Sansar में रहते हुए हमारा व्यक्तित्व सौम्य, मधुर, दया, सेवा भावना से परिपूर्ण होना चाहिए
हम जब इस Sansar में आते हैं। बचपन से जवानी की तरफ बढ़ते हैं। फिर बूढ़े होते हैं। आखिर में एक दिन इस Sansar को छोड़ कर चले जाते हैं। बस अपने पीछे बहुत सारी यादें छोड़ जाते हैं। कुछ कड़वी, कुछ मीठी, कोई हमें याद करके भावुक हो जाता है। और कोई हमें तिरस्कार की भावना से याद करता है। क्योंकि हमने जिंदगी में बहुत से अच्छे और बुरे करम किए होते हैं।
हमने जिस 2 इंसान के साथ जो जो किया होता है। उसी के हिसाब से हमें याद किया जाता है। क्योंकि वो जीवन जो हमें जिया होता है। उसमें हमने कई उतार चढ़ाव देखे होते हैं। इन्हीं उतार चढ़ाव के कारण हमारे विचार वक्त के साथ 2 बदलते रहते हैं। और हमारे विचार हमारी भावनाओं का निर्माण करते हैं। फिर इन्हीं भावनाओं के मोहपाश में बंध करके हम लोगों के साथ व्यवहार करते हैं…
यही विचार हमारे व्यक्तित्व का भी निर्माण करते हैं। इसलिए हमें अपनी भावनाओं और विचारों पर संयम रखना चाहिए। क्योंकि कभी 2 न चाहते हुए भी। हम ऐसा कुछ कर जाते हैं। जो किसी व्यक्ति और समाज के लिए बेहतर नहीं होता। और कभी हम अपने शुभ विचारों से ऐसा कोई महान कार्य कर जाते हैं। हैं.जिससे समाज का कल्याण होता है.और फिर हमारे इस Sansar से जाने के बाद लोग हमें भावुक हो कर याद करते हैं….
सबके दिल में हमारे जाने के बाद भी प्यार और सम्मान होता है.इसलिए हमें बहुत सोच विचार के बाद कोई काम करना चाहिए…जिससे किसी का बुरा ना हो…और समाज का भी कल्याण हो.हमारा व्यक्तित्व ऐसा होना चाहिए…कि हमारे होने से सबका भला हो.किसी का कोई नुकसान ना हो.हमारा व्यक्तित्व सौम्य, मधुर, दया, सेवा भावना से परिपूर्ण होना चाहिए.ताकि एक बेहतर समाज का निर्माण हो सके क्यूंकि एक ना एक दिन तो हमें जाना ही है इस Sansar से…तो क्यों ना अच्छे करम किये जाए…हर जीव के प्रति हमारे दिल में..रहम और प्यार होना चाहिए…यही एक छोटा सा संदेश एक इंसान का दूसरे इंसान के लिए
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