आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। इसके जरिए हम न केवल अपने परिवार और मित्रों से जुड़े रहते हैं, बल्कि दुनियाभर की खबरों, घटनाओं और विचारों से भी वाकिफ होते हैं। लेकिन इस सुविधा के साथ एक गंभीर खतरा भी जुड़ा है—Social Media Fake News।
Social Media Fake News न केवल समाज में भ्रम और तनाव फैलाती है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा, लोकतंत्र, और नागरिकों की मानसिकता पर भी गहरा असर डालती है। सोशल मीडिया पर वायरल होने वाली अफवाहें, झूठी खबरें और मनगढ़ंत तथ्य आम जनता को गुमराह करने का काम करते हैं।
फेक न्यूज़(Fake News) कैसे फैलती है?
आजकल किसी भी खबर को सोशल मीडिया फेक न्यूज़ (Social Media Fake News) के जरिए फैलाना बेहद आसान हो गया है। एक व्हाट्सएप फॉरवर्ड, फेसबुक पोस्ट, इंस्टाग्राम स्टोरी या ट्विटर ट्रेंड मिनटों में हजारों लोगों तक पहुंच सकता है। इसके पीछे एक प्रमुख कारण यह है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अधिकांश यूजर्स खबरों की सच्चाई जांचे बिना उसे आगे शेयर कर देते हैं।
उदाहरण के लिए, Meta Facebook Rumor या Meta Privacy Rumor से संबंधित झूठी खबरें अक्सर तेजी से वायरल होती हैं। लोग बिना पुष्टि के मान लेते हैं कि “आपकी चैट अब सार्वजनिक की जा रही है” या “Meta आपकी तस्वीरों का इस्तेमाल विज्ञापन के लिए करेगा।” इन अफवाहों का कोई तथ्यात्मक आधार नहीं होता, फिर भी वे तेजी से फैल जाती हैं।
फेसबुक और अफवाहों की भरमार:-
Facebook Warning Fake Message के नाम पर अक्सर एक स्टेटस या मैसेज वायरल होता है, जिसमें लिखा होता है कि “फेसबुक अब आपकी निजी जानकारी को बेचने जा रहा है, इसे रोकने के लिए यह स्टेटस कॉपी-पेस्ट करें।” यह एक पुराना झूठ है जो समय-समय पर नए रूप में वापस आता है।
Facebook Privacy Policy 2025 के नाम पर कई यूजर्स को गुमराह करने वाली अफवाहें भी फैलाई जा रही हैं। नई पॉलिसी के नाम पर झूठे दावे किए जाते हैं कि फेसबुक अब आपकी लोकेशन, गैलरी, ऑडियो और वीडियो का प्रयोग किसी भी उद्देश्य से कर सकता है। हालांकि, Meta बार-बार यह स्पष्ट करता रहा है कि उसकी Privacy Policy यूजर की सहमति के बिना किसी भी निजी जानकारी का उपयोग नहीं करती।
एक दृष्टी इस व्यंग्य की ओर जो विवेक रंजन श्रीवास्तव द्वारा किया गया है:-
मेटा की मायावी चेतावनी
(विवेक रंजन श्रीवास्तव)
कल सुबह की बात है। चाय का प्याला हाथ में लेकर अखबार पढ़ ही रहा था कि मोबाइल की स्क्रीन पर ‘दुनिया बदलने वाला’ एक मैसेज आ टपका। लिखा था “चेतावनी! कल से फेसबुक, मेटा के नाम से आपके चित्रों का उपयोग कर सकता है। आज अंतिम दिन है विरोध दर्ज कराने का।” नीचे एक लंबा-चौड़ा घोषणा-पत्र टाइप स्टेटमेंट था “मैं फेसबुक को अपने कल, आज और भविष्य के चित्रों, विचारों, संदेशों या रचनाओं के उपयोग की अनुमति नहीं देता/देती।”
पढ़कर एक क्षण को तो लगा कि देश के सभी संविधान विशेषज्ञों ने संयुक्त रूप से संविधान संशोधन प्रस्ताव व्हाट्सऐप स्टेटस में डाल दिया है।
सच कहूं तो यह वही दृश्य था, जब आदमी तकनीक के समुद्र में तैरते हुए भी “तथ्य” की पतंग को “फॉरवर्ड” की डोर से उड़ाता है। सोशल मीडिया की यही तो खूबी है, कि यहां हर तीसरा प्राणी ‘डिजिटल गुरु’, ‘कविता संकलन संपादक’, और ‘कानूनी सलाहकार’ होता है ,बशर्ते वो अपने फॉरवर्ड को सच मानने को तैयार हो।
जो मित्र आज तक बैंक लॉगिन और लॉगआउट में उलझे रहते थे, वे अचानक ‘डिजिटल अधिकारों’ की रक्षा में सुप्रीम कोर्ट के जज बन गए! जिन्होंने अब तक अपना पर्स,अपनी बैंक की पासबुक पत्नी से छिपाकर रखी, वे भी ‘प्राइवेसी राइट्स’ पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं,फेसबुक को ललकार कर।
हमारे मोहल्ले के शर्मा जी सहित कई मूर्धन्य विद्वानों ने बिना किसी फैक्ट चेक के भेड़ चाल चलते हुए तुरंत बाकायदा स्टेटस डाला “मैं मेटा को सूचित करता हूं कि मेरी प्रोफाइल और इसकी सामग्री पर आपका कोई अधिकार नहीं है।”। जो लेखक महोदय चाहते हैं कि उनकी कथित कविता हर अखबार कापी पेस्ट कर छाप कर उन्हें धन्य करे उन साहित्यकार महोदय ने भी यह घोषणा यथावत रिपीट कर दी। समझ सकते हैं कि फेसबुक के सर्वर अमेरिका में हैं और शर्मा जी की समझ अलमारी में बंद पुराने रेडियो जैसी। फेसबुक वाले तो इन बयानों पर शायद उतना ही ध्यान देंगे जितना रेलवे स्टेशन पर लोग ‘जागरूकता पोस्टर’ पर देते हैं।
और इसी बीच, एक नया खेल शुरू हो जाता है । “गंभीर चेतावनी को कॉपी-पेस्ट न करने वाले अगले सात दिन में दुर्भाग्य के शिकार होंगे।” अब देखिए, यह चेतावनी है या श्राप? सोशल मीडिया क्या बन गया है, सूचना का तांत्रिक अखाड़ा?
राम राम लिखने भर से 7 घंटों में धन की बौछार होने लगे तो अदानी अपने सब कर्मचारी इसी काम में लगा दें।
इस सब में असली मज़ा तब आता है, जब कोई प्रबुद्ध आत्मा, अपने टूटे फूटे कविता टाइप के स्टेटस को महादेवी वर्मा की रचना बता देता है। कविता कुछ यूँ होती है ,
“तेरा मेरा रिश्ता है वाईफाई से जुड़ा,
पासवर्ड गलत हो तो दिल भी जुदा।”
और नीचे लिखा होता है कवियित्री महादेवी वर्मा ।
बारम्बार यदि यही फॉरवर्ड रिपीट हो जाए तो गूगल के सर्वर भी कनफ्यूजिया जाते हैं, और प्रश्न करने पर कि ये पंक्तियां किसकी हैं, उत्तर मिलता है महादेवी वर्मा की । इस तरह स्व. महादेवी जी को नए संग्रह के लिए स्वर्ग में ही बैठे बैठाए नई सामग्री सुलभ हो जाती है।
कविताओं से लेकर खबरों तक, यहां हर कोई ‘शेयर’ के बटन से विद्वान बन चुका है। किसी दिन सूरज पश्चिम से उग जाए, और कोई उसे “Breaking News ग्रहों की चाल बदली” के साथ शेयर कर दे तो आश्चर्य मत करना।
ये सिलसिला सिर्फ कविताओं या चेतावनियों तक ही सीमित नहीं है। कभी आपको संदेश मिलेगा “खाली पेट लहसुन खाइए, तो कैंसर भाग जाएगा।” कैंसर अगर लहसुन से भागता, तो हर सब्जी वाले को ऑन्कोलॉजिस्ट घोषित कर देना चाहिए था।
समस्या ये नहीं कि लोग फॉरवर्ड करते हैं, समस्या ये है कि बिना देखे, बिना परखे, बस ‘डर या जोश’ के बहाव में शेयर कर देते हैं। किसी ने भी नहीं पूछा कि “क्या सच में फेसबुक आपकी फोटो चोरी कर लेगा?”, “क्या महादेवी वर्मा जी को इंस्टाग्राम की जानकारी थी?”, “क्या किसी स्टेटस से कोई लीगल इफेक्ट होता है?” क्या मेटा को ए आई के जमाने में भी आपकी फोटो के कथित उपयोग की जरूरत आन पड़ी है?
इन सबके बीच, सोशल मीडिया का एक नियम है “अगर किसी बात को दस लोगों ने शेयर कर दिया, तो वह खुद-ब-खुद सत्य हो जाती है!” और यही सत्य हमारे समाज का सबसे बड़ा मज़ाक बन चुका है।
अगर ये ट्रेंड इतिहास में होता तो? अकबर की आत्मकथा में लिखा होता “यह ताम्रपत्र वाट्सऐप से प्राप्त हुआ, आगे फॉरवर्ड न करने पर सल्तनत संकट में आ जाएगी।” ताजमहल की दीवार पर लिखा होता “मुमताज़ का ये मकबरा गूगल मैप के सुझाव पर बनवाया गया।” और तुलसीदास की रामचरितमानस में अंत में एक नोट जुड़ा होता “इस रचना को 5 मित्रों को भेजें, नहीं तो रावण का प्रकोप आएगा!”
अब वक्त आ गया है कि हम ये समझें कि सोशल मीडिया पर ‘सतर्कता’ एक जिम्मेदारी है, फॉरवर्ड करना विद्वता नहीं है। किसी भी कविता, खबर, चेतावनी या ज्ञानवर्धक नोट को आंख मूंदकर कॉपी-पेस्ट करना ज्ञान नहीं, आलस्य है।
हमारी पीढ़ी के पास जो सबसे बड़ी ताकत है, वह है , हँसने की शक्ति और सोचने की स्वतंत्रता। तो अगली बार जब कोई बोले, “आज ही फेसबुक को चेतावनी दो”, तो मुस्कराकर कहिए “पहले ज़रा चेतावनी खुद को दे लूं कि अगली बार कुछ भी आंख मूंदकर न शेयर करूं।”
और हाँ, फेसबुक वाले अगर आपकी तस्वीरें चुराकर कुछ करना चाहें तो कम से कम दाढ़ी बनाकर ढंग से फोटो खिंचवाइए… क्या पता “मेटा” में भी स्टाइल का चलन हो । (विनायक फीचर्स)
सोशल मीडिया अफवाहों के दुष्परिणाम:-
Social Media Fake News के कारण कई बार देश में हिंसा, साम्प्रदायिक तनाव, और सामाजिक दरार पैदा हो जाती है। कई बार झूठे वीडियो या पोस्ट के कारण मासूम लोग मॉब लिंचिंग का शिकार हो जाते हैं।
Social Media Rumors की वजह से 2018 में झारखंड और महाराष्ट्र में कई निर्दोष लोगों को भीड़ द्वारा मार डाला गया। अफवाहें थी कि वे बच्चा चोर हैं। बाद में पता चला कि ये खबरें पूरी तरह फर्जी थीं और फेसबुक व व्हाट्सएप के जरिए फैलाई गई थीं।
Meta की जिम्मेदारी और प्रयास:-
Meta, जो कि फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप का संचालन करता है, अब Social Media Fake News को रोकने के लिए कई प्रयास कर रहा है। कंपनी ने फेक्ट-चेकिंग नेटवर्क, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एल्गोरिद्म और यूजर रिपोर्टिंग सिस्टम जैसे उपायों को अपनाया है।
फेसबुक पर अब यदि कोई खबर संदिग्ध होती है तो उस पर “False Information” टैग लगाया जाता है। साथ ही, यूजर्स को चेतावनी दी जाती है कि “इस खबर की सत्यता की पुष्टि नहीं हुई है”। यह Facebook Warning Fake Message के उलट एक वास्तविक चेतावनी होती है, जो यूजर्स को गलत जानकारी फैलाने से रोकने में सहायक होती है।
जनता की भूमिका:-
Social Media Fake News के खिलाफ सबसे प्रभावी हथियार जनता की जागरूकता है। अगर हम सभी यह तय करें कि बिना पुष्टि के कोई भी खबर साझा नहीं करेंगे, तो बहुत हद तक फेक न्यूज़ को रोका जा सकता है।
हमें यह समझने की ज़रूरत है कि हर वायरल खबर सही नहीं होती। Meta Facebook Rumor, Meta Privacy Rumor या Social Media Rumors पर आंख बंद करके विश्वास करना मूर्खता है। हमें खबरों की सच्चाई जानने के लिए भरोसेमंद स्रोतों का सहारा लेना चाहिए, जैसे कि न्यूज़ पोर्टल्स, फेक्ट-चेकिंग वेबसाइट्स, और सरकारी घोषणाएं।
सोशल मीडिया कंपनियों की नीति:-
फेसबुक की Privacy Policy 2025 यह सुनिश्चित करती है कि यूजर्स की जानकारी गोपनीय बनी रहे। कंपनी ने स्पष्ट किया है कि वह यूजर की सहमति के बिना कोई भी डाटा किसी तीसरे पक्ष के साथ साझा नहीं करेगी। इसके बावजूद, जब कोई Facebook Warning Fake Message या Meta Privacy Rumor वायरल होती है, तो लोगों में भ्रम पैदा हो जाता है।
सरकार और कानून:-
भारत सरकार भी Social Media Fake News को रोकने के लिए कड़े कदम उठा रही है। हाल ही में लागू हुए IT नियमों में सोशल मीडिया कंपनियों को यह निर्देश दिया गया है कि यदि कोई फर्जी खबर वायरल होती है, तो उसे 24 घंटे के भीतर हटाया जाए। इसके साथ ही, ऐसे कंटेंट को बढ़ावा देने वाले अकाउंट्स को ब्लॉक करने का प्रावधान भी है।
शिक्षा और डिजिटल साक्षरता की आवश्यकता:-
Social Media Fake News के खिलाफ लड़ाई केवल कानून और तकनीक से नहीं जीती जा सकती। इसके लिए जरूरी है कि आम जनता को डिजिटल साक्षर बनाया जाए। स्कूलों और कॉलेजों में डिजिटल साक्षरता को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए ताकि छात्र समझ सकें कि क्या सही है और क्या अफवाह।
निष्कर्ष:-
Social Media Fake News हमारे समाज के लिए एक चुनौती है, लेकिन यह अजेय नहीं है। यदि सरकार, सोशल मीडिया कंपनियां और आम नागरिक मिलकर जिम्मेदारी से कार्य करें, तो इस खतरे को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
हमें यह याद रखना चाहिए कि सोशल मीडिया एक ताकतवर उपकरण है—यह चाहे तो बदलाव ला सकता है और चाहे तो भ्रम फैला सकता है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम इसका उपयोग कैसे करते हैं।
Social Media Fake News को रोकने के लिए हमें हर खबर को दो बार सोचकर शेयर करना होगा, तथ्यों की पुष्टि करनी होगी, और अफवाहों से बचना होगा। तभी हम एक सशक्त, सूचित और सुरक्षित डिजिटल समाज की ओर बढ़ सकते हैं।
Frequently Asked Questions (FAQs)
Social Media Fake News क्या होती है?
उत्तर:
Social Media Fake News वे झूठी, भ्रामक या बिना पुष्टि की गई खबरें होती हैं जो फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म्स पर तेजी से वायरल होती हैं। इनका मकसद जनता को गुमराह करना, अफवाह फैलाना या किसी एजेंडा को बढ़ावा देना होता है।
सोशल मीडिया पर Fake News कैसे फैलती है?
उत्तर:
Fake News आमतौर पर व्हाट्सएप फॉरवर्ड, फेसबुक पोस्ट, इंस्टाग्राम स्टोरी, या ट्विटर ट्रेंड के माध्यम से फैलती है। यूज़र्स बिना सत्यता की जांच किए इन्हें फॉरवर्ड कर देते हैं, जिससे यह खबरें तेजी से वायरल हो जाती हैं।
क्या Facebook और Meta हमारी जानकारी का दुरुपयोग करते हैं?
उत्तर:
नहीं। Meta (Facebook की पैरेंट कंपनी) की Privacy Policy 2025 के अनुसार, वह आपकी जानकारी को आपकी अनुमति के बिना किसी तीसरे पक्ष के साथ साझा नहीं करता है। सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले Meta Privacy Rumors आमतौर पर झूठे होते हैं।
सोशल मीडिया पर वायरल Facebook Warning Messages क्या सच होते हैं?
उत्तर:
अधिकांश Facebook Warning Messages फेक होते हैं। जैसे कि “फेसबुक आपकी जानकारी बेच रहा है” या “Meta आपकी तस्वीरें इस्तेमाल करेगा” — यह सभी अफवाहें हैं जिनका कोई कानूनी या तकनीकी आधार नहीं होता।
सोशल मीडिया अफवाहों से क्या नुकसान हो सकते हैं?
उत्तर:
Fake News के कारण दंगे, मॉब लिंचिंग, सामाजिक तनाव और राष्ट्रीय असुरक्षा जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। भारत में कई बार फर्जी खबरों के चलते निर्दोष लोगों की जान चली गई है।
क्या Meta Fake News रोकने के लिए कुछ करता है?
उत्तर:
हाँ, Meta ने Fake News रोकने के लिए AI तकनीक, फैक्ट-चेकिंग नेटवर्क और रिपोर्टिंग सिस्टम लागू किए हैं। संदिग्ध खबरों पर “False Information” टैग भी लगाया जाता है।
हम Fake News से कैसे बच सकते हैं?
उत्तर:
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खबर को शेयर करने से पहले उसकी पुष्टि करें
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फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट्स जैसे Alt News, BOOM Live आदि का उपयोग करें
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सरकारी स्रोतों या प्रमाणिक न्यूज़ पोर्टल से जानकारी प्राप्त करें
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किसी भी खबर पर आंख मूंदकर विश्वास न करें
Fake News फैलाना क्या अपराध है?
उत्तर:
हाँ, भारत में Fake News फैलाना सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) और अन्य साइबर कानूनों के अंतर्गत दंडनीय अपराध है। सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों को ऐसे कंटेंट को 24 घंटे में हटाने का निर्देश दिया है।
सोशल मीडिया यूज़र्स की क्या ज़िम्मेदारी है?
उत्तर:
हर यूज़र की यह नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी है कि वह किसी भी खबर को शेयर करने से पहले उसकी सच्चाई की जांच करे। अफवाह फैलाना समाज और देश दोनों के लिए हानिकारक है।
डिजिटल साक्षरता (Digital Literacy) क्यों जरूरी है?
उत्तर:
Digital Literacy हमें यह सिखाती है कि कौनसी खबर सच्ची है और कौनसी झूठी। यह स्किल आज के समय में उतनी ही जरूरी है जितनी पढ़ना-लिखना, ताकि हम अफवाहों से बच सकें और समाज में सकारात्मक भूमिका निभा सकें।
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