों को दान दिया।


Q6: Harshvardhan और ह्वेनसांग का क्या संबंध था?

उत्तर: चीनी यात्री ह्वेनसांग Harshvardhan के शासनकाल में भारत आए थे। उन्होंने सम्राट की प्रशंसा करते हुए उन्हें धर्मनिष्ठ, न्यायप्रिय और उदार बताया।


Q7: Harshvardhan ने कौन-कौन से नाटक लिखे?

उत्तर: Harshvardhan ने संस्कृत में तीन प्रमुख नाटक लिखे:

  • नागानंद

  • रत्नावली

  • प्रियदर्शिका
    इन नाटकों से उनकी साहित्यिक रुचि और सांस्कृतिक समर्पण का पता चलता है।


Q8: Harshvardhan की मृत्यु कब और कैसे हुई?

उत्तर: Harshvardhan की मृत्यु 647 ईस्वी में हुई। उनके कोई उत्तराधिकारी नहीं थे, जिससे उनके बाद पुष्यभूति वंश का अंत हो गया।


Q9: Harshvardhan का शासनकाल क्यों महत्वपूर्ण माना जाता है?

उत्तर: Harshvardhan का शासनकाल धर्मनिरपेक्षता, कल्याणकारी नीतियों, साहित्यिक उत्थान और राजनीतिक एकता के लिए जाना जाता है। वे अंतिम सम्राट थे जिन्होंने एकजुट उत्तर भारत पर शासन किया।


Q10: क्या Harshvardhan का उल्लेख आज भी पाठ्यक्रमों में किया जाता है?

उत्तर: हाँ, Harshvardhan भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण शासकों में से एक हैं और उनका उल्लेख स्कूल और कॉलेज के इतिहास पाठ्यक्रमों में प्रमुखता से किया जाता है।

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