23 जून, अंतराष्ट्रीय विधवा दिवस पर विशेष (कविता)

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“विधवा विवाह हेतु पहल”_ डॉ शिव शरण “अमल”

परम पिता परमेश्वर का,
जब ब्रम्ह देव ने ध्यान किया।
प्राप्त प्रेरणा से प्रेरित हो,
प्रकृति_पुरुष निर्माण किया।।

नर_मादा से युक्त सृष्टि मे,
सचराचर, जड़, चेतन हैं।
यही जगत की रीति_नीति है,
शास्वत नियम सनातन हैं।।

मानव ईश्वर की अनुपम कृति,
सेवक, शिष्य, सहायक हैं।
मनुशतरूपा, आदमहौवा,
के वंशज सब लायक हैं।।

नर_नारी जोड़े में रहकर,
सृष्टि चक्र विस्तार करें।
यही जगत पालक की इच्क्षा,
सभी इसे स्वीकार करें।।

न्याय दृष्टि मे कुदरत की,
नर_नारी सभी बराबर हैं।
जीवन यापन करने का,
सबको अधिकार जहां पर हैं।।

किसी वजह से अगर किसी का,
युग्म विखंडित हो जाता।
नर_नारी कोई भी हो,।
जीवन अभि _शापित हो जाता।।

इस विछोह की विरह, व्यथाएं,
कितनी घातक होती है?
कितना कष्ट ?वेदना कितनी ?
कितनी पीड़ा होती है ?

इस पीड़ा को कमतर करने,
पुनर्विवाह विधान बना।
फिर जीवन की क्यारी महके,
पावन नियम महान बना।।

पर धीरे_धीरे समाज की,
रीति_नीति मे धुंध पड़ी।
नर_नारी के बीच विषमता,
भेद_भाव की गंध पड़ी।।

पुनर्विवाह हुए पुरषों के,
महिलाओं को अलग किया।
रूढ़ वादिता_परम्परा से,
मातृ शक्ति को बांध दिया।।

इससे विधवा की हालत क्या ?
होती बात न कहने की।
जिस पर बीती वही जानता,
सीमा टूटी सहने की।।

क्या विधवा को अन्य नारियो,
जैसा जीवन नहीं मिले ?
पुत्री, भगनी, पत्नी, जननी,
की पदवी क्या नहीं मिले ?

करो खात्मा इस कुरीति का,
सज्जनता अब अपनाओ।
छोड़ रूढ़ियां, सद विवेक का,
निर्णय ले आगे आओ।।

छोड़ो अब इस ना समझी को,
जागो नारी कल्याणी।
परिवर्तन के स्वर मे भर दो,
गौरव _गरिमा की वाणी।।

गलत प्रथाएं, अंध बेड़ियां,
छद्म रिवाजे दूर करो।
वैमनुष्यता के पहाड़ को,
संकल्पों से चूर करो।।

तुम्ही द्रोपदी, तुम्ही अहिल्या,
कुंती, तारा, भी तुम हो।
कालीमती, बसन्ती, रोमा,
मरियम, सत्यवती तुम हो।।

नारी श्रद्धा है शुचिता है,
स्नेह मूर्ति सत धारी है।
उसे करो मत विमुख प्यार से,
नव_जीवन संचारी है।।

विधवा को भी अन्य नारियों,
जैसा जीने का हक है।
सुता, बहन, परिणीता, माता,
सब कहलाने का हक है।।

 

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