लुप्त हो रही परंपरा को जीवित रखे हैं काठी कलाकार-आँचलिक ख़बरें-अनिल उपाध्याय

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By News Desk
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100 दिनों तक घर घर पहुंच
कर सुनाते हैं शिव जी की कथा।
ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी भारतीय संस्कृति के दर्शन होते हैं ।लेकिन लोक नृत्य लोक गीत लोक कथाएं आधुनिक समय में लुप्त होने के चलते संस्कृति के कई रंग फीके पड़ गए हैं ।या अपना अस्तित्व गवा बैठे हे। ऐसी ही एक वर्षों पुरानी परंपरा आज भी ग्रामीण अंचलों में नजर आती है। देव उठनी ग्यारस से महाशिवरात्रि पर्व तक 100 दिनों तक चलने वाली काठी वाले नाम से प्रचलित( डाकिया वाले) इसमें शामिल सदस्य एक अनूठी वेशभूसा में भजनों पर घर-घर जाकर नृत्य करते हैं ।एवं लोगों इन्हें अपनी श्रद्धा अनुसार सामग्री जैसे गेहूं आटा दाल चावल कपड़े आदि देते हैं ।इससे इनका गुजारा चलता है। भगवान शंकर के गण कहे जाने वाले काठी कलाकार लाल कपड़े पहने डमरु बजा कर और नृत्य करते हुए गांव-गांव घूम रहे हैं ।प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा क्षेत्रों में आज भी जीवित है ।कुछ कलाकार तो भोपाल से दिल्ली तक अपनी कला की प्रस्तुति दे चुके हैं।

गांव में हर घर के सामने नहीं कर रहे काटी कलाकार भगवान शंकर के सुंदर भजन गाते हैं तथा लोगों की पीड़ा को दूर करते हैं इन लोगों का कहना है कि निसंतान दंपतियों को हम नारी बांध कर उनकी मन्नतें पूरी होने के लिए भगवान शंकर से प्रार्थना करते ग्राम बापचा निवासी कांटे कलाकार रामेश्वर एवं जिनवाणी निवासी मनफूल ने एक उदंती सुनाई कि पुराने जमाने में देवजी गोली मेघा गोली थे जिन क्या संतान नहीं थी निसंतान दंपतियों को संतान प्राप्त होगी तभी से यह सदियों पुरानी परंपरा आज भी जिंदा है इनका कहना है कि देव जी गोली के हाथ से संतान उत्पन्न हुई थी गांव में लॉगिन के गीत सुना सुनते तथा दक्षिणा भी देते हैं.

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