टीआरपी के चक्कर में खबर बेचने वालों ने पत्रकारिता ही बेच दी!”
पत्रकार यदुवंशी ननकू यादव
पहले कहा जाता था
“न कलम बिकता है,न कलमकार बिकता है।,दिन रात लिख-लिखकर थक जाती है ये उँगलियाँ ,तब जाके कहीं सुबह अखबार बिकता है।“
:सभी पत्रकार बन्धुओं को जो पत्रकारिता को शौकिया,जुनून और फर्ज के तौर पर कर रहे हैं उन्हें हार्दिक बधाई। प्रेस या अखबार और इलैक्ट्रानिक मीडिया प्रजातंत्रीय शासन के तहत आजादी से अपना काम करते हैं, लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या प्रेस पूरी तरह से आजाद हो सकती है। इसका जवाब शायद देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे लोगों से पूछा जाये तो वो भी बगल बगल झांकने लगेंगे, वो अपनी राय देने में हिचकिचायेंगे जरूर, उनके मुंह से न तो हां निकलेगी और न ही वो नहीं कर पायेंगे । कहने को तो सोचने-विचार करने और चिंतन करने के लिए सब स्वतंत्र है लेकिन उन विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी निश्चित रूप से कुछ सीमाओं के दायरे में बंधी हुई है। प्रेस की आजादी एक प्रकार से विशेषाधिकार है इसका सही तरह से इस्तेमाल करने के लिए बहुत ही विवेक और धैर्य के साथ व्यवहार कुशलता की जरूरत होती है। प्रेस आयोग ने भारत में प्रेस की आजादी और उनकी हिफाजत के साथ पत्रकारों में ऊंचे विचारों को कायम करने के मकसद से प्रेस परिषद की कल्पना कि थी और जुलाई 1966 में परिषद की स्थापना कर गई फिर 16 नवम्बर 1966 से परिषद ने विधिमान्य तरीके से अपना विधिवत काम करना शुरू कर दिया था।आज पत्रकारिता का क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया है पत्रकारिता ही एक ऐसी विधा है तो शिक्षाप्रद,सूचनात्मक और मनोरंजन से भरपूर चीजे आम जनता तक पहुंचाने में एक सेतु का काम करती है। हम आप सभी जानते हैं कि पत्रकारिता के अन्दर तथ्यपरकता होनी जरूरी है, लेकिन तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर, मिर्च-मसाला लगाकर सनसनी फैला देने की आदत आज की पत्रकारिता में नजर आने लगी है। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि पत्रकारिता मे पक्ष्पात और असंतुलन की अधिकता बहुत ज्यादा है जिसमें स्वार्थ साफ झलकता है। आज के युग और आधुनिक पत्रकारिता में विचारों पर आधारित समाचार पत्रों की बाढ़ सी आ गई है , जिसकी वजह से पत्रकारिता में एक नाजुक और अस्वस्थ प्रवृति ईजाद हुई है। कहा जाता है कि समाचार विचारों की जननी है जिसका अभिवादन जरूर होना चाहिए, लेकिन विचारों पर आधारित समाचार एक अभिशाप की तरह है। मैंने सुना पढ़ा है कि समतल, उत्तल और अवतल भी कुछ होता है, इसको मैं सीधे और सरल तरीके से आपके सामने रखता हूं मीडिया समाज का दर्पण है और दर्पण का काम समतल दर्पण की तरह काम करना होता है जिससे वो समाज की सच्ची बातों को उजागर कर समाज के सामने लाने मे अपनी भूमिका निभाता है ,लेकिन अक्सर देखा गया है कि अपने निहित स्वार्थों के चलते मीडिया उत्तल या अवतल दर्पण की तरह काम करने लगती है जिससे हमें समाज की उल्टी तस्वीर दिखलाई जाती है जो अकाल्पनिक, और विकृत तस्वीर का रूप लेकर समाज के बर्ग विशेष,धर्म विशेष पर चोट पहुंचाकर सनसनी फैलाने का काम करती है।