भारत की राजनीति में अक्सर ऐसे बयान और मुद्दे सामने आते हैं जो जनता के असली सवालों से ध्यान हटाकर नए विवाद पैदा कर देते हैं। ताज़ा मामला सामने आया है एक मंत्री जी का, जो पहले टेक्सटाइल मंत्रालय संभाल रहे थे, लेकिन अब सुर्खियों में “झटका मीट” के मुद्दे को लेकर छा गए हैं।
बिहार में टेक्सटाइल इंडस्ट्री क्यों नहीं?
मंत्री जी ने बिहार में पिछले कई सालों तक एक भी टेक्सटाइल फैक्ट्री नहीं लगाई। जबकि बिहार जैसे राज्य में अगर एक बड़ा टेक्सटाइल उद्योग स्थापित होता, तो लाखों युवाओं को रोजगार मिलता और प्रवासी मजदूरों की समस्या काफी हद तक कम हो जाती।
लेकिन इसके उलट, आज बहस हो रही है कि झटका मीट खाया जाए या हलाल मीट। सवाल उठता है – क्या यही असली मुद्दा है?
मीट और सनातन धर्म का तर्क
इस विवाद में सनातन धर्म का नाम घसीटा जा रहा है। कहा जा रहा है कि झटका मीट ही सनातन से जुड़ा है। लेकिन सच्चाई यह है कि मीट चाहे हलाल हो या झटका, अंत में जानवर की जान ही जाती है।
असल सवाल है – क्या धर्म और राजनीति के नाम पर समाज को बांटने की बजाय सरकार को रोजगार, उद्योग और विकास पर ध्यान नहीं देना चाहिए?
बेरोजगारी और बिहार की बदहाल स्थिति
देश की सबसे बड़ी समस्या आज भी बेरोजगारी है। बिहार के युवा लाखों की संख्या में रोज़गार की तलाश में दिल्ली, मुंबई और गुजरात जैसे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं।
अगर पांच साल में सिर्फ एक भी टेक्सटाइल इंडस्ट्री लगाई जाती, तो हज़ारों युवाओं को अपने राज्य में ही काम मिलता। लेकिन नेताओं की प्राथमिकता उद्योग और रोजगार नहीं, बल्कि समाज को बांटने वाले मुद्दे बन गए हैं।
संसद में मुद्दों की असलियत
आज संसद में कोई समोसा लेकर बहस करता है, तो कोई यह तय करने में लगा है कि कौनसा मीट बेहतर है।
न बेरोजगारी पर चर्चा, न इंडस्ट्री पर, न ही बिहार की हर साल की बाढ़ की समस्या पर।
भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का दावा करता है, लेकिन बिहार अब तक एक मजबूत डैम तक का इंतज़ाम नहीं कर पाया।
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