आदिवासियों की समस्याओं पर सरकार लापरवाह क्यों ? डॉ.
अनिल कुमार मीणा.
विश्व आदिवासी दिवस धूमधाम से मनाया गया।
एस. ज़ेड.मलिक (पत्रकार)
नई दिल्ली – 9 अगस्त को पूरे विश्व में आदिवासी दिवस धूमधाम से मनाया गया। आदिवासियों की सांस्कृतिक, धार्मिक एवं नैसर्गिक विशिष्ठ पहचान व संरक्षण के लिए 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर भारत के कुछ राज्य सरकारों ने सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है। इस अवसर पर दिल्ली प्रदेश युवा कांग्रेस रिसर्च प्रकोष्ठ के प्रभारी डॉ. अनिल कुमार मीणा ने पत्रकार के साथ अनौपचारिक बात चीत के दौरान बताया कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व में शान्ति स्थापना के साथ-साथ विश्व के देशों में पारस्परिक मैत्रीपूर्ण समन्वय बनाना, एक-दूसरे के अधिकार एवं स्वतंत्रता को सम्मान के साथ बढ़ावा देना, विश्व से गरीबी उन्मूलन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य के विकास के उद्देश्य से 24 अक्टूबर 1945 में “संयुक्त राष्ट्र संघ” का गठन किया गया। जिसमे भारत सहित वर्तमान में 192 देश सदस्य हैं। जिसने 50 वर्ष बाद यह महसूस किया कि 21 वीं सदी में भी विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत जनजातीय (आदिवासी) समाज अपनी उपेक्षा, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा का अभाव, बेरोजगारी एवं बंधुआ मजदूर जैसे समस्याओं से परेशान है। जनजातीय समाज के समस्याओं के निराकरण हेतु वर्ष 1994 में “संयुक्त राष्ट्र संघ” के महासभा द्वारा प्रतिवर्ष 9 अगस्त को “INTERNATIONAL DAY OF THE WORLD’S INDIGENOUS PEOPLE” विश्व आदिवासी दिवस मनाने का फैसला लिया गया, इसे प्रतिवर्ष 9 अगस्त को आदिवासी समुदाय हर्षोल्लास के साथ बनाता है। विश्व आदिवासी दिवस विश्व के आदिवासी लोगों को दुनिया भर में रहने वाली पूरी आबादी मौलिक अधिकारों (जल, जंगल, भूमि) और उनके सामाजिक, आर्थिक और न्यायिक संरक्षण का विपणन करने के लिए मनाया जाता है। आदिवासी लोग पर्यावरण संरक्षण, स्वतंत्रता, महान आंदोलनों आदि जैसे दुनिया के मुद्दों को उठाते हैं। विश्व के 195 देशों में से 90 देशों में 5,000 आदिवासी समुदाय हैं, जिनकी जनसंख्या लगभग 37 करोड़ हैं। उनकी अपनी 7,000 भाषाएं हैं। भारत में तक़रीबन 8.6 प्रतिशत 10 करोड़ से अधिक जनसंख्या आदिवासी हैं। झारखंड 26.2 % पश्चिम बंगाल 5.49 % बिहार 0.99 % सिक्किम 33.08% मेघालय 86.01% त्रिपुरा 31.08 % मिजोरम 94.04 % मणिपुर 35.01 % नगालैंड 86.05 % असम 12.04 % अरूणाचल 68.08 % उत्तर प्रदेश 0.07 % राजस्थान में 13% के अलावा भारत के कई राज्यों में निवास करती है । अनिल कुमार मीणा ने बताया कि भारत में प्रतिवर्ष 500 करोड़ से अधिक रुपए आदिवासियों के विकास के लिए आवंटित होते हैं लेकिन सरकार आदिवासियों पर ध्यान नहीं देने के कारण आवंटित बजट राजकोष में चला जाता है । पिछले वर्षों 10 लाख से अधिक आदिवासियों को जमीन से बेदखल कर दिया गया जहां पर फिलहाल उद्योगपतियों की खनिजों की लूट जारी है। आगे उन्होंने बताया कि प्राकृतिक संपदा और पर्यावरण की सुरक्षा में आदिवासियों का महत्वपूर्ण योगदान है वे प्रकृति से जुड़े हुए हैं प्राचीन समय से लेकर अब तक प्राकृतिक संपदाओं की सुरक्षा करते आ रहे फिलहाल भारतीय जनता पार्टी की सरकार उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने वाली नीतियों के कारण लाखों आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल कर दिया गया। आदिवासियों की जमीन पर उद्योग धंधे स्थापित हो गए लेकिन आदिवासियों का उत्थान नहीं हुआ। नक्सली माओवादी इत्यादि शब्दावली इस्तेमाल करके उन्हें सरकारी तंत्र की सहायता से मारने पीटने प्रताड़ित करने की घटनाएं प्रतिदिन जारी रहती हैं लेकिन सरकार के द्वारा समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए अभी तक कोई यथोचित कार्यक्रम ईमानदारी से नहीं चलाया गया । जिसके कारण देश के आदिवासियों के साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार होता है। मोदी सरकार उद्योगपतियों से मित्रता निभाने के चक्कर में जो सरकारी रणनीतियां आदिवासियों को जमीन से बेदखल करने की रही है उससे देश में पर्यावरण पर खतरा एवं प्राकृतिक आपदाओं की कई समस्याएं उफान पर रही है। आज विश्व आदिवासी दिवस पर सरकार को आदिवासियों के संरक्षण एवं उनकी समस्याओं के समाधान के लिए ईमानदारी दिखाने की जरूरत है।