सदियों पुरानी परंपरा हैं गल यात्रा की
मोहगांव हवेली सौंसरफागुन मास की होली पूर्णिमा के दूसरे दिन यानी धुरेंडी के दिन मोहगांव हवेली में मेघनाद मेला गल यात्रा भरती हैं। जहां मेघनाद की पूजा अर्चना कर, अच्छी वर्षा एवं प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करने की प्रार्थना करते हैं। यहां आज भी सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन किया जाता हैं। मोहगांव हवेली के आसपास आदिवासी ग्राम स्थित हैं, बुजुर्ग लोग बताते हैं कि, पहले के वर्षों में इस मेले में भारी संख्या में आदिवासी ग्रामीण जनता की मौजूदगी रहती थी।
इस मेघनाद मेले में विशालकाय तीन लकड़ीयों के खंभों पर मचान बनाकर सीधी खड़ी विशालकाय खंभे के सीरे पर एक आड़ी लकड़ी दिशा सूचक कंपास की सुई की तरह लगाई जाती हैं तथा दोनों सीरे पर जमीन तक लटकती रस्सी बांधी जाती हैं। मौजूद युवा लोग इस रस्सियों को पकड़ कर दौड़ते हुए परिक्रमा करते हैं।
लोगों की आस्था हैं कि, मेघनाद पूजन एवं परिक्रमा करने से क्षेत्र में अच्छी वर्षा एवं प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा होती हैं तथा क्षेत्र में सुख, समृद्धि और परिवार वृद्धि होती हैं।