उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले से आई एक खबर ने पूरे राज्य को झकझोर दिया है। सिद्धौली थाना क्षेत्र की भंडिंडिया पुलिस चौकी के इंचार्ज पर एक युवक को बेरहमी से पीटने का आरोप लगा है। युवक की पहचान 26 वर्षीय सत्यपाल यादव के रूप में हुई, जो मंगलवार रात अपनी दुकान के बाहर सो रहे थे। कुछ घंटों बाद ही उन्होंने जिला अस्पताल में दम तोड़ दिया। लेकिन इस मामले को एक सामान्य पुलिस उत्पीड़न का केस कहकर टाला नहीं जा सकता, क्योंकि मौत से पहले का एक वीडियो सामने आ चुका है जिसमें वे खुद कह रहे हैं — “ई बाबजू जी हमका मारि न हैं”। यही शब्द पूरे मामले की नब्ज बन गए हैं।
पीड़ित की अंतिम रात और आरोप
मंगलवार रात सत्यपाल यादव रोज़ की तरह अपनी परचून की दुकान के बाहर सो रहे थे। उनका गांव जसवंतपुर के कटसरैया मजरे में है, और दुकान जाफरीपरुवा में स्थित थी। पिता सोबरन यादव के मुताबिक, देर रात भंडिंडिया चौकी प्रभारी मणिकांत श्रीवास्तव अपने हमराही के साथ गश्त पर निकले थे। उन्होंने सत्यपाल को जगाया और पूछताछ शुरू की। बात-बात में विवाद बढ़ गया और आरोप है कि दोनों पुलिसकर्मियों ने लाठी, लात और घूंसे से पीटना शुरू कर दिया।
शोर सुनकर कुछ लोग मौके पर पहुंचे और परिवार को सूचना दी गई। सत्यपाल को पहले सिद्धौली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, फिर हालत बिगड़ने पर जिला अस्पताल रेफर किया गया, जहां बुधवार सुबह उनकी मौत हो गई।
वीडियो में दिखी सच्चाई
सबसे चौंकाने वाली बात तब सामने आई जब घटनास्थल का एक वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो में सत्यपाल सड़क पर गंभीर हालत में पड़े दिख रहे हैं, और जब एक ग्रामीण पूछता है कि किसने मारा, तो वे जवाब देते हैं — “ई बाबजू जी हमका मारि न हैं”। वीडियो में चौकी प्रभारी मणिकांत श्रीवास्तव भी नज़र आते हैं।
सोशल मीडिया पर यह वीडियो तेजी से फैल गया और पुलिस विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे। शुरू में पुलिस ने मामले को घरेलू विवाद के रूप में पेश करने की कोशिश की। एसपी अंकुर अग्रवाल को बताया गया कि सत्यपाल की पिटाई उनके पिता ने की थी। लेकिन जब मीडिया और ग्रामीणों ने वायरल वीडियो और तथ्यों के साथ एसपी से बात की, तब जाकर मामला पलटा।
ग्रामीणों का गुस्सा और जाम
सत्यपाल की मौत की खबर जैसे ही गांव पहुंची, परिवार और ग्रामीण आक्रोशित हो गए। उन्होंने महमदाबाद मार्ग पर जाम लगा दिया और दोषी पुलिसकर्मियों पर तुरंत कार्रवाई की मांग करने लगे। इसी दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हो गई। एक वायरल वीडियो में पुलिसकर्मियों को मृतक की महिलाओं पर बल प्रयोग करते हुए देखा जा सकता है—उन्हें खींचा और जबरन हटाया जा रहा था।
राजनीति भी शुरू
घटना की संवेदनशीलता को देखते हुए राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आईं। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर घटना की निंदा करते हुए कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाए। उन्होंने इसे योगी सरकार की प्रशासनिक विफलता बताया।
जांच और कार्रवाई
एसपी अंकुर अग्रवाल ने कहा कि मामले की निष्पक्ष जांच की जाएगी। मणिकांत श्रीवास्तव और उनके साथी पुलिसकर्मी पर गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया है। सत्यपाल का पोस्टमार्टम एक मेडिकल पैनल द्वारा कराया गया और पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी हुई। बिसरा भी सुरक्षित रखा गया है ताकि आगे फॉरेंसिक जांच में कोई बाधा न आए।
सत्यपाल का पारिवारिक जीवन
सत्यपाल यादव अविवाहित थे और तीन भाइयों में एक थे। वे दुकान संभालते थे, जबकि अन्य दो भाई खेती में पिता का साथ देते हैं। परिवार के पास करीब 16 बीघा ज़मीन है। सत्यपाल घर की रोज़ी-रोटी का मुख्य सहारा थे। उनकी मौत से पूरे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है।
जनता का भरोसा और पुलिस की जवाबदेही
इस घटना ने एक बार फिर पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं तो आम नागरिक किसके पास जाए? सत्यपाल की मौत कोई पहली घटना नहीं, लेकिन इस बार पीड़ित की आखिरी आवाज़ — “ई बाबजू जी हमका मारि न” — हर कान में गूंज रही है।
यह सिर्फ एक युवक की अंतिम बात नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि अगर समय रहते सिस्टम न सुधरा, तो ऐसा हादसा किसी के भी साथ हो सकता है। यह मामला न्याय की मांग कर रहा है। केवल कार्रवाई की घोषणाएं काफी नहीं होंगी — असली बदलाव तब दिखेगा जब हर पुलिसकर्मी को यह अहसास होगा कि वर्दी कानून की सेवा के लिए है, न कि जनता पर अत्याचार के लिए।

