ग्रामीण पत्रकारिता- मिशन न प्रोफेशन हो चली फैशन-आंचलिक ख़बरें-यदुवंशी ननकू यादव

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साथियों ! अपने सुख के लिए मन की हिलोरों को शब्द दे रहा हूँ। इस सफर में अपने जैसे लोगों की तलाश और अच्छे लोगों का मार्गदर्शन पाना ही इस चंचल मन की जिज्ञाशा है।

अरे भाई समझ में नही आ रहा कि पत्रकारिता मिशन है या प्रोफेशन | नही भाई नही, आज बदलते वक्त में पत्रकारिता मिशन और प्रोफेशन नही, फैशन के तौर पर की जा रही है | प्रमुख समाचार पत्र खबरों का चयन मनमर्जी से करते हैं | जिला संवाददाता ग्रामीण पत्रकार अपनी मनमर्जी से रखते हैं | किसी की योग्यता और उसकी कार्यशैली से कोई सरोकार नहीं | तो बताइए यह मनमाना राज कहाँ तक उचित है | अतीत के पत्रकार अपनी निर्भीक और साहसी कार्यशैली के कारण समाज के लिए आदर्श हुए | आज के तमाम पत्रकार समाज के लिए कलंक हैं | उनकी लूट खसोट वाली कार्यशैली से समाज का हर वर्ग दुखी है | अगर उनसे कोई सुखी है तो अख़बार का कार्यालय | जो विज्ञापन और सर्कुलेशन के बदले अख़बार और पत्रकारिता समाज के ऊपर कालिख पोत रहा है | इससे सभी को ख़ुशी है लेकिन जागरूक नागरिक ऐसी जानकारी पाकर कुछ देर के लिए दुखी हो जाता है | अख़बार को किसी के सुख दुःख से क्या लेना देना वह तो निज स्वार्थों के लिए अख़बार चला रहे हैं | सर्कुलेशन खूब बढता रहे और विज्ञापन खूब मिलता रहे बस इतना ही काफी है | ग्रामीण क्षेत्रों में तैनात संवाददाता अखबारी दप्तर के एसमैन हैं | आफिस से फोन आता है कि घटना घटी है तो ग्रामीण पत्रकार को मौके पर जाना पड़ता है | हकीकत अख़बार को बताते हैं | फिर डीलिंग का खेल चलता है | बड़ी खबर को चंद लाइनों में निपटा दिया जाता है | इस तरह समाचार कवरेज करने वाले पत्रकार को निराश होना पड़ता है | कोई शराबी जब समाचार पत्र और उसके स्थानीय पत्रकार को जब चौराहे पर खड़े होकर हाँथ झटक झटक कर गालियाँ देता है तो बहुत बुरा लगता है | उसकी पीड़ा न ब्यूरो चीफ जान सकता है न एयरकंडिशन में बैठा सम्पादक | आख़िरकार ग्रामीण पत्रकार भी यह सोचने के लिए मजबूर हो जाता है कि वास्तव में जिस अख़बार की तन मन से सेवा की जा रही है वह हमें क्या दे रहा है ? सिर्फ सिर्फ समाजसेवी भावनाओं को ठगने का काम हो रहा है | साधरण परिवार का व्यक्ति ईमानदारी से ग्रामीण क्षेत्र में पत्रकारिता नही कर सकता | अख़बार उसको कोई खर्च नहीं देते जो देते भी हैं वह इतने कम कि उससे कुछ भी नहीं होने वाला | बस केवल वह दर्शा देते हैं कि किसी से कोई बेगार नहीं ली जाती | हकीकत तो वही बता सकते हैं जो भुक्तभोगी हैं | ग्रामीण पत्रकारिता न मिशन न प्रोफेशन सिर्फ फैशन है | जिसमे पड़े लिखे बेरोजगार युवाओं द्वारा नाम और पहचान के लिए पत्रकारिता का चलन चल रहा है | जो आज तो ग्लैमर कि जिन्दगी भले ही जी रहे हों आने वाला वक्त उनके लिए परेशानी भरा हो सकता है | फैशन के लिए और रुतबा गांठने के लिए की जाने वाली पत्रकारिता समाज को क्या दिशा देगी ? अख़बारों द्वारा घटना को छापने के बजाय छुपाना कहाँ तक न्याय संगत है ? जिला संवाददाता द्वारा ग्रामीण पत्रकारों का मनमर्जी से चयन और निष्कासन करना कहाँ तक जायज है ? जागरूक ग्रामीण पत्रकार को ब्यूरो चीफ पसंद नहीं करते पुराने पत्रकारों की बनाई साख पर नये नये पत्रकार बना दिए जाते जो अख़बार की साख और पत्रकार समाज की साख पर बट्टा लगाते हैं | लूट घसोट में माहिर लोगों को ही ग्रामीण पत्रकार बनाने का सिलसिला चल रहा है | जिससे पवित्र विश्वसनीय पत्रकारिता प्रभावित हो रही है | अब तो लगता है कि स्वतंत्र पत्रकारिता ही ग्रामीण क्षेत्रों के लिए असली विकल्प है | कम से कम उसमे विज्ञापन और प्रसार कि सिरदर्दी तो नहीं | मैं तो प्रेस परिषद से अपील करता हूँ कि वास्तव में पत्रकारों को ही पत्रकार कहा जाय तो ज्यादा उचित है | बुद्धिजीवी पत्रकारों को उचित स्थान जरूर मिले | सतना में पत्रकारिता की छीछालेदर है | जिसके पास पैसा है वह पत्रकार है | हिस्टीशीटर भी यहाँ जनप्रतिनिधि होने के साथ साथ पत्रकार हैं | लग्जरी गाड़ियों में प्रेस लिखाकर शासन-प्रशासन को गुमराह कर रहे हैं | जिले के वरिष्ठ पत्रकारों से पहचान होने पर वह अपना रुतबा ग़ालिब करते फिर रहे हैं | पत्रकार के इस रूप को देखकर जनता त्राहि त्राहि कर रही है | मीडिया तमाशा देख रहा है | कोई भी जाँच हो तो उन पर आंच नही आती | पत्रकारिता की शह पर ठेकेदारी दलाली और नेतागिरी का धंधा भारी पैमाने पर चल रहा है | समय रहते ध्यान न दिया गया और कोई कार्यवाही नहीं हुई तो पत्रकारिता के हक़ में अच्छा नही होगा |

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