बेसहारा पशुओं का इलाज करना ही मकसद बन चुका है डॉ.अनिल का

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संजय सोनी-झुंझुनू।सर्दी हो या गर्मी,रात हो या दिन,कोई भी समय हो। विपरीत परिस्थितियों के बीच भी मोबाइल पर कहीं से भी किसी पशु के बीमार अथवा जख्मी होने की सूचना मिलते ही सेवा भाव से तुरन्त मौके पर पहुंचते हैं डॉ.अनिल खीचड़। डॉ.अनिल खीचड़ दवाओं से लेकर मरहम पट्टी तक का काम स्वयं करते हैं तथा दवाओं खर्च भी स्वयं उठाते हैं। राजस्थान में झुंझुनू के डॉ. अनिल खीचड़ पिछले चार वर्षों से नि:स्वार्थ भाव से यह काम कर रहे हैं। पहले पक्षियों की सेवा करने के बाद उन्होंने पशुओं की सेवा करनी शुरू कर दी। अपने सेवाभावी काम में सहयोग के लिए उन्होंने शहर में करीब दो दर्जन लोगों को जागरूक कर अपनी टीम में शामिल किया है।

डॉ. अनिल खीचड़ का मानना है कि अधिक से अधिक लोग जागरूक होकर पशु,पक्षियों को बचाने में उनकी मदद करें इसी उद्देश्य से उन्होंने अपनी गाड़ी पर इस बाबत पोस्टर लगाकर अपना मोबाइल नम्बर अंकित किया है। पशु,पक्षियों के उपचार की तमाम तरह की आवश्यक दवाइयां व उपचार में काम आने वाले अन्यआवश्यक सामान वो अपनी गाड़ी में हर समय उपलब्ध रखते है

जिले में कहीं पर भी पशु बीमार या घायलावस्था में होने पर लोग इसकी तत्काल सूचना डॉ. खीचड़ को देते हैं। इनकी टीम मौके पर पहुंचकर दवाइयों से लेकर ऑपरेशन तक पूरा उपचार नि:शुल्क करती है। इतना ही नहीं यह टीम पशुओं को पूरी तरह से स्वस्थ होने तक देखरेख से लेकर खानपान तक का ध्यान रखती है।

डॉ. अनिल खीचड़ निःशुल्क सेवा के साथ ही अपनी गाड़ी का व्यय भी स्वयं खुद ही वहन करते है। मूक प्राणियों की सेवा को ही जीवन उद्देश्य मानने वाले डॉ अनिलखीचड़ समय समय पर लोगों को बेसहारा पशुओं की देखभाल हेतु जागरूक करते रहते है।

डॉ अनिल खीचड़ का जन्म 3 नवंबर1990 को झुंझुनू जिले के निवाई गांव में हुआ था। इनके पिता राजेंद्र सिंह शिक्षाविभाग में अतिरिक्त परियोजना समन्वयक के पद पर हैं। डॉ अनिल के  छोटे भाई राजस्थान पुलिस सेवा में सेवारत है। इनकी  पत्नी डॉ प्रमोद बीएएमएस है और झुंझुनू जिले के ही इस्लामपुर कस्बे में सेवारत है। उन्होंने पशु चिकित्सक के रूप में अपना कोर्स पूरा किया। उन्हें सरकारी नौकरी का कभी कोई मोह नहीं रहा। उनका मानना है कि सरकारी नौकरी में रहते हुए बहुत से बंधनों में बंधा रहना पड़ता है जबकि वह मात्र प्राणियों की सेवा को ही धर्म मानते हैं।

5 वर्ष पूर्व अपने चिकित्सकीय कोर्स के दौरान एक मोर के करंट से घायल होने के कारण उसे तड़पता हुआ देखकर इनका हृदय विचलित हुआ और उन्होंने उसे हर कीमत पर ठीक करने की ठान ली। 6 दिन की कड़ी मशक्कत के बाद आखिर उस मोर को बचाने में कामयाबी मिली उनके दिल को शांति सुकून मिला कि हम मैंने कम से कम एक मूक प्राणी कि आज जान बचाकर कुछ अच्छा किया है। बस तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और प्राणियों को बेसहारा पशुओं को पक्षियों को बचाने का बेड़ा उठा लिया।

जब उनसे पूछा गया कि कभी उन्हें किसी प्रकार की पशु पक्षियों की सेवा में कोई दिक्कत आई हो तो उन्होंने बताया कि सबसे मुश्किल काम होता है बेसहारा पशुओं को कंट्रोल में करना। आज के समय में सबसे ज्यादा दिक्कत आवारा घूम रहे सांड के घायल होने पर उन्हें काबू करने में दिक्कत होती है। सांड को कंट्रोल करना बहुत ही मुश्किल काम माना गया है क्योंकि 1 सांड के अंदर 20 आदमियों के बराबर का फोर्स होता है। उन्होंने कभी भी सरकारी नौकरी के लिए चाह नहीं रखी उनके इस कार्य के लिए उनकी पत्नी भी इन्हें प्रोत्साहित करती है वहीं इनके पिता भी पिता व माता भी भरपूर सहयोग करते हैं। खुद की आजीविका किस प्रकार चलती है इस बारे में उनका कहना है कि बेसहारा पशु पक्षियों का इलाज तो है निशुल्क करते हैं लेकिन अपना खुद का एक निजी पैट हाउस भी चलाते हैं जिससे उनका आजीविका अर्जित हो जाती है। डॉ अनिल ने  अब तक 1000 से अधिक पशु पक्षियों पशु पक्षियों का इलाज कर चुके है।

डॉक्टर ने बताया कि कई दफा नगर परिषद, नगर पालिकाओं द्वारा दी उन्हें फोन पर सूचना दी जाती है कि फलां जगह किसी बेसहारा पशु को तकलीफ है दयनीय स्थिति में है तो तुरंत ही वहां के लिए निकल पड़ते है। उन्हें सरकारी स्तर पर अभी तक  कोई मान सम्मान नहीं दिया गया है ना ही किसी प्रकार की कोई सुध ली गई है। उन्होंने बताया कि मुझे कई दफा ऐसा भी होती है उस पीड़ा के बारे में बताते हुए बताया कि लगातार किसी पशु या पक्षी का इलाज करने के बाद यदि वह पशु पक्षी को बचाने में नाकाम रहते हैं तो बड़ी तकलीफ दिल के अंदर होती है। डॉ. अनिल खीचड़ का कहना है कि शहर में एक आवारा पशुओं को लेकर आने के लिए मोबाइल वैन और एक निशुल्क पशु चिकित्सालय खोलने की उनकी दिली तमन्ना है। जहां सब कुछ निशुल्क रहेगा। एक आवारा बेसहारा पशु पक्षियों के लिए भवन कि भी महती आवश्यकता है जहाँ एक साथ दूरदराज से आए हुए सभी मूक प्राणियों का इलाज शीघ्रता व सुगमता के साथ किया जा सके।

डॉ अनिल बेसहारा मूक प्राणियों की निशुल्क सेवा के साथ ही समय-समय पर झुंझुनू शहर के अनेक वार्डो, स्कूल, कॉलेजों में भी जन जागरूकता अभियान चलाकर पशु पक्षियों के प्रति जानकारी देने का भी कार्य करते रहते हैं डॉ अनिल मूक प्राणियों की सेवा के अलावा क्रिकेट के शौकीन है।युवराज सिंह उनके पसंदीदा क्रिकेटर है। डॉक्टर अनील खीचड़ फिल्म स्टार आमिर खान से काफी प्रभावित हैं। उनके द्वारा अभिनीत 3 इडियट फिल्म को कई बार देख चुके हैं। वे किसी भी प्रकार से किसी का नशा नहीं करते हैं। नशे की प्रवृत्ति के बिलकुल खिलाफ है। समय-समय पर नशे से दूर रहने की भी के प्रति लोगों को जागरूक करते रहते हैं।

मूक प्राणियों की सेवा कर जान बचाने का काम करने वाले ऐसे निस्वार्थ सेवा भावी डॉक्टर अनिल खीचड़ को जिला प्रशासन द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए। जिससे प्रेरित होकर दूसरे अन्य लोग भी समाज सेवा की और अग्रसर हो सके।

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