झुंझुनू।झुंझुनू में एक संस्कृत स्कूल के हालात, जहां पर एक भी बच्चे का नामांकन नहीं और स्टाफ हर महीने लाखों रुपए की तनख्वाह बैठे बैठे ले रहा था।मामला उजागर होने के बाद भी हालात सुधरे नहीं साथ ही एक और संस्कृत स्कूल के हालात जहां पर दो बच्चों को पढ़ाने के लिए सात शिक्षकों का स्टाफ लगा है और परिणाम आ रहा है शून्य। झुंझुनू जिलेके खींवासर गांव का संस्कृत स्कूल देखकर आप ये मत सोच लेना कि अभी स्कूल लगी नहीं या फिर छुट्टी हो गई। इन दो बच्चों को पढ़ाने के लिए ही स्कूल में संस्कृत विभाग ने सात शिक्षकों का स्टाफ लगा रखा है।
दरअसल कागजों में तो स्कूल में छह बच्चों का नामांकन है। लेकिन असल में पढ़ने के लिए आते है केवल दो ही बच्चें। जब इस बारे में पूछा गया तो कार्यवाहक प्रधानाध्यापक ने अपना ही रोना रो दिया। कहा कि यहां पर स्टाफ की कमी है। ये दो बच्चे है कि कक्षा आठ और कक्षा 10 के। शिक्षकों ने इन्हें संस्कृत शिक्षा का पाठ पढ़ाया या नहीं। यह तो परीक्षा का परिणाम खुद ब खुद बता देगा। जब बच्चों को उनकी पढ़ाई के बारे में पूछा तो उन्होंने कह दिया कि उन्हें टीचर अच्छे से पढ़ाते है। लेकिन जब दूसरा सवाल कम विद्यार्थियों की संख्या का किया तो वो रटे रटाए जवाब में स्टाफ का रोना प्रधानाध्यापक की तरह ही रो दिए। अब बच्चों को ही जब इस तरह की शिक्षा स्कूलों में दी जाने लगी तो इस स्कूल के भविष्य के बारे में भी अंदाजा लगाया जा सकता है।
यही कारण है कि इस साल परिणाम शून्य रहा तो पिछले साल भी तीन में से एक बच्चा ही पास हुआ। वहीं 2017 में भी परिणाम शून्य रहा। स्कूल को लेकर ग्रामीणों का रवैया भी खराब ही है। उन्होंने बताया कि एक तो विषय अध्यापकों की कमी के चलते अभिभावक स्कूल में भेजते नहीं और दूसरा मौजूद स्टाफ भी कोई प्रयास नहीं करता है नामांकन बढ़ाने का। यही कारण है कि यह स्कूल बदहाली के आंसू बहा रहा है। साथ ही सात-सात स्टाफ सदस्यों की लाखों रुपए की मोटी तनख्वाह भी केवल और केवल दो बच्चों को पढ़ाने के लिए ले रहे है। बच्चे ना होने से एक टीचर को तो केवल बाबूगिरी के काम ही लगाया हुआ है। झुंझुनू की पदमपुरा की संस्कृत स्कूल हो या फिर खींवासर की संस्कृत स्कूल। बच्चों के कम नामांकन के बावजूद भी इस दिशा में संस्कृत शिक्षा विभाग द्वारा जरूरी कदम ना उठाना दर्शाता है कि विभाग के आलाअधिकारियों ने भी इन हालातों को निरंतर बनाए रखने के लिए मौन स्वीकृति दे रखी है। जहां पर देखने के लिए बच्चे नहीं है वहां पर बैठने के लिए पूरा और भरपूर स्टाफ है। आखिर संस्कृत शिक्षा विभाग कब चेतेगा यह तो आने वाला समय ही तय करेगा।