पूजा को अचानक एक दिन सिगरेट पीते-पीते ना जाने क्या हुआ। बस चक्कर खाकर गिर पडी। लोग कहने लगे बेहोश हुआ होगा इतनी सिगरेट जो पीती है। लीवर कमजोर हो गया हो गया होगा। ना जाने लोगों ने कितने ही तर्क-वितर्क दिए लेकिन जब उसे अस्पातल ले जाया गया तब कुछ ऐसा पता चला कि सबके होश ही उड़ गए। डॉक्टर ने कहा यह Musculoskeletal नामक बिमारी से ग्रस्त है। यानी Bones एवं Spine संबंधी बीमारियों से। अधिकांश लोगों को लगता है धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक हैं। यह वाक्य तो आपने खूब सुने भी होंगे और पढ़े होंगे।

लेकिन क्या आप जानते है कि धूम्रपान से Bones की समस्याएं भी हो सकती है।
धूम्रपान के कारण सिर्फ Liver खराब होना व कैंसर रोग तक की जानकारी तक ही जागरूक है लेकिन ऐसा नहीं है। धूम्रपान से न केवल फेफड़े खराब होते हैं बल्कि इससे जोड़ों को भारी नुकसान पहुंचता है। सिगरेट का धुंआ Spine एवं Bones की Musculoskeletal प्रणाली को व्यापक रूप से प्रभावित करता है।
सिगरेट पीने से होने वाली परेशानी
सिगरेट पीने वालों में Bones एवं Spine (Musculoskeletal) संबंधी बीमारियों के होने की आशंका बढ़ जाती है और इसके कारण Osteoporosis Bones की मोटाई में कमी, कमर के निचले हिस्से में दर्द और स्पाइनल डिस्क की समस्यायें अधिक होती है।
धूम्रपान करने वाली महिलाओं के शरीर में Estrogen hormone के इस्तेमाल की प्रक्रिया को प्रभावित कर अस्थि रोगों को बढ़ता है। यह हार्मोन Osteoporosis से बचाने में मदद करता है तथा शरीर की सभी कोशिकाओं के Estrogen रिसेप्टर को कम करता है। ऐसे में Estrogen का ऊतकों पर पर असर नहीं हो पाता है।
यही नहीं, धूम्रपान महिलाओं की रीढ़ में फैक्चर के खतरे को भी बढ़ा देता है क्योंकि इससे Bones का घनत्व कम हो जाता है। कई अध्ययनों से पता चलता है कि धूम्रपान से जल्दी मीनोपॉज भी हो सकता है। इसके अलावा बहुत ज्यादा धूम्रपान करने वालों को धूम्रपान नहीं करने वालों की तुलना में डिस्क के कमजोर होने का खतरा अधिक होता है।
सिगरेट पीने से स्पाइनज लिगामेंट कमजोर होता है और अस्थि कोशिकाओं का बनना कम हो जाता है। धूम्रपान करने वालों का फ्रैक्चर ठीक होने में ज्यादा समय लगता है तथा उतकों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सिजन नहीं मिल पाती जिससे घाव को भरने में अधिक समय लगता है।
लक्षण अधिकांश देखा गया है नसों में एक अजीब प्रकार का खिंचाव व झनझनाहट स्लिप्ड डिस्क का एक बड़ा लक्षण माना जाता है। यह झनझनाहट पूरी नस में दर्द उत्पन्न करती है जो कि अति कष्टदायक होता है।
इसके अलावा प्रभावित जगह पर सूजन होना भी इस दर्द को और अधिक जटिल बना देता है। वैसे तो स्लिप्ड डिस्क के ऐसे कम ही केस होते हैं जहां पर सर्जरी करनी पड़ती है। लेकिन व्यायाम या दवाइयां जहां कारगर नहीं होती हैं वहां सर्जरी करना आवश्यक हो जाता है।
डिस्क से जुड़े भाग जो कि बाहर की तरफ आने लगते हैं उन्हें ठीक करना इस सर्जरी का लक्ष्य होता है। इस प्रक्रिया को डिस्केटोमी के नाम से जाना जाता है। लेकिन सर्जरी का भी सर्वश्रेष्ठ विकल्प हैं-इंडोस्कोपिक लेजर डिस्केटोमी। समाधान उठने-बैठने के ढंग में परिवर्तन करें। बैठते वक्त सीधे तन कर बैठें।
कमर झुकाकर या कूबड़ निकालकर न बैठें और न ही चलें। यदि बैठे-बैठे ही अलमारी की रैक से कुछ उठाना है तो अंगों की ओर झुककर ही वस्तु उठाएं। अपनी क्षमता से अधिक वजन न उठाएं।
नरम या गुदगुदे से बिस्तर पर न सोएं बल्कि सपाट पलंग या तख्त पर सोएं। ताकि पीठ की मांसपेशियों को पूर्ण विश्राम मिले।वजन को हरगिज न बढने दें, भले ही इसके लिए आप को डायटिंग या व्यायाम ही क्यों न करना पड़े। तनाव की स्थितियों से बचें।
चिंता दूर करने के लिए खुली हवा में टहलें। कोई भी मनोरंजक क्रिया कलाप करें, जिससे ध्यान दूसरी ओर बंटे। क्या करें, क्या ना करें
चलते समय हमें अपनी प्राकृतिक व आरामदायक गति से ही चलना चाहिए न कि किसी अन्य व्यक्ति की तुलना करते हुए।
वजन घटाने के लिए जॉगिंग के साथ तीव्र गति की चाल एक बेहतर आइडिया है, जब कि हृदय रोगी व फेफड़े के रोगियों को इस तरह की कोई क्रिया करने से पहले अपने कार्डियोलोजिस्ट या पुल्मोनोलोजिस्ट से सलाह ले लेनी चाहिए।
वृद्घ रोगी जो आर्थाराइटिस से पीड़ित हों उन्हें आरामदायक पैड वाले जूते पहनने चाहिए और ऐसी सतह पर चलना चाहिए जहां पर कार्पेट न हो। ऐडियों में दर्द के मरीजों को ऐसे जूते पहनने चाहिए जिसके अंदर कुशन हील पैड लगा हो।
न्यूरोपैथी व डायबिटीज के मरीजों को सिलिकोन के सोल के लैस जूते पहनने चाहिए। जिनके पैर व अंगूठे पर घाव हो या पैरों की अंगुलियों की बनावट ठीक न हो तो उन्हें अतिरिक्त पैड वाले जूते पहनने चाहिए। जूते व फुटवीयर या स्नीकर्स को ठीक से रखना चाहिए व समय-समय पर जैसे ही कोई परेशानी हो बदल देना चाहिए। चलने से पहले शरीर व पैरों को खींचना व लंबी-लंबी सांसें लेना एक बेहतर विकल्प है।