-नजीर आलम के साथ राहुल झा , सुपौल
भगत कथा , अंधविश्वास में उमड़ी लोगों की भीड़
ये तस्वीर 21 वीं सदी के ग्रामीण भारत की है जहां अस्पताल के बजाय लोग भगत और तांत्रिक का सहारा कष्ट दूर करने के लिए ले रहे हैं ये तस्वीर आधुनिकता के इस दौर में विकास के मुंह पर तमाचा है जहां नेता सिर्फ वोट के चक्कर में आम लोगों को गुमनामी के अंधेरे में धकेल कर सत्ता की सीढ़ी तो पा लेते हैं पर जनता वहीं की वहीं रह जाती है .पेश है एक्सक्लूसिव तस्वीर के साथ एक खास रिपोर्ट किसी को बच्चा नहीं होता , किसी का परिजन लापता हो गया है , कोई विकलांग है या फिर कोई किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है यहां एक ही छत के नीचे तमाम रोगो का इलाज हो रहा है हाथ में डंडे लिए भगत पीड़ित को डंडे मारता है और उसका सारा कष्ट दूर हो जाता है ये कहना है स्थल पर मौजूद लोगों का , अंध विश्वास में जकड़े आधुनिक भारत के गांव की तस्वीर सरकार के विकास और योजनाओं की पोल खोल रही है .
ये भगत इंटर पास जीवछ्पुर निवासी सुरेश मेहता बताए जाते हैं करीब 21 वर्षीय ये भगत दिखने में बांका जबान लगता है इसके इलाज करने का तरीका भी अजब है इसका शरीर अनवरत देर शाम तक हिलता रहता है और हाथ में एक डंडा रहता है ये हिलते हिलते ही पीड़ित से बात करते हैं और उसका इलाज करते हैं , इलाज कराने ज़्यादा तर महिलाएं और युवती यहां आती है , कहते हैं ये इसी स्थल पर क्रिकेट खेलने आते थे एक दिन इसका मुलाकत एक विकलांग से हुआ और उसने इसे आशीर्वाद दिया था की वो जिसको चाहे ठीक कर सकता है तब से करीब दो महीने से सिलसिला कायम है अब तो नेपाल , पूर्णिया कटिहार से भी लोग यहां पहुचने लगे हैं .
पिपरा प्रखंड मुख्यालय से करीब सात किलोमीटर दूर जीवछपुर का ये नजारा है जहां लोगों की भारी भीड़ जमा हो रहा है हर कोई किसी ना किसी पीड़ा से पीड़ित है किसी को बाल बच्चा नहीं हो रहा है तो किसी को गंभीर बीमारी है किसी को चंद तरह की मनोकामना है कहते हैं की भगत सभी की मनोकामना पूरा कर देते हैं , हजारों की भीड़ भगत से मिलने की बारी का इंतजार कर रहे हैं भीषण गर्मी के बाद भी लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं .
भारी भीड़ के बावजूद भी संचालक मंडली काफी कुछ इंतजाम कर रखा है नाम लिखा जाता है और फिर उसे उसके बारी आने के बाद पुकारा जाता है ये सिलसिला देर शाम तक चलती है हर सोमवार इतनी ही भीड़ यहां लगती है , कहते हैं की पहले डाली लगाया जाता है फिर भगत उसको देखते हैं .
ये अंधविश्वास की एक ऐसी तस्वीर है जो भारत के विश्व गुरु बनने के सपने को चकनाचूर कर सकता है ऐसे में यही कहा जा सकता है की इस दिशा में प्रशासन को ठोस पहल करनी चाहिये ताकि लोग गुमराह होने से बच सके