श्रीश्रीपाद भट: एक अनसुना भारतीय जीनियस जिसने विज्ञान को चुपचाप बदल डाला

Aanchalik Khabre
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श्रीश्रीपाद भट

परिचय

जब बात महान वैज्ञानिकों की होती है, तो हमारे दिमाग में अक्सर अब्दुल कलाम, विक्रम साराभाई या सीवी रमन का नाम आता है। लेकिन क्या आपने कभी श्रीश्रीपाद भट (Shreepad Bhatt) का नाम सुना है?

एक ऐसा नाम जो विज्ञान की दुनिया में कम दिखता है लेकिन अपने प्रयोगों और आविष्कारों से भारत को एक नया नजरिया दे गया।


 प्रारंभिक जीवन

  • जन्म: 1950 के दशक में कर्नाटक के एक छोटे से गाँव में

  • शिक्षा: इंजीनियरिंग की डिग्री ली, लेकिन उनका झुकाव हमेशा नवाचार और आविष्कार की ओर रहा।

बचपन से ही उनके पास एक असाधारण सोच थी। वे किसी भी साधारण चीज़ को देखकर उसके भीतर की तकनीक समझ लेते थे और उसे नया रूप देने की कोशिश करते थे।


 अविश्वसनीय आविष्कार

श्रीश्रीपाद भट का सबसे बड़ा योगदान “फ्यूल-फ्री इंजन” को लेकर था। उन्होंने ऐसा इंजन डिजाइन किया जो बिना पेट्रोल या डीजल के काम कर सके।

फ्यूल-फ्री इंजन:

  • यह एक ऐसा मोटर इंजन था जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिज्म और गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांतों पर आधारित था।

  • उन्होंने अपने घर में इस मॉडल को तैयार किया और कई बार प्रदर्शित भी किया।

  • इसका सिद्धांत यह था कि कैसे चुंबकीय ऊर्जा और गुरुत्वाकर्षण बल को उपयोग में लाकर निरंतर गति (Perpetual Motion) प्राप्त की जा सकती है।

भले ही विज्ञान इसे आज भी ‘असंभव’ मानता है, लेकिन श्रीश्रीपाद भट ने ऐसा मॉडल तैयार कर दिखाया।


 ग्रामीण नवाचार

श्रीश्रीपाद भट का काम सिर्फ प्रयोगशाला तक सीमित नहीं था। उन्होंने किसानों और ग्रामीण समुदायों के लिए भी कई अविष्कार किए:

  • सौर ऊर्जा आधारित पानी खींचने वाला यंत्र

  • कम लागत वाली सिंचाई मशीन

  • बिजली रहित रसोई गैस जनरेटर (जो गोबर और कचरे से गैस बनाता था)

  • आसानी से चलने वाली व्हीलचेयर – खासतौर पर ग्रामीण बुज़ुर्गों के लिए डिज़ाइन की गई


 क्यों कोई नहीं जानता इनके बारे में?

  • उन्होंने कभी पेटेंट नहीं कराया

  • मीडिया से दूर रहे।

  • न सरकार का साथ मिला, न बड़े कॉर्पोरेट्स का।

  • उन्होंने खुद कहा था:

    “मैं विज्ञान को दिखावे के लिए नहीं, सेवा के लिए करता हूँ।”


 उन्हें मिला सम्मान (पर केवल स्थानीय स्तर पर)

  • कर्नाटक विज्ञान अकादमी द्वारा सम्मानित

  • गाँव स्तर पर विज्ञान प्रदर्शनियों में कई पुरस्कार

  • कभी-कभी राष्ट्रीय विज्ञान मेला में भाग लिया, परंतु पहचान नहीं मिली


 उनके विचार

“अगर तकनीक से आम आदमी का जीवन आसान नहीं हुआ, तो वो तकनीक किस काम की?”
“मुझे मशहूर नहीं होना, मुझे असरदार होना है।”


उनका अंतिम प्रयोग

अपने अंतिम वर्षों में वे एक ऐसा पोर्टेबल, बैटरी-फ्री पंखा बना रहे थे जो केवल हाथ की गति से चल सके।
दुर्भाग्य से वह उपकरण पूरा होने से पहले ही उनका निधन हो गया।


 मृत्यु

  • मृत्यु: लगभग 2016 (सटीक वर्ष ज्ञात नहीं)

  • एक सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले श्रीश्रीपाद भट की मौत भी उतनी ही शांत रही जितना उनका जीवन।


 निष्कर्ष

श्रीश्रीपाद भट उन असंख्य भारतीयों में से एक हैं जिनकी प्रतिभा और सेवा को कभी वैश्विक मंच नहीं मिला। लेकिन उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि:

“सच्चे आविष्कारक की पहचान यह नहीं कि लोग उसे जाने, बल्कि यह कि लोग उसके काम से बेहतर जीवन जिएं।”

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