दिल्ली चुनाव परिणाम के निहितार्थ.
ऐसा नहीं है कि ८ फ़रवरी, २०२० की शाम ६ बजे जब दिल्ली विधानसभा का मतदान पूर्ण होने के पहले देश के तमाम न्यूज चैनल जब संभावित परिणामों की भविष्यवाणी कर रहे थे तो इसका लोगों को अंदाजा नहीं था। राजनीति तथा दिल्ली की थोडी भी समझ रखने वाला व्यक्ति यह जानता था कि इस चुनाव में भी कोई बडा परिवर्तन नहीं होने वाला। आम आदमी पार्टी तथा भारतीय जनता पार्टी के बीच दो ध्रुवीय मुकाबला होने के साथ कांग्रेस मुकाबले से लगभग स्वयं को समेट चुकी थी। वह यह समझ चुकी थी कि कांग्रेस को मिलने वाला प्रत्येक वोट आम आदमी पार्टी को कमजोर करेगा। इसलिये मतदान के पहले ही उसके प्रतिबद्ध मतदाताओं को आप को मतदान कराने के कयास उडने लगे थे।
लोकतंत्र में दुश्मन के दुश्मन को मजबूत करने के लिये किसी राष्ट्रीय दल का एक क्षेत्रीय दल के सामने उसका यह आत्मघाती कदम उसके ६७ प्रत्याशियों की जमानत जब्त करवा गया। यहाँ तक कि वह ७० मे से किसी भी सीट पर दूसरे नम्बर तक नहीं पहुँची। यह एक ऐसी राष्ट्रीय पार्टी के पराभाव का इतिहास बना गया जिसने आजादी के बाद यहाँ सबसे लंबे समय तक राज किया था । जिसने देश को सर्वाधिक प्रधानमंत्री दिये तथा देश की आज़ादी में योगदान रहा है।
*११ फरवरी के चुनाव परिणाम आप पार्टी के लिये उत्साहवर्धक रहे । अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने ५३.६० मत प्राप्त करके ६२ सीटें जीतीं । यह २०१५ के विधानसभा चुनाव के मुकाबले कुछ ही कम था। तब उसने ५४.३४ % मत प्राप्त किये थे। जबकि भारतीय जनता पार्टी २०१५ में प्राप्त ३२.१९ की तुलना में लगभग ६ प्रतिशत अधिक ३८.५० % मत प्राप्त करके महज ८ सीटें ही जीत सकी। यद्यपि सीटों की संख्या तथा प्राप्त मतों के मामले में भाजपा फायदे में रही। लेकिन उसके द्वारा किये जा रहे बहुमत के तमाम दावों के विपरीत वह दहाई का आंकडा भी नहीं जुटा सकी। म प्र, राजस्थान, छ ग, महाराष्ट्र , झारखंड में सत्ता से दूर होने के बाद दिल्ली को पार्टी ने काफी महत्व देते हुए अंतिम १५ दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जे पी नड्डा के साथ ६ मुख्यमंत्री, २०० सांसद- विधायकों को प्रचार में उतारा था। इसका लाभ मतों के प्रतिशत में वृद्धि के रुप मे तो हुई लेकिन बहुमत लायक संख्या के आसपास भी नहीं पहुंच सके।
भाजपा के ४५ से अधिक ऐसे प्रत्याशी थे जो १०० से २००० मतों से भी कम वोटों से हार गये।
* आम आदमी पार्टी तीसरी बार दिल्ली विधानसभा में सरकार बनाने जा रही है। आम आदमी पार्टी ने साबित किया कि सक्षम नेतृत्व, स्पष्ट नीति, कार्यकर्ताओं का समर्पण तथा प्रतिबद्ध मतदाताओं को साधे रखने का माद्दा हो तो कम मतदान होने के बावजूद सत्ता विरोधी लहर की हवा निकाली जा सकती है। आप के विकासात्मक कार्यों की स्वीकार्यता दिल्ली के मतदाताओं में थी, अरविन्द केजरीवाल जैसा स्थापित चेहरा था तथा चुनाव में मतदाताओं को लुभाने की पुख्ता योजना थी। शाहीन बाग जैसे आन्दोलन की खाद से फली फूली आम आदमी पार्टी ने जरुरी संतुलन बनाए रखा। उसे मुस्लिम मतदाताओं के एक साथ- एक मुश्त गिरने का भरोसा था तो हिन्दू मतदाताओं को साधे रखने के लिये शाहीन बाग से दूरी भी बनाए रखी। केजरीवाल ने भरे चुनाव चैनलों के सामने हनुमान चालीसा पढने, मन्दिर जाने में संकोच नहीं किया। रामजन्मभूमि तीर्थ न्यास के गठन का मुक्त कंठ से समर्थन कर केन्द्र के कदम का स्वागत कर हिन्दुओं को सहलाने का अवसर जाने नहीं दिया।
* इस चुनाव में कांग्रेस के लिये ना पाने को कुछ था , ना ही खोने की चिंता थी। वह चुनाव को गंभीरता से लेती दिखी भी नहीं । दिग्विजय सिंह, मणिशंकर अय्यर, शशि थुरुर जैसे नेता शाहीन बाग तो गये लेकिन कांग्रेस के चुनाव प्रचार से लगभग लुप्त थे। राहुल गांधी एवं प्रियंका वाड्रा के पास भी दिल्ली के प्रबुद्ध मतदाताओं को लुभाने के लिये कुछ नहीं था। लाठीमार भाषण से राहुल ने किरकिरी जरुर करवा ली।
भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं को राज्यों की परिस्थितियों को समझना होगा। म प्र, छ ग, राजस्थान ,झारखंड में पराजय के अलग अलग कारण रहे हैं। महाराष्ट्र में वह शिवसेना को साध पाने में असफल रही तो झारखंड में भी सम वैचारिक दलों को साथ रखने में विफलता भारी पडी। उसे राष्ट्रीय तथा राज्यों के मुद्दों तथा तथ्यों को पृथक – पृथक देखना होगा। आने वाले समय मे उत्तराखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल मे चुनाव है तथा ठीक बाद उत्तरप्रदेश में भी। अति आत्मविश्वास के साथ तथा सिर्फ मोदी तथा शाह की लोकप्रियता के आधार पर चुनाव लडना घातक हो सकता है। यह भाजपा के लिये गंभीर चिंतन का समय है।
राष्ट्रीय मुद्दों, राष्ट्रवादी मुद्दों के साथ उसे स्थानीय विषयों , राज्य स्तरीय नेताओं पर मजबूती से काम करने की जरुरत होगी।
* दिल्ली सहित पिछले चुनाव में प्रचार के दौरान गिरती भाषाई मर्यादा चिंता का विषय रहा है। झूठ तथा अफवाहों के विरुद्ध भी कोई प्रभावी कार्यवाही ना होने से जनता के लिये परेशानियां खडी होती रही हैं। यह सभी दलों को देखना होगा कि लोकतंत्र की मर्यादा तभी बची रहेगी जब इसमे स्वच्छता, स्पष्टता, अनुशासन, पारदर्शिता बनी रहे। बहरहाल दिल्ली के चुनाव परिणाम से सभी खुश हैं । आप सत्ता पा कर खुश है, तो भाजपा मतों का प्रतिशत बढा कर ….ऒर कोई इसलिये खुश है कि पति मरा , तो मरा …सॊतन तो विधवा हो गयी ।
*कुछ लोगों का यह भी मानना है कि धारा ३७० हटाने के ऐतिहासिक फैसले के बाद सी ए ए लागू करने का समय, इसे मुद्दा बना कर जे एन यू, जामिया ,अलीगढ व फिर देश के मुस्लिमों को योजनाबद्ध तरीके से सडकों पर हिंसा भडकाने , सडकों को शाहीन बाग बनाने देना …..इसके विरुद्ध समय पर सक्षम कार्यवाही ना करने से भी मतों का ध्रुवीकरण हुआ। शाहीन की खाद से जिस मजबूती से आप के पक्ष में वोट गये , उसकी तुलना में बम्पर मतदान हुए नहीं । दिल्ली का मतदान ६२.५९ की जगह यदि २०१५ चुनाव के बराबर यानि ६७– ६८ % होता तो आप के धुर्रे उड जाते। तब दिल्ली में परिणाम भाजपा के पक्ष मे होता। अपेक्षा से कम मतदान, पढी लिखी दिल्ली का वोट के लिये बाहर ना निकलना शाहीन बाग के बहार का बडा कारण बन गया।