दुष्कर्म एवं SC-ST Act के मामले में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने उमेश जोगा एडीजी पुलिस जबलपुर जोन एवं छिंदवाड़ा जिले के एसपी और सिविल सर्जन को उनके पद से हटाने और इतने दूर पदस्थकरने के आदेश दिए हैं। जहां से तीनों अधिकारी मामले को प्रभावित न कर पाए। इस मामले का आरोपी पुलिस कांस्टेबल अजय साहू है, जो जबलपुर का रहने वाला है और छिंदवाड़ा में पदस्थ था। दिनांक 13 नवंबर 2021 को छिंदवाड़ा के अजाक थाने में दुष्कर्म एवं एससी एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामले में अजय साहू को गिरफ्तार किया गया था। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की एकल पीठ में जमानत याचिका प्रस्तुत की गई जिसे निरस्त कर दिया गया। इसके साथ ही मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एडीजी पुलिस जबलपुर एवं छिंदवाड़ा के एसपी और सिविल सर्जन के प्रति नाराजगी प्रकट की है। जबलपुर जोन के एडिशनल डीजीपी उमेश जोगा ने 20 अप्रैल को हाई कोर्ट में रिपोर्ट सौंपी। हाई कोर्ट ने पाया कि सिविल सर्जन शिखर सुराना ने हाई कोर्ट को गलत जानकारी उपलब्ध कराई। हाई कोर्ट ने कहा कि ADGP ने बिना विचार किए ही रिपोर्ट पर हस्ताक्षर कर दिए, जबकि उसमें स्टाफ नर्स के बयान दर्ज नहीं थे। कोर्ट ने कहा कि आरोपी एक पुलिसकर्मी है, इसलिए इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि उच्चाधिकारी उसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं।हाई कोर्ट ने कहा कि एडीजीपी जबलपुर, SP छिंदवाड़ा, सिविल सर्जन आदि की भूमिका संदिग्ध है। इसी तरह पत्रकार को डीआईजी अनिल कुशवाहा एवं टीआई डीपी सिंह चौहान द्वारा डीपी के मामले में जबरदस्ती फसाया गया था पर पत्रकार ने मुख्यमंत्री के कहने पर डीआईजी एवं टीआई का ट्रांसफर तो कर दिया पर ऐसे हाई प्रोफाइल केस को एवं पत्रकार को डराने की कोशिश की जा रही है पर पत्रकार झुकने तैयार नहीं है पर पत्रकार के ऊपर टीआई अभी तक सतना जिले में पदस्थ है जांच को वह प्रभावित कर सकता है जान कार सूत्र यह बताते हैं जब पत्रकार को पुलिस पकड़ने आई थी सुबह तब उसका मोबाइल क्यों जप्त नहीं किया गया पत्रकार दोपहर 1:00 बजे थाने गया पद का दुरुपयोग करते हुए टीआई ने उसे बैठा कर रखा और बिना वारंट के कैसे जेल किसके इशारे से भेज दिया गया यह जांच का विषय है खैर पत्रकार डरने वाला नहीं है सुप्रीम कोर्ट तक केस लड़ेगा इसी तरह का आदेश पत्रकार ने भी हाईकोर्ट में लगाया हुआ है अगर उसकी जांच होती है हाई प्रोफाइल केस सामने आएगा क्या डीपी का मामला था? या कुछ और ? कभी ना कभी सच सामने आएगा ही इनके आचरण की जांच के लिए मामला सीबीआई को सौंपा जाना था। चूंकि अब संबंधित अधिकारी अपनी भूमिका निभा चुके हैं। सैंपल की पुन: जांच नहीं हो सकती, इसलिए सभी संबंधित अधिकारियों को प्रदेश के दूरदराज क्षेत्र में स्थानांतरित किया जाए, ताकि वे गवाहों को प्रभावित नहीं कर सकें। हाईकोर्ट ने विजिलेंस एंड मॉनिटरिंग कमेटी को आदेशित किया।
हाईकोर्ट का सही फैसला, कर्मचारी हैं कर्मचारियों की तरह रहे?-आंचलिक ख़बरें-मनीष गर्ग
