श्रावण सप्तमी और Tulsidas: एक आत्मा, एक युग, एक अमर गाथा

Aanchalik Khabre
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Tulsi Das

श्रावण की सप्तमी… बारिश की बूंदों में घुली आस्था की खुशबू… और एक छोटे से गाँव में जन्म लेता है एक बालक… जो आगे चलकर करोड़ों दिलों में राम नाम का दीप जलाएगा…

यह कोई साधारण दिन नहीं था। यह उस आत्मा का आगमन था जिसने भक्ति को शब्द दिए, शब्दों को काव्य बनाया और काव्य से बना दिया एक युग!

नाम रखा गया रामबोला… पर किसे पता था कि यह बालक आगे चलकर Tulsi Das कहलाएगा — वही Tulsi Das, जिनकी छांव में आज भी भारत की आत्मा शांति पाती है।

 

विरासत की शुरुआत:-

उत्तर प्रदेश के राजापुर या सोरों कस्बे में जन्मे इस विलक्षण आत्मा के लिए जीवन की शुरुआत ही एक कठोर परीक्षा थी। माता-पिता की छाया बचपन में ही उठ गई थी। दादी की गोद में पलते हुए रामबोला के मन में कभी कोई कड़वाहट नहीं आई, केवल एक जिज्ञासा थी — “राम कौन हैं?”

कहते हैं कि जीवन का असली उद्देश्य तब जागता है जब आत्मा पीड़ा से निकलकर प्रभु की ओर मुड़ती है। Tulsi Das का जीवन इसी भाव का प्रतीक था। बाल्यावस्था से ही तुलसी का हृदय रामभक्ति की ओर झुकने लगा था, मानो किसी पूर्व जन्म की यात्रा इस जन्म में पूर्णता पाना चाहती हो।

 

विवाह और मोह का बंधन:-

समय बीता और रामबोला का विवाह रत्नावली से हो गया। रत्नावली अत्यंत रूपवती और विदुषी थीं। Tulsi Das उन्हें अत्यधिक प्रेम करते थे — एक सांसारिक प्रेम, जो आत्मा के सत्पथ पर रुकावट बन सकता था।

एक रात… अंधकार से लिपटी, बारिश से बोझिल, हवाओं में तड़पती तृष्णा… और Tulsi Das — सांसारिक प्रेम की डोर में बंधे — नदी की बाढ़, लहरों का डर, अंधेरे घाट… कुछ भी उन्हें रोक न सका। वह सांप से बनी रस्सी के सहारे, तनों को पकड़कर नदी पार कर रत्नावली के पास पहुँच गए।

रत्नावली चौंकीं नहीं। उनके चेहरे पर एक व्यथा थी, और होठों पर वो वाक्य जो सदियों से हर आध्यात्मिक जागरण की कुंजी बन चुका है:

“लाज न आई आपको…? इस हाड़-मांस की देह में इतना अनुराग है तो सोचो उस राम में कितना होगा, जो शाश्वत हैं, जो परम हैं, जो स्वयं प्रेम हैं!”

ये शब्द नहीं, वज्र थे। Tulsi Das का संसार उसी क्षण बदल गया। सांसारिक प्रेम की राख से जन्मा आध्यात्मिक प्रकाश… और जन्म हुआ एक कवि, एक संत, एक युगपुरुष का — Tulsi Das का।

 

भक्ति की अग्नि में तपता जीवन:-

रत्नावली की वाणी ने जिस चेतना को जगाया था, वह अब तपस्वी बन चुकी थी। Tulsi Das ने काशी की ओर प्रस्थान किया। वहाँ विद्या ली, शास्त्र सीखे, और फिर साधना में रम गए।

उनके जीवन की तपस्या केवल आत्मकल्याण के लिए नहीं थी — वह समाज को दिशा देने के लिए थी। Tulsi Das ने देखा कि शुद्ध संस्कृत में रचित रामायण आम जन की पहुंच से दूर हो चुकी थी। उन्हें लगा कि रामकथा को जन-जन तक ले जाने का एकमात्र मार्ग है — लोकभाषा में इसे प्रस्तुत करना।

 

रामचरितमानस: आस्था का अमर दीप:-

Tulsi Das ने अवधी भाषा में रामचरितमानस की रचना की। यह केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि उस समय के सामाजिक, धार्मिक और नैतिक मूल्यों का एक दर्पण था। इसके हर चौपाई में भक्ति की धारा बहती है और प्रत्येक दोहा में प्रभु राम का साक्षात्कार होता है।

रामचरितमानस के सात कांड — बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड, लंका कांड और उत्तरकांड — मानव जीवन के प्रत्येक चरण का प्रतिनिधित्व करते हैं।

Tulsi Das ने इसे रचते समय स्वयं को केवल एक माध्यम माना। वे मानते थे कि शब्द तो श्रीराम की कृपा से प्रवाहित हुए हैं — वे तो केवल लेखनी थे, जिनके द्वारा प्रभु ने स्वयं अपनी कथा कहलाई।

 

निराकार से साकार तक की यात्रा:-

Tulsi Das के लिए राम केवल राजा नहीं थे — वे सखा थे, आराध्य थे, स्वयं ब्रह्म का साकार रूप थे। उन्होंने भक्ति में निर्गुण और सगुण दोनों को समाहित किया। उनके लिए राम में कर्म था, मर्यादा थी, करुणा थी और जीवन का अंतिम सत्य भी।

तुलसी के भजन, चौपाईयाँ और दोहे जन-जन के होठों पर ऐसे बसे कि वे केवल ग्रंथ नहीं रह गए — वे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गए।

 

समाज सुधारक Tulsi Das:-

Tulsi Das का योगदान केवल धार्मिक नहीं था। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों पर भी प्रहार किया। उनकी पंक्तियाँ —

“जाति-पाँति पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई” —

उस युग की सामाजिक रूढ़ियों पर क्रांतिकारी प्रहार थीं।

 

उन्होंने राम को ऐसा आराध्य बनाया जिसमें हर जाति, हर वर्ग, हर स्त्री-पुरुष को समाहित किया जा सके। Tulsi Das के मानस में धर्म था लेकिन उसमें संकीर्णता नहीं थी। उनकी भक्ति में गहराई थी लेकिन वह किसी वर्ग विशेष की सीमा में बंधी नहीं थी।

 

भक्ति और चमत्कार की कथाएँ:-

Tulsi Das के जीवन से जुड़ी अनेक लीलाएँ और चमत्कारी घटनाएँ भी लोकमानस में रची-बसी हैं। कहा जाता है कि स्वयं भगवान हनुमान ने उन्हें दर्शन दिए थे। एक बार जब वे संकट में थे, तो हनुमान जी ने बंदरों की सेना भेज दी थी मंदिर की रक्षा के लिए।

एक अन्य कथा के अनुसार, जब तुलसीदास पर मुगल शासकों ने प्रतिबंध लगाने की कोशिश की, तब चमत्कारी घटनाएँ घटने लगीं — और अंततः उन्हें रामचरितमानस का प्रचार करने की स्वतंत्रता मिली।

 

काशी में अंतिम समय और अमरता:-

Tulsi Das ने अपने जीवन के अंतिम क्षण काशी में बिताए। उन्होंने ‘विनय पत्रिका’, ‘कवितावली’, ‘दोहावली’, ‘कविता रामायण’ जैसे अनेक अद्भुत ग्रंथ भी रचे।

लेकिन वह क्षण जब Tulsi Das ने रामनाम को अपने होठों पर लिया और अपने प्राण त्याग दिए — वह क्षण भी उतना ही दिव्य था जितना उनका जन्म। कहते हैं, उस क्षण स्वयं राम और हनुमान उन्हें लेने आए।

 

Tulsi Das का युग आज भी जीवित है:-

आज भी हर गाँव, हर मंदिर, हर रामलीला में, हर मानस पाठ में Tulsi Das की आत्मा धड़कती है। उनकी वाणी में जो भाव हैं, वह केवल शब्द नहीं, अनुभव हैं। जब कोई भक्त मानस की चौपाई पढ़ता है —

“राम चरित मानस सुनै, तुलसी कहै बिचार” —

तो उसमें Tulsi Das की आत्मा पुनः जीवित हो जाती है।

 

श्रावण सप्तमी: एक नई शुरुआत:-

इस श्रावण सप्तमी, जब हवाओं में फिर वही नमी है, वर्षा की बूंदों में फिर वही करुणा है, और वातावरण में वही राम नाम की गूंज है — तब आइए हम Tulsi Das को फिर से स्मरण करें।

स्मरण करें उस आत्मा को जो प्रेम से भक्ति में परिवर्तित हुई, उस पत्नी को जो गुरु बनी, उस साधक को जो संत बना, और उस कवि को जिसने हर युग को एक नया मंत्र दिया — राम नाम का।

 

निष्कर्ष: Tulsi Das — केवल कवि नहीं, एक युग के प्रवक्ता:-

Tulsi Das केवल रामकवि नहीं थे। वे एक सामाजिक क्रांतिकारी, एक आध्यात्मिक पथप्रदर्शक, और एक कालजयी संत थे। उन्होंने जो जीवन जिया, वह आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है। उनके शब्द, उनके भाव, उनकी रचनाएँ — एक सतत यात्रा हैं जो भक्ति के सागर में डूबकर केवल राम ही नहीं, स्वयं को भी पाने का मार्ग दिखाती हैं।

Tulsi Das की कथा किसी ग्रंथ में सीमित नहीं, वह हर ह्रदय में जीवित है जो प्रभु को खोज रहा है।

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