त्यागी जी-
दुनिया मे कोई भी नही जिसे खुशियों से आपत्ति हो सत्य न चाहता हो प्रेम से परेशान हो भाईचारा पसंद न हो और समर्पण से नाराज हो जाये। संसार मे सभी को अच्छी वस्तु अच्छे लोग पसंद आते ही है बस थोड़ी समस्या यह है कि वह सारी चीजों की उम्मीद दूसरों से ही रखता है वही उसके लिए बाधक है जब हम कोई भी वस्तु चाहते है तो उसके बदले कीमत चुकानी पड़ती है किसी से कुछ भी पाने के लिए हमें उसको कुछ तो देना ही होगा चाहे वह सम्मान के बदले सम्मान हो या प्रेम के बदले प्रेम ही क्यो न हो।
यह वास्तव में एक व्यापार जैसा ही तो है जिसमें आदान प्रदान ही होता है कुछ अपवाद स्वरूप है जो सिर्फ देने के लिए ही जन्म लेते है उन्हे लेने की चाह ही नही उनका जीवन सबसे अच्छा माना जाता है लेकिन कोई उन जैसा बनने का प्रयास नहीं करता जबकि हमारे जीवन के लिए यही महत्वपूर्ण है हम सिर्फ देना सोचे लेने की फिक्र हमे व्यवसायी और भिखारी दोनो मे से कुछ तो बनाती ही है कभी सोचे पृकृति के सबक लें।
हवा,पानी,अग्नि,सूर्य,धरती,
आकाश ये हमसे बदले में लेते क्या है इन्हें कुछ भी नही चाहिये सिर्फ देना देना और देना ही जानते है ये सब सम्पूर्ण जैव जगत मै मानव ही सिर्फ ऐसा प्राणी है जो सदियों से अब तक लेने की ही नही लूटने के होङ में आगे ही बढा है पीछे मुड़कर देखा कि उसने पाने के चक्कर में क्या खो दिया है और खुश भी नही हो पाया चूंकि आपने जो पाया वो बांटा ही जो बांटा है वही पा रहे हैं और कई गुना और पाना बाकी है आगे स्वर्ग निर्माता त्यागी जी ने कहा कि पृकृति किसी के साथ भेदभाव करती ही नही उसे भेदभाव करना आता ही नही लेकिन जब यह नियम तय है की बोई गई फसल ही काटनी होती है तो उसे कोई बदल न सकेगा अब यह विचार करे कि हमने बोया है या नही यदि बोया है तो क्या बोया है अब यदि बोया था तो फसल तैयार खङी है हमारे लिए भी और उसका काफी हिस्सा हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी उपहार स्वरूप मिलेगा ही यह भी तय है तो अब यह देखकर सोचकर डर क्यो लगता है क्योकि हमने धन को बीज रूप डाला तो हम धनवान बन गये रूप सौन्दर्य के पीछे भागे तो सुन्दर परिवार मिल गया लेकिन क्या जो आज चाहते हैं वह मिल पा रहा है यदि हाँ तो बहुत अच्छा है यदि नही तो इसके जिम्मेदार आप स्वयं है कुछ हमारे पूर्वज भी लेकिन धर्मशास्त्र कहते है कि हिरण्यकश्यपु को भी प्रह्लाद जैसी ईश्वर की कृपा मिली और राक्षस कुल मे तपस्वी प्रह्लाद जन्मे हमारे कुल खानदान मे भी प्रह्लाद जन्म ले या राम जन्म ले सकते है उसके लिए बीज बोने की आवश्यकता है हमारे थोङे से अच्छे या बुरे कर्म से हम भटक या संवर जाते है किंतु यदि हमने अपने जीवन में कुछ उद्देश्य तय कर लिये है तो निश्चित ही हमे उसके लाभ मिलेगे यदि नही मिल रहे तो दोषी हम ही है लेकिन बात वही आती है कि बोई गई फसल ही काटनी पड़ेगी यदि कल न बो सके तो आज ही शुरुआत करें जमीन की उर्वरा शक्ति को पुनः जागृत कर आज ही संकल्प लें कि बिना सत्य, प्रेम ,सद्भाव, समर्पण का जीवन जीना ही नही है कठिनाई ही सही किन्तु लूटकर नही प्रेम लुटाकर जीवन को सदुपयोग मे बहुजन हितार्थ समर्पित कर जीवन की सच्ची खुशी प्राप्त करने का प्रयास करेंगे तो निश्चित ही इस अंधकारमय युग में रोशनी का आगमन होगा और अंधेरा नष्ट होकर ही रहेगा अपना सर्वस्व समाज को धर्म मार्ग से समर्पित कर चुके हैं कर्मयोगी प्रकृति पुत्र त्यागी जी द्वारा सभी पवित्र चिंतको को समर्पित यह चिंतन त्यागी जी आश्रम विश्व सेवा समिति आपका सकारात्मक मार्गदर्शन चाहती है।
विश्व कल्याण के लिए संकल्पित कर्मयोगी प्रकृति पुत्र त्यागी जी ने अपने विचारो में जो महत्वपूर्ण बाते रखी उसके मुख्य अंश-आंचलिक ख़बरें-रमेश कुमार पाण्डे

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