सोशल मीडिया अफवाह Vs सत्य: मेटा की चेतावनी या वायरल भ्रम?

Aanchalik Khabre
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सोशल मीडिया अफवाह

प्रस्तावना: अफवाहों का डिजिटल विस्फोट:-

आज के युग में जहां सूचना मात्र एक क्लिक की दूरी पर है, वहीं सोशल मीडिया अफवाह भी तेज़ी से महामारी की तरह फैल रही हैं। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म्स पर वायरल होने वाली हर पोस्ट सच्ची नहीं होती, लेकिन जनमानस पर इसका प्रभाव गहरा होता है। कई बार ये सोशल मीडिया अफवाह केवल भ्रम नहीं, बल्कि सामाजिक उथल-पुथल का कारण बन जाती हैं।

 

सोशल मीडिया: सूचना या अफवाह का अड्डा?

वर्ष 2010 के बाद से सोशल मीडिया ने संवाद का तरीका ही बदल दिया है। परंतु जहां यह प्लेटफॉर्म्स सूचना के आदान-प्रदान का माध्यम बने, वहीं यह सोशल मीडिया अफवाह का जन्मस्थल भी बन गए। एक छोटी सी झूठी पोस्ट जब वायरल होती है, तो उसका असर गांव से लेकर संसद तक देखा जाता है। इससे न केवल समाज में भ्रम की स्थिति बनती है, बल्कि कई बार यह अफवाहें जानलेवा भी साबित होती हैं।

 

अफवाहों के फैलने के तरीके:-

सोशल मीडिया अफवाह फैलने के पीछे मुख्य कारण हैं:

फॉरवर्ड कल्चर: बिना तथ्य जांचे किसी भी जानकारी को शेयर कर देना।

क्लिकबेट हेडलाइंस: भ्रामक शीर्षक जो लोगों को आकर्षित करते हैं।

बॉट्स और फेक अकाउंट्स: जो सुनियोजित तरीके से झूठी खबरें फैलाते हैं।

एक बार कोई सोशल मीडिया अफवाह ट्रेंड करने लगती है, तो उसे रोकना बेहद कठिन हो जाता है। इस प्रक्रिया को कई विशेषज्ञ “डिजिटल जंगल की आग” कहते हैं।

 

मेटा की चेतावनी और बढ़ती जिम्मेदारी:-

हाल ही में मेटा की चेतावनी सामने आई जिसमें उन्होंने फर्जी सूचनाओं के प्रसार को रोकने के लिए नए कदम उठाने की बात कही। मेटा ने स्वीकार किया कि सोशल मीडिया अफवाह की रोकथाम में अब तक की नीतियाँ पूरी तरह प्रभावी नहीं रही हैं। अब वे AI और फैक्ट-चेकिंग टीमों की सहायता से झूठी खबरों को पहचान कर उन्हें फ्लैग करने की प्रक्रिया को सख्त कर रहे हैं।

यह मेटा की चेतावनी आने वाले समय में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर जवाबदेही बढ़ाने का संकेत है।

 

व्यंग्य

मेटा की मायावी चेतावनी

 (विवेक रंजन श्रीवास्तव)

कल सुबह की बात है। चाय का प्याला हाथ में लेकर अखबार पढ़ ही रहा था कि मोबाइल की स्क्रीन पर ‘दुनिया बदलने वाला’ एक मैसेज आ टपका। लिखा था  “चेतावनी! कल से फेसबुक, मेटा के नाम से आपके चित्रों का उपयोग कर सकता है। आज अंतिम दिन है विरोध दर्ज कराने का।” नीचे एक लंबा-चौड़ा घोषणा-पत्र टाइप स्टेटमेंट था  “मैं फेसबुक को अपने कल, आज और भविष्य के चित्रों, विचारों, संदेशों या रचनाओं के उपयोग की अनुमति नहीं देता/देती।”

पढ़कर एक क्षण को तो लगा कि देश के सभी संविधान विशेषज्ञों ने संयुक्त रूप से संविधान संशोधन प्रस्ताव व्हाट्सऐप स्टेटस में डाल दिया है।

सच कहूं तो यह वही दृश्य था, जब आदमी तकनीक के समुद्र में तैरते हुए भी “तथ्य” की पतंग को “फॉरवर्ड” की डोर से उड़ाता है। सोशल मीडिया की यही तो खूबी है, कि यहां हर तीसरा प्राणी ‘डिजिटल गुरु’, ‘कविता संकलन संपादक’, और ‘कानूनी सलाहकार’ होता है ,बशर्ते वो अपने फॉरवर्ड को सच मानने को तैयार हो।

जो मित्र आज तक बैंक लॉगिन और लॉगआउट में उलझे रहते थे, वे अचानक ‘डिजिटल अधिकारों’ की रक्षा में सुप्रीम कोर्ट के जज बन गए! जिन्होंने अब तक अपना पर्स,अपनी बैंक की पासबुक  पत्नी से छिपाकर रखी, वे भी ‘प्राइवेसी राइट्स’ पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं,फेसबुक को ललकार कर।

हमारे मोहल्ले के शर्मा जी सहित कई मूर्धन्य विद्वानों ने बिना किसी फैक्ट चेक के भेड़ चाल चलते हुए तुरंत बाकायदा स्टेटस डाला  “मैं मेटा को सूचित करता हूं कि मेरी प्रोफाइल और इसकी सामग्री पर आपका कोई अधिकार नहीं है।”। जो लेखक महोदय चाहते हैं कि उनकी कथित कविता हर अखबार कापी पेस्ट कर छाप कर उन्हें धन्य करे उन साहित्यकार महोदय ने भी यह घोषणा यथावत रिपीट कर दी। समझ सकते हैं कि फेसबुक के सर्वर अमेरिका में हैं और शर्मा जी की समझ अलमारी में बंद पुराने रेडियो जैसी। फेसबुक वाले तो इन बयानों पर शायद उतना ही ध्यान देंगे जितना रेलवे स्टेशन पर लोग ‘जागरूकता पोस्टर’ पर देते हैं।

और इसी बीच, एक नया खेल शुरू हो जाता है । “गंभीर चेतावनी को कॉपी-पेस्ट न करने वाले अगले सात दिन में दुर्भाग्य के शिकार होंगे।” अब देखिए, यह चेतावनी है या श्राप? सोशल मीडिया क्या बन गया है, सूचना का तांत्रिक अखाड़ा?

राम राम लिखने भर से 7 घंटों में धन की बौछार होने लगे तो अदानी अपने सब कर्मचारी इसी काम में लगा दें।

इस सब में असली मज़ा तब आता है, जब कोई प्रबुद्ध आत्मा, अपने टूटे फूटे कविता टाइप के स्टेटस को महादेवी वर्मा की रचना बता देता है। कविता कुछ यूँ होती है ,

“तेरा मेरा रिश्ता है वाईफाई से जुड़ा,

पासवर्ड गलत हो तो दिल भी जुदा।”

और नीचे लिखा होता है कवियित्री महादेवी वर्मा ।

बारम्बार यदि यही फॉरवर्ड रिपीट हो जाए तो गूगल के सर्वर भी कनफ्यूजिया जाते हैं, और प्रश्न करने पर कि ये पंक्तियां किसकी हैं, उत्तर मिलता है महादेवी वर्मा की । इस तरह स्व. महादेवी जी को नए संग्रह के लिए स्वर्ग में ही बैठे बैठाए नई सामग्री सुलभ हो जाती है।

कविताओं से लेकर खबरों तक, यहां हर कोई ‘शेयर’ के बटन से विद्वान बन चुका है। किसी दिन सूरज पश्चिम से उग जाए, और कोई उसे “Breaking News ग्रहों की चाल बदली” के साथ शेयर कर दे तो आश्चर्य मत करना।

ये सिलसिला सिर्फ कविताओं या चेतावनियों तक ही सीमित नहीं है। कभी आपको संदेश मिलेगा “खाली पेट लहसुन खाइए, तो कैंसर भाग जाएगा।”  कैंसर अगर लहसुन से भागता, तो हर सब्जी वाले को ऑन्कोलॉजिस्ट घोषित कर देना चाहिए था।

समस्या ये नहीं कि लोग फॉरवर्ड करते हैं, समस्या ये है कि बिना देखे, बिना परखे, बस ‘डर या जोश’ के बहाव में शेयर कर देते हैं। किसी ने भी नहीं पूछा कि “क्या सच में फेसबुक आपकी फोटो चोरी कर लेगा?”, “क्या महादेवी वर्मा जी को इंस्टाग्राम की जानकारी थी?”, “क्या किसी स्टेटस से कोई लीगल इफेक्ट होता है?” क्या मेटा को ए आई के जमाने में भी आपकी फोटो के कथित उपयोग की जरूरत आन पड़ी है?

इन सबके बीच, सोशल मीडिया का एक नियम है  “अगर किसी बात को दस लोगों ने शेयर कर दिया, तो वह खुद-ब-खुद सत्य हो जाती है!” और यही सत्य हमारे समाज का सबसे बड़ा मज़ाक बन चुका है।

अगर ये ट्रेंड इतिहास में होता तो? अकबर की आत्मकथा में लिखा होता  “यह ताम्रपत्र वाट्सऐप से प्राप्त हुआ, आगे फॉरवर्ड न करने पर सल्तनत संकट में आ जाएगी।” ताजमहल की दीवार पर लिखा होता  “मुमताज़ का ये मकबरा गूगल मैप के सुझाव पर बनवाया गया।” और तुलसीदास की रामचरितमानस में अंत में एक नोट जुड़ा होता “इस रचना को 5 मित्रों को भेजें, नहीं तो रावण का प्रकोप आएगा!”

अब वक्त आ गया है कि हम ये समझें  कि सोशल मीडिया पर ‘सतर्कता’ एक जिम्मेदारी है, फॉरवर्ड करना विद्वता नहीं है। किसी भी कविता, खबर, चेतावनी या ज्ञानवर्धक नोट को आंख मूंदकर कॉपी-पेस्ट करना ज्ञान नहीं, आलस्य है।

हमारी पीढ़ी के पास जो सबसे बड़ी ताकत है, वह है , हँसने की शक्ति और सोचने की स्वतंत्रता। तो अगली बार जब कोई बोले, “आज ही फेसबुक को चेतावनी दो”, तो मुस्कराकर कहिए  “पहले ज़रा चेतावनी खुद को दे लूं कि अगली बार कुछ भी आंख मूंदकर न शेयर करूं।”

और हाँ, फेसबुक वाले अगर आपकी तस्वीरें चुराकर कुछ करना चाहें तो कम से कम दाढ़ी बनाकर ढंग से फोटो खिंचवाइए… क्या पता “मेटा” में भी स्टाइल का चलन हो ।

 

फेसबुक प्राइवेसी चेतावनी: अफवाहों से बचने की एक सीख:-

जब हाल ही में फेसबुक प्राइवेसी चेतावनी का संदेश वायरल हुआ, जिसमें कहा गया कि आपकी सभी पोस्ट सार्वजनिक हो जाएंगी, तो लाखों यूजर्स ने इसे सच मानते हुए अपनी प्रोफाइल्स पर नोटिस डालना शुरू कर दिया। बाद में यह स्पष्ट हुआ कि यह सिर्फ एक सोशल मीडिया अफवाह थी।

यह उदाहरण दर्शाता है कि कैसे एक साधारण भ्रम हजारों लोगों के डिजिटल व्यवहार को प्रभावित कर सकता है।

 

सामाजिक और राजनीतिक नुकसान:-

सोशल मीडिया अफवाह केवल निजी स्तर पर हानि नहीं पहुँचाती, बल्कि इसके दुष्परिणाम सामूहिक रूप से सामने आते हैं:

धार्मिक तनाव: एक गलत खबर दो समुदायों के बीच तनाव पैदा कर सकती है।

राजनीतिक द्वेष: नेताओं या पार्टियों को बदनाम करने के लिए झूठी जानकारियाँ फैलाई जाती हैं।

अर्थव्यवस्था पर असर: शेयर बाजार में अफवाहों के कारण बड़ा उतार-चढ़ाव देखा गया है।

इन कारणों से सोशल मीडिया अफवाह एक गंभीर राष्ट्रीय चिंता बन चुकी है।

 

सोशल मीडिया व्यंग्य: कटाक्ष या चेतावनी?

आजकल सोशल मीडिया अफवाह पर कई मीम्स और जोक्स भी देखने को मिलते हैं। सोशल मीडिया व्यंग्य के माध्यम से कुछ लोग इन अफवाहों का मज़ाक उड़ाते हैं, लेकिन यह भी एक तरह से समाज को आईना दिखाने का कार्य करता है। व्यंग्य के ज़रिये लोगों को यह समझाने की कोशिश की जाती है कि “हर चीज जो दिखे, वो सही नहीं होती।”

सोशल मीडिया व्यंग्य कई बार सोशल मीडिया अफवाह के प्रति जनजागरूकता बढ़ाने में कारगर साबित होता है।

 

जागरूकता ही समाधान है:-

सरकार और निजी कंपनियों द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं:

डिजिटल साक्षरता अभियान: लोगों को फर्जी खबरों की पहचान सिखाने के लिए।

फैक्ट चेकिंग पोर्टल्स: जैसे PIB Fact Check, Alt News, BOOM Live इत्यादि।

आईटी अधिनियम के तहत कड़ी कार्रवाई: अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ कानूनी कदम।

 

लेकिन इन सबसे ऊपर आवश्यक है कि आम नागरिक स्वयं जागरूक बने और हर खबर की सत्यता जांचे।

 

सोशल मीडिया अफवाह से बचने के उपाय:-

  1. फैक्ट चेक करें: किसी भी खबर को आगे बढ़ाने से पहले उसकी सच्चाई जाँचें।
  2. विश्वसनीय स्रोतों पर भरोसा करें: केवल प्रमाणिक वेबसाइट्स और चैनलों से जानकारी लें।
  3. भावनात्मक कंटेंट से सतर्क रहें: अफवाहें अक्सर भावनात्मक भाषा में आती हैं ताकि लोग जल्दी प्रभावित हों।
  4. शेयर करने से पहले सोचें: हर फॉरवर्ड एक ज़िम्मेदारी है।

यदि हर व्यक्ति यह चार सिद्धांत अपनाए, तो सोशल मीडिया अफवाह के खिलाफ बड़ी लड़ाई जीती जा सकती है।

 

निष्कर्ष: जिम्मेदार डिजिटल नागरिक बनें:-

21वीं सदी में तकनीक का जितना विकास हुआ है, उतना ही दुरुपयोग भी बढ़ा है। सोशल मीडिया अफवाह एक ऐसी आग है जो सूचनाओं की तेज़ रफ्तार हवा से और फैलती जाती है। मेटा की चेतावनी, फेसबुक प्राइवेसी चेतावनी और सोशल मीडिया व्यंग्य — ये सभी प्रयास इस बात की ओर संकेत करते हैं कि हमें अब और अधिक सतर्क और जागरूक बनना होगा।

अगर हम चाहें तो हर सोशल मीडिया अफवाह को उसी सोशल मीडिया पर ही परास्त कर सकते हैं – बस जरूरत है विवेक, जानकारी और ज़िम्मेदारी की।

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