फूलबेहड़ प्राथमिक विद्यालय के बच्चों से कराई जाती है मजदूरी-आंचलिक ख़बरें-अभिषेक शुक्ला

News Desk
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। यह सच्चाई देश में चर्चा का विषय बन चुकी है कि सरकारी प्राथमिक स्कूलों में गरीबों व मजदूरों के बच्चे ही पढ़ते हैं। इस सच से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि निम्न आर्थिक स्थिति के कारण वह बड़े स्कूलों में नहीं पढ़ पाते। तो क्या इस श्रेणी के परिवारों के बच्चों के भाग्य में इन प्राथमिक स्कूलों में भी मजदूरी का ही काम करना लिखा है। फूलबेहड़ प्राथमिक विद्यालय के स्कूल के बच्चों से मिट्टी,लकड़ी, बालू के कार्य को देखकर तो ऐसा ही लगता है।ग्रामीण कहावत है कि ‘बड़े लोगों का बड़ा भाग्य’ तो स्वाभाविक है कि छोटे लोगों के भाग्य को भी छोटा ही कहेंगे। व्यक्ति के भविष्य की नींव इस कहावत से जरूर जुड़ती है। शिक्षा जीवन के अंधकार को दूर कर एक नया उजाला लाती है, लेकिन दुर्भाग्य है कि कुछ अपवाद को छोड़ कर यहां शिक्षा भी परिवार के जीवन स्तर के अनुसार ही मिलती है। बड़े लोगों के बच्चे कान्वेंट स्कूलों से अपने भविष्य की नींव रखते हैं तो मजदूरों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में टाट-पट्टी पर बैठकर भविष्य में तरक्की की राह ढूंढनी पड़ती है। इन बच्चों को यहां वह काम भी कई बार करने पड़ते हैं, जिन्हें करके उनके माता-पिता परिवार की जीविका चलाते हैं। ऐसे बहुत से उदाहरण सामने आते हैं, जिनमें इन सरकारी प्राथमिक स्कूलों के बच्चों से स्कूल में पढ़ाई के लिए बैठने से पहले झाड़ू से उस जमीन को साफ करना पड़ता है। कई उदाहरण तो ऐसे भी है जब बच्चों से मिड-डे मील के बर्तन भी साफ करवाए जाते हैं, लेकिन फूलबेहड़ प्राथमिक विद्यालय में तो ऐसा दृश्य सामने आया, जिसमें इन स्कूली बच्चों से उनकी क्षमता से ज्यादा काम कराया जा रहा था। अब देखना है कि प्रशासन इन बच्चों के दुर्भाग्य को कैसे दूर करता है।

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