भूमिका: जब जंगलों से उठी स्वतंत्रता की पहली पुकार
जब भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, तब अंग्रेजों के खिलाफ सबसे पहला सशस्त्र विद्रोह किसी बड़े शहर या मशहूर नेता ने नहीं, बल्कि एक आदिवासी वीर ने किया था। वह थे तिलका मांझी, जिन्हें भारत का पहला आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है।
तिलका मांझी का जन्म और प्रारंभिक जीवन
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जन्म वर्ष: लगभग 1750 ई.
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जन्म स्थान: तिलकपुर गाँव, भागलपुर (अब झारखंड राज्य)
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समुदाय: संथाल जनजाति
तिलका मांझी का वास्तविक नाम जबरा पहाड़िया था। बाद में जब उन्होंने अन्याय के विरुद्ध विद्रोह किया तो उन्हें “तिलका” कहा गया, जिसका अर्थ होता है “लाल आँखे वाला क्रोध से भरा व्यक्ति”।
शिक्षा और सामाजिक चेतना
संथाल समाज में शिक्षा पारंपरिक होती थी। तिलका मांझी ने जंगलों में रहकर न सिर्फ पारंपरिक ज्ञान अर्जित किया बल्कि समाज में फैली असमानता और अंग्रेजों की नीतियों को भी समझा। उन्होंने जल्दी ही यह पहचान लिया कि अंग्रेज किस तरह से जंगलों, खेतों और आदिवासी जनजीवन को बर्बाद कर रहे हैं।
संघर्ष की शुरुआत: अंग्रेजों की नीतियों के खिलाफ पहला विद्रोह
18वीं शताब्दी के अंत तक ईस्ट इंडिया कंपनी बिहार, बंगाल और झारखंड के क्षेत्रों पर अपना कब्जा जमाने लगी थी। उन्होंने ज़मींदारी व्यवस्था लागू की और संथालों को उनकी जमीन से बेदखल कर दिया। तिलका मांझी ने इसका कड़ा विरोध किया।
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उन्होंने संथालों को संगठित करना शुरू किया।
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वन अधिकार, पानी और जमीन की रक्षा को लेकर लोगों को जागरूक किया।
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कर वसूली, बलात्कारी जमींदारों और भ्रष्ट अधिकारियों के विरुद्ध मोर्चा खोला।
तिलका मांझी का विद्रोह (1784 – 1785)
1784 ई. में तिलका मांझी ने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का बिगुल बजा दिया।
प्रमुख घटनाएं:
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अंग्रेज अफसर क्लीवलैंड का कत्ल: तिलका मांझी ने एक तीर के माध्यम से तत्कालीन अंग्रेज अफसर क्लीवलैंड की हत्या कर दी।
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भागलपुर किला और सरकारी ठिकानों पर हमला: उनके नेतृत्व में सैकड़ों आदिवासियों ने किले पर आक्रमण किया और अंग्रेजों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
इसने अंग्रेजों को हिला कर रख दिया। उन्होंने तिलका मांझी को पकड़ने के लिए हजारों सैनिक भेजे।
गुरिल्ला युद्ध कौशल
तिलका मांझी पारंपरिक युद्ध कौशल और गुरिल्ला रणनीति में माहिर थे। वे जंगलों और पहाड़ियों में छिपकर अंग्रेजों पर अचानक हमला करते थे। अंग्रेजी सेना उनके इस युद्ध कौशल के आगे पस्त हो जाती थी।
तिलका मांझी की गिरफ्तारी और वीरगति
लगातार अंग्रेजी घेराबंदी के बावजूद तिलका मांझी सालभर तक विद्रोह करते रहे। लेकिन 1785 ई. में अंग्रेजों ने धोखे से उन्हें पकड़ लिया।
अमानवीय मृत्यु:
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उन्हें भागलपुर ले जाया गया।
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घोड़ों से खींचते हुए नगर भर में घुमाया गया।
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फिर एक पीपल के पेड़ से लटका कर फांसी दी गई।
उनकी इस वीरगति ने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया और आदिवासी समाज के लिए वे एक अमर नायक बन गए।
तिलका मांझी की विरासत और स्मृति
तिलका मांझी चौक (भागलपुर):
जहां उन्हें फांसी दी गई थी, आज वह स्थान “तिलका मांझी चौक” के नाम से प्रसिद्ध है।
तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय:
उनकी स्मृति में बिहार सरकार ने विश्वविद्यालय का नाम रखा है –
Tilka Manjhi Bhagalpur University (TMBU)
क्यों याद किए जाते हैं तिलका मांझी?
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भारत के पहले आदिवासी क्रांतिकारी
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संथाल समाज के नायक
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वन अधिकारों और जल-जंगल-ज़मीन की रक्षा के लिए संघर्षरत योद्धा
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अंग्रेजी अत्याचारों के खिलाफ पहला संगठित विद्रोह
तिलका मांझी से जुड़े प्रमुख प्रश्न (FAQs)
Q1: तिलका मांझी कौन थे?
उत्तर: तिलका मांझी भारत के पहले आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने 1784-85 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया।
Q2: तिलका मांझी का असली नाम क्या था?
उत्तर: उनका वास्तविक नाम जबरा पहाड़िया था।
Q3: तिलका मांझी की मृत्यु कब और कैसे हुई?
उत्तर: 1785 में भागलपुर में उन्हें पीपल के पेड़ से लटका कर फांसी दी गई थी।
Q4: तिलका मांझी का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर: उनका जन्म 1750 के आसपास तिलकपुर गाँव, भागलपुर (अब झारखंड) में हुआ था।
Q5: तिलका मांझी का योगदान क्या था?
उत्तर: उन्होंने सबसे पहले आदिवासियों को संगठित कर अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध किया और अंग्रेज अफसर क्लीवलैंड की हत्या की।
निष्कर्ष: संघर्ष, बलिदान और प्रेरणा की मूर्ति
तिलका मांझी का जीवन बलिदान, संघर्ष और स्वाभिमान की प्रेरक गाथा है। वह केवल संथाल समाज के नहीं, पूरे भारत के प्रथम जननायक हैं जिन्होंने आज़ादी के लिए जान की बाज़ी लगाई।
आज जब हम स्वतंत्रता की बात करते हैं, तब तिलका मांझी जैसे वीरों का स्मरण करना हमारा कर्तव्य है। वह जंगलों से उठी आवाज़ थे, जो ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला गई।
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