श्रीमती मंगली पति मदन परमार ग्राम सजेली, पुरा परिवार खुशहाली जीवन यापन कर रहा
झाबुआ , हितग्राही श्रीमती मंगली पति मदन परमार ग्राम सजेली मालजी साथ में है। सबसे पहले वेें घर पर रह कर गृहकार्य करती थी, और फिर कभी कभी खेत का कार्य भी कर लिया करती थी । उस समय खेत से हर वर्ष हजार से 15000 रू. तक कमाई होती थी, उसके बाद म.प्र. डे राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन जब से आया इनके गांव महिला स्वयं सहायता समूह बनाने की बैठक रखी गई व इन्हें स्वयं सहायता समूह के बारे में बताया गया। उसके बाद इन महिलाओं का एक स्वयं सहायता समूह का गठन किया गया ओर बचत करना चालु किया, परियोजना से आर.एफ. राशि 12000 रू. प्राप्त किया गया, उसमें से मैंने 5000 रू. लोन के रूप में सिलाई की गतिविधि करने के लिए लोन लिया। और उन पैंसों से कृषि कार्य किया गया और सब्जी उत्पादन का कार्य कर लोन के पैसे की भरपाई की गई।
ग्राम स्तर पर ग्राम संगठन का गठन किया गया। उसमें परियोजना से सी.आई.एफ 200000रू. राशि प्राप्त की गई। इन्होंने ग्राम संगठन से 80000रू. का लोन लेकर किराना दो भैंस खरीदी गई और दुग्ध उत्पादन होने लगा और दुग्ध को रोजाना दुग्ध-डेयरी में पहुचाया। जिससे मुझे माह के 18000 रू. आय प्राप्त हुई ओर दुग्ध उत्पादन की आय से ग्राम संगठन से लिया गया लोन पुरा कर चुकी है।
उसके बाद, इन्होंने बैंक से सी. सी. एल के रूप में प्रथम डोज के रूप 100000 रू. लिया गया उसमें से मैंने टेंट हाउस के लिए 7000रू. लिया गया और उसमें से इन्होंने टेंट हाउस का कार्य करके प्राप्त आय से लोन की भरपाई की। मैं आज दुग्ध उत्पादन का कार्य व घर पर टेंट हाउस का कार्य आदि सभी कार्यों से मासिक आय 20000रू. प्राप्त हो जाती है
पीजी ग्रुप गठन किया गया जिसका नाम जाग्रती आजीवका महिला उत्पादक क्रय विक्रय समूह इसमें 22 समूह सदस्यों को जोड़ा गया और हमें मिशन से अधोसंचरना मद राशि 50000रू. प्राप्त हुई, अनाज क्रय हेतु 149607रू. प्राप्त हुए। जिसका इन्होंने सोयाबिन 20 क्विंटल खरीदा उसको विक्रय किया जिससे 8000 रू. का फायदा हुआ एवं गेंहू 60 क्विंटल खरीदी की गई जिसमें हमें 20000 रू. फायदा मिला है। जिससे इनका पुरा परिवार खुशहाली जीवन यापन कर रहा है।
दीपिका का सपना था अपनी योग्यता का इस्तेमाल करें
स्व सहायता समूह से जुड़ कर झाबुआ जिले के विकासखंड थांदला के गांव खवासा की रहने वाली श्रीमती दीपिका चंद्रावत जिनके आजीविका मिशन से जुड़ने से पहले आर्थिक स्थिति सही नहीं थी दीपिका के पति एक छोटी सी दुकान से अपना जीवन यापन करते हैं। दीपिका के पढ़े लिखे होने के बावजूद उनको सही अवसर और सही जानकारी का अभाव होने के कारण वह अपने घर वालों की मदद नहीं कर पाती थी। दीपिका का सपना था कि वह अपनी योग्यता का इस्तेमाल करें और अपनी और गांव वालों की आजीविका “शुद्रढ” करें।
जब वर्ष 2020 में उन्होंने आजीविका मिशन के अंतर्गत चले आ रहे स्व सहायता समूह के बारे में सुना तो उन्होंने आवश्यक जानकारी लेकर समूह का हिस्सा बनी। क्योंकि वह समूह में सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी महिला थी तो समूह की बाकी महिलाओं ने सहमति से दीपिका को अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया दीपिका को आजीवन मिशन के माध्यम से अनेक प्रशिक्षण मिले जिससे उनकी विभिन्न प्रकार की कौशल क्षमता का निर्माण हुआ जिससे उन्होंने अपने समूह की बाकी महिलाओं को भी सशक्त किया। दीपिका के जीवन में मोड़ तब आया जब उन्होंने आजीविका मिशन की टीम ने उनके कार्य को सहारते हुए उनको व्यवसायिक गतिविधि से जोड़ने के लिए वर्ष 2021 में उनके समूह की महिलाओं को प्रशिक्षण करके सेनेटरी पैड बनाने के कार्य के बारे में समझाएं फिर दीपिका ने इस सुनहरे अवसर को दोनों हाथों से स्वीकार किया और फरवरी 2021 से इस कार्य को आजीविका मिशन के माध्यम से शुरु कर दिया। इस समूह ने बहुत ही अच्छे से सेनेटरी पैड बनाने का कार्य किया क्योंकि उनके पास मैनुअल मशीन होने के कारण उनको मेहनत और समय भी ज्यादा व्यर्थ नहीं होता था दीपिका ने अपने समूह की महिलाओं और आजीविका मिशन की टीम से वार्तालाप करके ऑटोमेटिक मशीन लाने के बारे में बात रखी जिसको सभी ने सराहा। दीपिका और उनके समूह की दीदियों ने अहमदाबाद जाकर मशीन देखी उसको ऑर्डर भी कर दिया अभी दीपिका का सपना है कि आजीविका मिशन की मदद और उनके समूह की मेहनत से इस व्यवसाय को बहुत ही प्रसिद्ध व फैलाना है ताकि हर महिला को इसकी जानकारी हो और सेनेटरी पैड का इस्तेमाल कर पाए।
दीपिका आज की तारीख में अपने समूह की महिलाओं के साथ अन्य जिले के समूहों के लिए आदर्श एवं प्रेरणा बन चुकी है।
दीपिका अपने इस उपलब्धि के लिए हमेशा आजीविका मिशन को धन्यवाद देती हैं।