राजेंद्र राठौर
महान आदिवासी स्वत्रंता संग्राम सेनानी बिरसा मुंडा जिन्हे 19 वीं शताब्दी के अंत मे ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सशक्तं विद्रोह के लिए याद किया जाता है। बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन के शोषण के विरूद्ध बहुत संघर्ष किया । 1 अक्टूबर 1894 को बिरसा मुंडा ने सभी मुंडो को एकत्र कर अंग्रेजों से लगान माफी के लिए आंदोलन किया। ब्रिटिश शासन द्वारा जनजाति जीवन शैली व सामाजिक संरचना एवं संस्कृति में हस्तक्षेप करना मुंडा विद्रोह का मूल कारण था। ब्रिटिश द्वारा आरक्षित वन सुरजीत करने और लकड़ी तथा पशु चराने की सुविधाओं पर भी प्रतिबंध लगाए जाने के कारण आदिवासी जीवन शैली प्रभाहित हुई क्योंकि आदिवासियों का जीवन सबसे अधिक वनों पर ही निर्भर करता है 1867 ई. मैं झूम कृषि पर प्रतिबंध लगा दिया गया नए वन कानून बनाए गए इस सब कारणों ने ही मुंडा विद्रोह को जन्म दिया। बिरसा मुंडा का देश के प्रति प्रेम और उनके संघर्ष ने उन्हें भगवान बिरसा मुंडा का दर्जा दिया वह एक सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने अंग्रेजों की खिलाफ बहुत सारे विद्रोह कीए। भगवान बिरसा मुंडा के शौर्य और संघर्ष की गाथा जन जन में प्रचलित है। 9 जून 1900 का 25 वर्ष की आयु में रांची जेल में उनकी मृत्यु हो गई थी ।
ऐसे जननायक को उनके बलिदान दिवस पर शारदा विद्या मंदिर के शिक्षको एवं विद्यार्थियों ने श्रंदाजली अर्पित कर माल्यावर्पण किया। संस्था संचालक ओम शर्मा ने विद्यार्थियों को उनके देश प्रेम और गौरव गाथा से जुड़े प्रसंगो के बारे मे बताया। शिक्षक अपसिंग बारिया ने उनकी जीवनी पर प्रकाश डाला, इस अवसर पर प्राचार्य दीपशिखा तिवारी, उप प्राचार्य मकरंद आचार्य सहित समस्त स्टॉफ उपस्थित रहा।