वरिष्ठ अधिवक्ता, जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी के अध्यक्ष एवं स्टेट लीगल एड कमेटी के कार्यकारी चेयरमैन प्रो. भीम सिंह ने संसद सदस्यों के सामने यह सवाल उठाया है कि भारतीय संविधान के अध्याय-3 से जम्मू-कश्मीर में मौलिक अधिकार क्यों गायब है, जैसा कि संसद सत्र में दावा किया गया था कि राज्य का पूरी तरह से मोदी सरकार द्वारा भारत संघ में विलय कर दिया गया है। प्रो. भीम सिंह ने सुप्रीम कोर्ट और देश के सभी उच्च न्यायालयों के सभी वकीलों के संगठनों से यह पता लगाने की अपील की कि 5 अगस्त, 2019 के बाद संसद द्वारा दावा किए गए जम्मू-कश्मीर में मौलिक अधिकार कहां हैं।
संवैधानिक अधिवक्ता प्रो. भीम सिंह भारत, जम्मू-कश्मीर राज्य और यहां तक कि विदेशों के सैकड़ों लोगों के मामले लड़ रहे हैं, जिन्हें जम्मू-कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत अवैध व असंवैधानिक रूप से हिरासत में लिया गया है। प्रो. भीम सिंह ने भारत के सर्वाेच्च न्यायालय में नागरिक स्वतंत्रता के माम ले दायर किए और हिरासत में लिए गए व्यक्तियों को एक भी पैसा वसूल किए बिना रिहा किया, क्योंकि अधिकांश बंदियों के माता-पिता गरीब थे। पाकिस्तान के निर्दाेष लोगों की मदद करने के लिए पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने प्रो. भीम सिंह को पुरस्कारों से सम्मानित किया था, जब उन्होंने कुछ साल पहले पाकिस्तान का दौरा किया था।
उन्होंने ने खेद व्यक्त किया कि जम्मू-कश्मीर एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसे सरकार द्वारा राज्य के दर्जा से वंचित किया गया है।
उन्होंने भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से आग्रह किया कि वे जम्मू-कश्मीर सरकार को यहां के नागरिकों को सड़कों या घरों के अंदर नहीं मारने का स्पष्ट निर्देश जारी करें, जिसमें दावा किया है कि मारे गए लोग हत्यारे/आतंकवादी व अपराधी थे।
लंदन विश्वविद्यालय एलएलएम डिग्री धारक प्रो. भीम सिंह ने भारत के राष्ट्रपति से आग्रह किया कि वे जम्मू-कश्मीर सरकार को यहां के नागरिकों को घरों के अंदर या सड़कों पर बिना किसी पहचान के मारने व गोलियों का इस्तेमाल नहीं करने का स्पष्ट निर्देश जारी करें। उन्होंने राष्ट्रपति से आग्रह किया कि भारतीय संविधान के अध्याय-3 में मौलिक अधिकारों की गारंटी दी गई है कि किसी भी व्यक्ति को अवैध रूप से या कानून के उपयोग के बिना नहीं मारा जाएगा। दर्जनों कहानियां हर रोज सामने आती हैं, जिसमें कहा गया है कि इतने सारे आतंकवादी, जैसा कि राज्य दावा करता है, हर रोज मारे जाते हैं। हत्यारों की कोई पहचान या पता नहीं है। केवल जम्मू-कश्मीर राज्य एजेंसियों/पुलिस द्वारा मारे गए या अन्यथा अज्ञात व्यक्तियों के पिछले अपराधों/आपराधिक गतिविधियों के आरोपी हैं। यदि यह प्रत्येक व्यक्ति/नागरिक का मौलिक अधिकार नहीं है कि प्रत्येक अभियुक्त को न्यायालय के समक्ष पेश किया जाए और उसे अपना बचाव करने का अवसर दिया जाए। यदि अभियुक्त व्यक्ति एक वकील को वहन नहीं कर सकता है तो राज्य द्वारा एक न्यायालय के समक्ष प्रतिनिधित्व करने के लिए अभियुक्त व्यक्ति को एक वकील प्रदान किया जाएगा। इस प्रक्रिया के बाद दोषी पाए जाने पर उसे सजा भी हो सकती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के चार बार वरिष्ठ कार्यकारी सदस्य रहे प्रो. भीम सिंह ने यह सवाल उठाया कि राज्य सरकार के निर्देश के तहत किस कानून के तहत तथाकथित बेनाम, अज्ञात व वंचित व्यक्तियों को बिना नाम, पते या आपराधिक गतिविधियां के गोली मार दी जाती है। जम्मू-कश्मीर को भारत संघ के साथ 27 अक्टूबर, 1947 को जोड़ा गया था। केंद्र सरकार को देश की राष्ट्रीय अखंडता व सुरक्षा के लिए जम्मू-कश्मीर के साथ लुका-छिपी का खेल खेलना बंद कर देना चाहिए।
ह./बंसी लाल शर्मा, अधिवक्ता
राजनीतिक सलाहकार