आज से 126 साल पहले Swami Vivekanand ने खेतड़ी को ही अपना ‘दूसरा घर’ कहा 

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By Aanchalik khabre
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Swami Vivekanand

Swami Vivekanand पूरे विश्व में भारत के सनातन धर्म का परचम फहराया

Swami Vivekanand पूरे विश्व में भारत के सनातन धर्म का परचम फहराकर खेतड़ी आए थे तब उनका भव्य स्वागत किया गया था। स्वामीजी के चरणों में सोने की मोहर व चांदी के रुपए अर्पित किए गए थे।  आज से करीब 126 वर्ष पहले उनके स्वागत में देसी घी व करीब एक हजार 600 लीटर तेल से जगह-जगह दीप प्रज्जवलित किए गए थे। पूरा खेतड़ी दिवाली की तहर जगमग हो गया था।
Swami Vivekanand America के शिकागो में सनातन धर्म का परचम लहराकर 12 दिसबर 1897 को रविवार के दिन खेतड़ी लौटे थे।  स्वामी विवेकानंद पर पीएचडी करने वाले डॉ जुल्फिकार की पुस्तक के अनुसार राजा अजीतसिंह सुबह 10 बजे अपने मुंशी जगमोहन लाल के साथ स्वामीजी का स्वागत करने के लिए (12 मील दूर स्थित) बबाई नामक स्थान पर गए।  स्वामीजी वहां पहले ही पहुंच चुके थे। महाराज ने स्वामीजी के चरणों में एक स्वर्णमोहर तथा 5 चांदी के रुपए प्रणामी के रूप में अर्पित किए और काफी समय तक वार्तालाप करते रहे। इसके बाद पन्नासर तालाब पर स्वामीजी को विशेष आसन पर बैठाया गया।
मन्दिर के मुख्य पुरोहित ने आकर आरती उतारी और चांदी के 4 रुपए भेंट किए। मुंशी लक्ष्मीनारायण ने 2 रुपए, गणेश ने एक रुपया, बाबू जीवनदास ने एक रुपया तथा खेतड़ी के लागों ने स्वामीजी के प्रति सम्मान में कुल 132 रुपए भेंट किए थे।  इसके पश्चात मुंशी जगमोहन लाल ने खड़े होकर सब लोगों की ओर से स्वामीजी के सम्मान में स्वागत भाषण का वाचन किया था।

Swami Vivekanand का खेतड़ी से था दिल का रिश्ता

  • खेतड़ी आने से पहले Swami Vivekanand का नाम नरेन्द्र था, खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने ही उनका नाम स्वामी विवेकानंद रखा।
  • हम स्वामीजी की भगवावस्त्रों में जो तस्वीर देखते हैं वह पगड़ी व अंगरखा भी खेतड़ी के राजा ने भेंट किए थे। यही वस्त्र बाद में स्वामीजी की पहचान बन गए।
  • विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लेने शिकागो जाने के लिए ओरियन्ट कम्पनी के पैनिनशुना नामक जहाज का टिकट राजा अजीत सिंह ने ही करवाकर दिया था।
  •   वर्ष 1891 से 1897 के बीच स्वामीजी खेतड़ी तीन बार आए।
  • पहली बार 82, दूसरी बार 21 और तीसरी बार 9 दिन रुके।
  • स्वामीजी खेतड़ी को अपना दूसरा घर बताते थे।

करतल ध्वनि से गूंज उठा था सदन

शिकागो में अपने भाषण के प्रारंभ में जब Swami Vivekanand ने ‘अमेरिकी भाइयों और बहनों’ कहा तो सभा के लोगों की करतल ध्वनि से पूरा सदन गूंज उठा था। उनका भाषण सुनकर विद्वान चकित हो गए। उन्होंने कहा था, मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूं जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृत दोनों की ही शिक्षा दी है। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, वरन समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीडि़तों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है।

एक्सपर्ट व्यू :-

Swami Vivekanand
  डॉ.जुल्फिकार  भीमसर गांव के युवा लेखक व चिन्तक
आज से 126 साल पहले Swami Vivekanand अमेरिका से खेतड़ी लोटने पर 9 दिन तक खेतड़ी – प्रवास पर रहें | जिसमें उनका स्वागत – भाषण,शिक्षा व वेद पर व्याख्यान तथा शास्त्र – अध्ययन जैसे कार्यक्रम रहे    डॉ.जुल्फिकार  भीमसर गांव के युवा लेखक व चिन्तक
(चंद्रकांत बंका)
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