बेटियों की चीख,प्रधानमंत्री मौन,खोखली नींव पर खड़ा लोकतंत्र

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By News Desk
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समूचे विश्व के सामने जब भारत के प्रधानमंत्री द्वारा एक ऐतिहासिक क्षण दर्ज होने जा रहा था. एक नई संसद का उद्घाटन होने जा रहा था ठीक उसी तयशुदा समय में जंतर मंतर में विरोध कर रहे पहलवानों पर पुलिस द्वारा बर्बरता करना व इस पूरे प्रकरण पर सत्ता पक्ष का मूक रहना न सिर्फ देश की न्याय पालिका पर सवाल उठाता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि जब देश का गौरव बढ़ाने वाली बेटियां को न्याय मांगने पर बलपूर्वक उनकी आवाज दबाने की कोशिश की जाती है तो ऐसी स्थिति में एक आम आदमी के साथ किस हद तक ज्यादती हो सकती है. किसी भी प्रकार के अत्यचार से बचने व न्याय पाने के लिए आम आदमी पुलिस और न्याय पालिका की ओर आशा भरी निगाह से देखता है, लेकिन अक्सर यह देखा गया है कि जब आरोपी को राजनीति व सत्तापक्ष का संरक्षण प्राप्त हो या आरोपी स्वयं ही सत्ता में हो तो ऐसी स्थिति में उस आरोपी पर उचित कार्यवाही नहीं हो पाती.

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अभी हालिया समय में विनेश फोगाट, साक्षी मलिक व बजरंग पूनिया सहित अन्य पहलवान एक नाबालिग सहित महिला एथलीटों के यौन उत्पीड़न के आधार पर भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के प्रमुख बृज भूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग करते हुए विरोध शुरू किया. एक लम्बे समय तक इन पहलवानों ने पुलिस और न्याय पालिका के चक्कर काटे और जब उन्हें न्याय मिलने की उम्मीद नहीं दिखी तो उन्होंने जंतर मंतर पर प्रदर्शन शुरू किया. इस प्रदर्शन का मकसद था बधिर सरकार की कानों तक आवाज पहुँचाना व सोई हुई न्याय पालिका को जगाना. लेकिन देश का सम्मान बढ़ाने वाली इन बेटियों सहित अन्य पहलवानों को सरकार की निरंकुशता और पुलिस की बर्बरता का सामना करना पड़ा.

क्या सत्ता में होना जुर्म करने का लाइसेंस है ?

ज्ञात हो कि महिला पहलवानों ने जिस शख्स पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है उसका नाम है बृज भूषण शरण सिंह. बृज भूषण शरण सिंह लोकसभा का सदस्य व भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) का प्रमुख है. ये पहली बार नहीं है कि किसी सत्ता पक्ष के नेता के ऊपर आरोप लगा हो और उसपर कार्यवाई करने में न्यायपालिका अपंग मालूम पड़ रही है. बता दें कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार में गायत्री प्रसाद प्रजापति खनन मंत्री रह चुके हैं. गायत्री प्रजापति और छह अन्य लोगों पर चित्रकूट की एक महिला ने अपनी नाबालिग बेटी संग गैंगरेप का आरोप लगाया था.महिला का कहना था कि वह मंत्री गायत्री प्रजापति से मिलने उनके आवास पर पहुंची थी.जिसके बाद मंत्री और उनके साथियों ने उसको नशा दे दिया और नाबालिग बेटी के साथ गैंगरेप की वारदात को अंजाम दिया. शिकायत के बाद गायत्री प्रजापति की तरफ से परिवार को धमकी देने की बात भी सामने आई थी. इस प्रकरण में भी पीड़िता द्वारा न्याय के लिए एक लम्बी लड़ाई लड़ी गई थी, जिसके बाद 18 फरवरी, 2017 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गायत्री प्रसाद प्रजापति और दूसरे 6 अभियुक्तों के खिलाफ गैंगरेप, जानमाल की धमकी और पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था.

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भारत में अपराधियों को राजनीति द्वारा संरक्षण प्रदान करने का मुद्दा अपराध और न्यायिक प्रणाली के संबंध में एक विवादास्पद विषय है. यह देखा गया है कि राजनीतिक दबाव के कारण कानूनी प्रक्रिया पर प्रभाव डाला जा सकता है और अपराधियों को संरक्षित करने का प्रयास किया जा सकता है. इसके परिणामस्वरूप, उचित न्यायिक प्रक्रिया और अपराधियों के लिए सजा पर असर पड़ सकता है. यहां उदाहरण के रूप में बहुत सारे मामले उठ सकते हैं, जैसे कि अपराधियों को राजनीतिक या सामाजिक दबाव के कारण किसी अनुचित प्रक्रिया से बचाया जाता है, अपराधियों को प्राथमिकताओं के आधार पर आराम की व्यवस्था की जाती है, अपराधियों के खिलाफ मामले दर्ज नहीं होते हैं, या अपराधियों को जल्दी रिहा कर दिया जाता है. यह संदर्भ आमतौर पर राजनीतिक दलों, पार्टियों, या राजनेताओं के रूप में जाना जाता है जो अपराधियों को संरक्षण प्रदान करने और उन्हें कानूनी प्रक्रिया से बचाने के लिए अपना प्रभाव प्रयोग कर सकते हैं. इसके साथ ही, कई बार अपराधियों को राजनीतिक अधिकारीयों द्वारा संरक्षित किया जा सकता है, जिन्हें अपराधी के साथ संबंध या स्वार्थपरता होती है.

भारतीय समाज में यह मान्यता है कि न्यायिक प्रणाली को स्वतंत्र और निष्पक्ष रहना चाहिए, और अपराधियों को कानून के द्वारा निष्पादित सजा का सामना करना चाहिए. राजनीति की दलीलें और प्रभावों के दबाव के बावजूद, न्यायिक प्रणाली को अपराधियों के मामलों में स्वतंत्रता और न्यायिकता की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए.

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क्या बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा सिर्फ एक सरकारी जुमला है ?

भाजपा सरकार ने सत्ता में आने पर बड़े जोर शोर से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा दिया था, लेकिन महिला पहलवानों के द्वारा न्याय के लिए दर दर भटकना बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे को सिर्फ एक सरकारी जुमला ही साबित करता है. यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि जब इन महिला पहलवानों ने देश के लिए मेडल जीता तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन महिला पहलवानों के साथ बड़े ही शान से फोटो खिचवाई और वाह वाही लूटी, व बेटियों के सम्मान की बात की थी, लेकिन अब, जब देश का सम्मान बढ़ाने वाले खिलाडी न्याय की गुहार लगा रहें है, तब देश के प्रधानमंत्री मूक बने हुए हैं. जिस वक्त प्रधानमंत्री नए संसद भवन के उद्घाटन पर भाषण दे रहे थे ठीक उसी समय इन महिला पहलवानों को पुलिस बल तिरंगे के साथ घसीट रही थी. आज देश के हर हिस्से में आम आदमी इन महिला पहलवानों के साथ हुई बर्बरता पर बातें कर रहा है और न्याय पालिका पर सवाल उठा रहा है, लेकिन प्रधान मंत्री मोदी सहित सत्ता पक्ष द्वारा देश की बेटियों के न्याय के लिए न तो कोई बयान दिया गया और न ही किसी ने उनकी सुध ली.

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निर्भया केस के बाद लागू हुई “रैपिड एक्शन” भी ठन्डे बस्ते में

आज भी देश के हर नागरिक को 16 दिसंबर 2012 की घटना याद है, जिसमे निर्भया के साथ अत्याचार, अमानवीय कृत व बर्बरता हुई थी. निर्भया केस के बाद देश में कई जगह प्रदर्शन हुए और महिलाओं की सुरक्षा के लिए कठोर कानून बनाने की मांग की गई. जिसके बाद यह कहा गया कि महिलाओं के साथ किसी भी तरह का अत्याचार व अन्याय होने पर पीड़िता को रैपिड एक्शन (यानि त्वरित कार्रवाई) की सहायता व सुविधा प्रदान कई जाएगी. जिसके तहत आरोपी की गिरफ्तारी और व पीड़िता को क़ानूनी व आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी. देश में इतने बड़े अमानवीय कृत के बाद लागू हुए इस नए नियम से भी महिला पहलवानों को सहायता नहीं मिली. महिला पहलवान अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ दर दर भटक कर न्याय की गुहार लगा रही हैं लेकिन उनकी बात भी नहीं सुनी जा रही, तो ऐसे में रैपिड एक्शन के तहत यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को राहत मिलने की बात करना बेमानी ही है.

जूनियर खिलाडियों को भी सता रहा डर

विश्व स्तर पर देश का नाम रोशन करने वाली महिला खिलाडियों को न्याय के लिए संघर्ष करता देख जूनियर खिलाडी भी संसय में है. कई महिला खिलाडियों का कहना है कि जब देश का मान बढ़ाने वाली खिलाडियों को अपने सम्मान के लिए धरना प्रदर्शन करना पड़ रहा है, और उनके इस प्रदर्शन को पुलिस बल पूर्वक कुचल रही है तो ऐसे में जूनियर खिलाडियों को यदि भविष्य में किसी तरह की समस्या का सामना करना पड़ा तो उनकी तो आवाज ही दबा दी जाएगी.

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युवाओं में बढ़ रहा रोष

देश के युवा वर्ग का एक बड़ा हिस्सा खिलाडियों को अपना आइडियल मानता है, और उनकी इच्छा रहती है की बड़े होकर वो लोग भी ओलम्पिक या अन्य खेलों में जाएंगे. लेकिन आज की स्थिति देखते हुए देश के युवाओं का मनोबल भी टूट रहा है. युवा अपने आइडियल को सड़क पर पुलिस द्वारा लाठी खाते देख न सिर्फ आहत है बल्कि निराश भी है. ऐसी स्थिति में न सिर्फ युवा बल्कि कोई भी माँ-बाप अपने बच्चों को करियर के रूप में खेलों को चुनने की अनुमति नहीं देगा. यदि हमें देश का सम्मान बढ़ाने वाले खिलाडी चाहिए तो उन्हें उनका सम्मान और हक़ दिलाने की जिम्मेदारी सरकार की है. ताकि भारत का भविष्य तिमिर में न खो जाये.

यौन उत्पीड़न मामलों में आरोपी की गिरफ़्तारी जरुरी

देश का कानून कहता है कि यौन उत्पीड़न मामले में यह जरूरी है कि आरोपी को हिरासत में लिया जाए. “यौन उत्पीड़न के मामलों से संबंधित सभी मामलों में आरोपी की गिरफ़्तारी होनी जरुरी है क्योंकि यदि अभियुक्त सत्ता पक्ष में है या फिर अभियुक्त को सत्ता पक्ष का संरक्षण प्राप्त है तो, वह बहुत आसानी से उन लोगों को प्रभावित कर सकता है जो सबूत दे रहे है. वहीं आरोपी की गिरफ़्तारी भी जरुरी है, आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना चाहिए, उसकी न्यायिक हिरासत की मांग करनी चाहिए. खासकर POCSO में तो आरोपी की गिरफ़्तारी बहुत जरुरी है. लेकिन हालिया मामले में बृज भूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी तो दूर की बात है, उस पर प्राथमिकी भी सर्वोच्च न्यायलय के हस्तक्षेप के बाद दर्ज की गई. यौन उत्पीड़न मामलों में न्याय पालिका और सरकार का मौन रहना बेहद शर्मनाक बात है.

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कौन सुनेगा बेटियों की सिसकियाँ?

महिला पहलवानों के द्वारा न्यायालय का दरवाजा खटखटाना और न्यापालिका द्वारा इस सन्दर्भ में कोई ठोस कदम न उठाना, न सिर्फ इन महिला पहलवानों को बल्कि पूरे देश को निराश करता है. ऐसी स्थिति में एक आदमी आदमी कैसे खुद को सुरक्षित महसूस करेगा? आखिर कैसे एक आम लड़की या महिला अपनी अस्मत के सुरक्षित होने की उम्मीद कर सकती है? पूरा देश आक्रोश में है, महिला पहलवान लगातार न्याय की गुहार लगा रही हैं, और प्रधानमंत्री, सत्ता पक्ष व न्याय पालिका मूक दर्शक बनी हुई है. जब भारत की बेटियां जिन्होंने मेडल जीत कर देश का मान बढ़ाया, उनकी पुकार कोई नहीं सुन रहा तो, ऐसे में यदि एक आम महिला के साथ यौन उत्पीड़न जैसी कोई घटना घटती है तो, उसकी तो आवाज ही दबा दी जाएगी. सवाल उठता है कि “क्या सत्ता में रहकर व्यक्ति कोई भी अपराध कर सकता है ? क्या ऐसे ही अपराधियों को सत्ता का सर्मथन मिलता रहेगा ? क्या ऐसे ही देश की बेटियों की सिसकियाँ दबाई जाएंगी ? क्या हमारे प्रधानमंत्री सिर्फ अपनी “मन की बात” करेंगे, और मेडल जीतने पर बेटियों के साथ फोटोशूट करा कर सिर्फ वाहवाही बटोरेंगे, और जब देश की बेटियां न्याय की गुहार लगाएंगी तब मौन रहेंगे ? क्या यही है क्या बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे की असलियत ? क्या यही है हमारे भारत देश की न्याय पालिका ?

प्रधानमंत्री को इस सन्दर्भ में चुप्पी तोड़नी चाहिए और देश की बेटियों की बात सुनकर उन्हें न्याय दिलाना चाहिए, और यदि आरोपी दोषी साबित होता है तो उसे कठोर दंड देना चाहिए, ताकि देश की जनता का सरकार और देश की न्याय पालिका पर विश्वाश बना रहें .

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