रिशवत खोरो से बदनाम हो रहा है राजस्व महकमा,अगर पैसे नही देगे तो,विभाग के चक्कर ही लगते रहेगी जनता-आंचलिक ख़बरें-राजेश सिंह बिसेन,मनीष शर्मा

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 बिलासपुर/ इन दिनों प्रदेश में भ्रष्टाचार काफ़ी बड़ा हुआ है चाहे वे प्रदेश की राजधानी हो या न्यायधानी बिलासपुर या प्रदेश के अन्य जिले हो। भ्रष्टाचार का बोलबाला सर्वत्र व्यप्त है। संभवत: कोई भी विभाग ऐसा नही है जो भ्रष्टाचार के चपेट में ना हो भ्रष्टाचार के दानव ने सभी को अपने प्रभाव में ले लिया है। इतना ही नही इस भ्रष्टाचार के दानव का सबसे ज्यादा प्रभाव देखने को मिलता है राजस्व महकमे में जहाँ बिना पैसा लिए दिये कोई भी कम नामुमकिन सा हो जाता हैऔर इतना ही नही बेईमानों ने इस रिशवत को नजराना के नाम से सम्बोधित करना प्रारंभ कर दिया है और इसका दूसरा नाम चढ़वा है। ये नाम भी इस दौर में काफ़ी प्रचलन में है अतः कमोबेश हर सरकारी दफ्तर में काम के बदले में नोटों के चढ़ावे का दस्तूर बन गया है। किसी भी विभाग के बड़े बाबू को बगैर चढ़ावा चढ़ाए किसी भी काम की फाइल आगे ही नहीं बढ़ती। इसलिए चढ़ावे की मांग से भ्र्ष्टाचार का बढ़ता ग्राफ, एक आम आदमी के लिए चिंतन का विषय बन गया है।

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इल्म हो कि राजस्व विभाग शुरू से ही भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है इस विभाग से ताल्लुक रखने वाले चपरासी से लेकर सभी कर्मचारी भ्रष्टाचार में गले तक डूबे हुए है पटवारी हो राजस्व निरीक्षक या फ़िर चाहे वो तहसीलदार ही क्यों ना हो एंकर राते भी चढ़वा मंगती है और सुबह नींद भी नजराना लेने के बाद ही खुलती है। इतना ही नही ये नजराना भी दलालों के माध्यम से लेते है इनके दलाल पूरे दफ्तरों में काम करवाने के नाम से ग्राहकों पर अपनी गिद्ध दृष्टि गड़ाए रहते है।और जब नजराना यानि रिशवत कि रकम तय हो जाती है तो ये अधिकारी से बात कर इनके कार्यों को अंजाम देते है। इल्म हो कि ये कोई एक जिले की बात नही है बल्कि पूरे प्रदेश का यही हाल है और तो और इनको किसी भी कार्यवाही का भय भी नही है अब रायपुर की ही बात ले लो राजधानी के मठपुरैना इलाके में कुछ समय पूर्व एक महिला पटवारी पदस्थ थी,उसका नाम था तरीका सोन ये महिला पटवारी अपने पद का पूर्णतः दुरुपयोग करते हुए जनता से जमीन सम्बन्धी कार्यों के लिये मुँह माँगी कीमत वसूल करती थी और कीमत ना मिलने पर उसका काम ही नही करती थी।इतना ही नही उसे अपने पदस्थ स्थान से लगभग तीन बार हटाया जा चुका था।लेकिन कुछ ही दिनों में वो अपनी पदस्थापना अपने मूल स्थान मठपुरैना पटवारी के रूप में करवा लेती थी। इतना ही नही वो डंके की चोट पर यह बात कहती थी कि उसको यहा से कोई नही हटा सकता,चाहे प्रशासन या सरकार जितना भी जोर लगा ले।लेकिन कुछ ही माह पूर्व रायपुर कलेक्टर डॉ. भारतीदासन के निर्देश पर पटवारी तारिका सोनी पर निलम्बन की गाज गिरि और उन्हें शासकीय कार्यों में लापरवाही बरतने के कारण पद से बेदखल किया गया और उन पर यह भी आरोप लगा कि पटवारी ऑन लाइन भू-अभिलेख और नक्सा को अपडेट नही किया जा रहा था।कलेक्टर रायपुर द्वारा की गई कार्यवाही वाकई सराहनीय थी लेकिन पटवारी तारिका सोनी के बारे में यह ज्ञात हुआ कि उसका कोई भी आई.ए. एस. ऑफिसर है जो हर बार उसकी पदस्थापना उसी स्थान पर करवा देता है।इस बार फिर कुछ माह पूर्व उसको पटवारी के पद से निलंबित कर दिया गया था ।लेकिन ज्ञातव्य हुआ है कि वो अपने स्थान पर वापस आने के लिए लगभग 10 लाख रुपये तक देने को तैयार है अब इतनी बड़ी रक़म देख कर किसका ईमान नही डगमगाएगा आप खुद ही सोचा सकते है। एक बात और सोचने वाली है कि क्या इनकी सजा सिर्फ निलम्बन ही है ऐसे पटवारी को तो बर्खास्त कर देना चाहिए क्योंकि ऐसे लोगों के कारण ही सरकार बदनाम होती है।इतना ही नही इनकी बार-बार पदस्थापना करवाने वाला भाई भी दोषी है जो अपनी बहन को ऐसे कृत्य के लिये सहयोग कर रहा है उसके पता लगाकर सरकार को उसे भी इस कृत्य के लिए दंडित करना चाहिए। इतना ही अगर वास्तविक नज़ारा देखना है तो राजस्व विभाग के तहसील कार्यालय में जाकर सब कुछ खुली आँखों से देखा जा सकता है कि जमीन संबंधी मामलों में एक आम आदमी किस तरह से धक्के खाता है और किस प्रकार से उपेक्षित होता है।बेबस नज़र आता है इस कार्यालय के बाबू,पटवारी, और अधिकारियों के सामने अपने काम के लिये गिड़गिड़ाते नज़र आते है और यह मामला बहुत ही मार्मिक होता है।यक़ीनन यहां के हालात देखकर अफसोस होता है।कि अपने काम करवाने के लिये ये अधिकारी और बाबू के सामने किस तरह से विनती करते है कोई कहता है कि साहेब पैसे लेलो लेकिन आज काम कर दो,लेकिन टालो मत,तो कोई कहता है कि साहेब पैसा कुछ कम है आप काम कर दो,तो कोई कहता है साहब कर्ज लेकर आया हूँ मेरा काम कर दीजिए,तो कोई कहता है साहब एक माह से चक्कर लगा रहा हूँ।.साहब मेरा नामांकन रुका हुआ है,साहब मेरा सीमांकन…,साहब मेरा नामान्तरण…,साहब मेरा बी वन खसरा… तो कोई कहता है कि साहब मेरी मां की मौत हो गई है मेरा नाम चढ़ाना है,और कोई यह भी कहता नजर आता है कि साहब ऋण पुस्तिका बना दीजिये,यह सब देखकर बहुत ही दुःख होता है कि एक आम आदमी सरकार के बनाये नियम और कानून का पालन करने के लिए इस दफ्तर में कितने धक्के खाता रहता है और ये अधिकारी और कर्मचारियों के कानों में जूं तक नही रेंगती,जबकि ये जनता के नोकर है और जनता से ही अभद्रता पूर्वक व्यहार करते है अब सवाल यह उठता है कि सभी सरकारी दफ्तरों में सरकार ने कानून बना रखा है काम को समय सीमा में पूरा करना है तो फिर कैसे ये सरकारी नौकर जनता के काम के एवज में रिशवत की मांग क्यों करते है! ऐसे मामले ज्यादातर पटवारियों के दफ्तर में सुनाई देते है,जब कोई गरीब व्यक्ति अपनी जमीन संबंधित कोई भी काम लेकर पटवारी के सरकारी दफ्तर में पहुँचता है,तो उक्त व्यक्ति से पैसे मांगे जाते है “पटवारियों का यह उसूल बन गया है पहले पैसा फिर काम, पैसा नही तो काम नही” ऐसा नही है इतना ही नहीं पटवारियों का दफ्तर भी शानदार होता है और वो अपने पास कार्य करने के लिये तीन-चार कर्मचारियों को भी रखता है जो गैर सरकारी मुलाजिम होता है ये शासन के जांच का विषय है कि पटवारी का वेतन जितना होता है उस वेतन के सहारे तीन-चार कर्मचारियों को कैसे रखता है ज़ाहिर सी बात है कि रिशवतखोरी से ही यह सब संभव हो सकता है और पटवारी का यह गैर सरकारी कर्मचारी आगन्तुक को काम हो जाने का आश्वासन देकर काम की कीमत बताता है सभी काम की कीमत तय होती है। इतना ही नही पटवारी का गैर सरकारी कर्मचारी सीधे कहता है कि पैसा लेकर आओगे तो काम होगा,नही तो पटवारी उस व्यक्ति को इतना घुमाएगा की वह थक हारकर और परेशान होकर काम करवाने पटवारी के दफ्तर आना बन्द कर देगा या फिर कर्ज लेकर पटवारी को पैसा देकर काम करवायेगा, फिर शिकायत करेगा अब आप सभी जानते हैं कि पटवारियों की शिकायत पर कितनी कार्यवाही होती है।कुछ भी नही ,क्योंकि कि ऐसा नही है कि
सभी वरिष्ठ अधिकारियों को यह ज्ञात नही है या सरकार नही जानती राजस्व विभाग में पटवारी का क्या कृत्य है सब को सब कुछ पता है लेकिन फिर भी सरकार भ्रष्टाचार को दूर करने की बात करती है जनता से जनता के सामने तो यह शर्मनाक है यही हाल भाजपा सरकार में था और अब यही हाल भूपेश सरकार में भी चल रहा है संभवतः यही कारण है कि जनता का विश्वास का डोलता और फिर मंज़र बदल जाता है। इल्म हो कि इन्हें एंटी करप्शन ब्यूरो(ए. सी.बी.)की कार्यवाही भी भ्रष्टाचार से मुक्त नही करा सकती है।जबकि इसी विभाग के कर्मचारियों पर एसीबी की कार्यवाही की गाज आये दिन गिरती रहती है।लेकिन इतने कार्यवाही के बाद भी यहाँ नज़राने की परंपरा आज भी कायम है आख़िर ऐसा क्यों है ये अपने आप मे एक बड़ा सवाल है।एक बात और भी गौर करने वाली है कि इन रिशवतखोरो के जमात में एसीबी का शिकंजा किसी एक पर ही कसता हैं लेकिन फिर भी इस विभाग के अधिकारियों और कर्मचारी अपनी हरकतों से बाज़ नही आते, और भ्रष्टाचार में लिप्त रहते है।
इल्म हो कि बिलासपुर जिले के एक पटवारी जिस पर एसीबी की कार्यवाही लंबित है वो आज रसूखदार के नाम से जाना जाता है और वह हर काम के पैसे डंके की चोट पर करता है इतना ही नही उसके पास चार पहिया वाहन है उसके क्षेत्र में कई सरकारी अधिकारियों की बेनामी अनुपातहीन संपत्तियों जमीनें प्लाट, फार्महाउस, आलीशान मकान और प्लाट में हिस्सेदारी है इसलिए अधिकारी भी मौन धारण किये रहते है। ज़ाहिर है कि ऐसे अधिकारियों की काली कमाई का कच्चा चिठ्ठा पटवारी के पास है अब ऐसे में पटवारी रसूखदार है तो उसका कौन कुछ बिगड़ सकता है। इतना ही नही ये पटवारी सरकार के मुलाज़िम तो होते है लेकिन ये गुलामी बिल्डर, बड़े भूमाफिया, और रसूखदारों की करते है इनकी गुलामी में इन्हें बड़ा फायदा होता है गरीब और आम आदमी से इन्हें कुछ ख़ास हासिल नही होता इसीलिए ये आम आदमी कल,परसों या एक माह बाद आना कहकर टाल देते है।अतः न्यायधानी बिलासपुर सहित सभी प्रदेश में पटवारियों द्वारा यही खेल खेला जा रहा है और इसकी जानकारी से कलेक्टर, एस डी एम और तहसीलदार अनभिज्ञ नही है यक़ीनन इस कृत्य की जानकारी होने के बाद भी इनकी ख़ामोशी गले नही उतर रही है। कि जिनको दंड देने चाहिए वही ख़ामोश है अतः ये इस ओर इशारा करता है कि इन वरिष्ठ अधिकारियों का वरदहस्त पटवारियों को प्राप्त है,और इसी बात का फायदा उठाकर रसूखदार पटवारी अपने क्षेत्र में भूमाफियाओं से मिलकर सरकारी जमीन और खाली पड़ी जमीन को क़ब्जा कर बेच देते है,जिसका पता किसी को नही चलता है।चूंकि मौके का फायदा उठाना और भूमाफियाओं को अपने साथ रखना पटवारियों की शोहबत में है और इसी कारण जनता का काम कम और भूमाफियाओं, जमींन दलालों और रसुखदारो का काम ज्यादा और तय समय से पहले करते है। इतना ही नही राजस्व विभाग के ज़्यादातर पटवारी हल्कों में अवैध प्लाटिंग की इन दिनों बाढ़ सी आ गई है लोग राजस्व विभाग के एसडीएम,तहसीलदार पटवारियो को इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं और यह बात सोलह आने सच भी है।अवैध प्लाटिंग का सीधा मतलब ये कि बिल्डर द्वारा राजस्व नियमों की अनदेखी कर मकान बनाने जमीन की टुकड़े टुकड़े में लोगों को बिक्री करना। इस पूरी प्रक्रिया में राजस्व विभाग की महत्वपूर्ण भूमिका होने के बाद भी उसका मौन रहना कार्यवाही ना करना ही कई गंभीर सवालों को जन्म देता है।

इल्म हो कि राजस्व अधिकारियों को मौखिक, लिखित और मीडिया की खबरों के माध्यम से जानकारी मिल रही है कि मोपका,सकरी,घुरू,अमेरी और मंगला में बेख़ौफ अवैध प्लाटिंग को अंजाम दिया जा रहा है,लेकिन अवैध प्लाटिंग को रोकने में राजस्व विभाग का जिम्मेदार अमला पूरी तरह से नाकाम साबित हो रहा है? सूत्र बताते हैं कि बिल्डर नें अधिकारियों की शह पर बेचे जाने वाली जमीन का ना तो डायवर्सन करवाया है ना ही जमीन टीएनसी अप्रूव्ड है ना ही रेरा में पंजीकृत मतलब साफ है कि राजस्व अधिकारियों के साथ मिलकर सोची समझी रणनीति के तहत लोगों को ठगने और खुद को मालामाल करने की बड़ी साजिश को अंजाम दिया जा रहा है।ज़ाहिर सी बात है कि भूमाफिया और रसूखदार बिल्डर भूराजस्व अधिनियम को तारतार कर जमीन का अवैध प्लाटिंग कर, बिक्री का काम धड़ल्ले से बेख़ौफ कर रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि इन जमीनों की प्लाटिंग में अधिकारियों के सगे संबंधियों के नाम पर भी प्लाट रखे गए हैं। ये भ्रष्टाचार ही तो है।जो खुलेआम राजस्व विभाग के द्वारा किया जा रहा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो भ्रष्टाचार में ना ही कमी आएगी और ना ही इसे जड़ से ही खत्म किया जा सकता है। इस भ्रष्टाचार को मिटाने का बीड़ा तो प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को खुद ही उठाना होगा तभी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया का सकता है नही तो यह खेल लगातार जारी ही रहेगा।

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