रिपोर्ट:खपत से ज्यादा पैदावार फिर क्यों हर साल आसमान छू लेते है प्याज के भाव

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By News Desk
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संतोष कुमार प्यासा

शायद ही कोई ऐसा साल जब प्याज की कीमत न बढ़ी हो. हर साल प्याज की कीमत बढ़ती है, हर बार प्याज पर राजनीती भी होती है लेकिन किसान और जनता को कोई फायदा नहीं होता. जहाँ एक ओर आम जनता को “प्याज की महंगाई रुलाती है वहीँ दूसरी प्याज पैदा करने वाले किसानो को प्याज की सही कीमत नहीं मिल पाती है.

आखिर क्या वजह है की साल-दर साल प्याज की कीमत बढ़ जाती है और सरकार इस पर नकेल कसने में नाकामयाब साबित होती है.

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प्याज की खेती

पैदावार :- प्याज की बढ़ती कीमतों पर सरकार का सीधा बहाना होता है की “प्याज की पैदावार कम हुई है इसलिए प्याज की कीमत बढ़ गयी. लेकिन जमीनी हकीकत इसके बिलकुल उलट है. भारत में प्याज प्यादवार खपत से भी ज्यादा है. हर साल काफी मात्रा में प्याज सड़ जाता है. किसानो को प्याज की सही कीमत नहीं मिलती तो वो प्याज या तो जानवरो को खिला देते है या फिर सड़ने के लिए छोड़ देते हैं. सरकार किसानो को सही मूल्य नहीं दे पाती जो के महंगाई की एक बड़ी वजह है.

प्याज के आयात निर्यात में दूदर्शिता की कमी :- भारत में प्याज की फसल आने पर सरकार प्याज को निर्यात करना शुरू कर देती है, और जब कुछ महीने बाद प्याज की कीमते बढ़ने लगती हैं तो सरकार को दूसरे देशों से प्याज आयात करना पड़ता है.

आयात निर्यात के विशेषज्ञ सुमित शिवहरे कहते है कि “सरकार के पास प्याज के आयात निर्यात कि सही समझ नहीं हैं. फसल आने पर सरकार प्याज को दूसरों देशो में निर्यात करती. सरकार 15-२० रु० किलो के हिसाब प्याज निर्यात करती है, लेकिन कुछ समय बाद भारत को यही प्याज 30-40 रूपए किलो के हिसाब से आयात करना पड़ता है.”

 

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कोल्ड स्टोरेज

स्टोरेज कि उचित व्यवस्था न होना :- प्याज की कीमत बढ़ने का एक एक बड़ा कारण है प्याज स्टोरेज की उचित व्यस्था न होना. सरकार काफी प्रयास के बाद भी कोल्ड स्टोरेज की पर्याप्त व्यवस्था करने में असमर्थ है.
इस विषय पर डॉ० कुलदीप कश्यप कहते है कि “स्टोरेज की सुविधा न होने के कारण सरकार के पास सिर्फ दो रास्ते बचते है या तो वो प्याज को सड़ने के लिए छोड़ दे या फिर सस्ते दामों में प्याज निर्यात कर दे. अगर सरकार प्याज के स्टोरेज कि सही व्यवस्था कर ले तो प्याज की कीमत 20-30 रु० से ज्यादा नहीं बढ़ सकती है.

कॉर्पोरेट्स का हस्तक्षेप :- प्याज की कीमत बढ़ने का एक और बढ़ा कारण कॉर्पोरेट्स का हस्तक्षेप भी है. सरकार के पास पर्याप्त कोल्ड स्टोरेज न होने का सीधा फायदा बड़ी कॉर्पोरेट्स कंपनियों को होता है. इन कंपनियों ने प्याज मंडियों के पास अपने हाई टेक कोल्ड स्टोरेज लगा रखे है. ये कंपनियों अपने सस्ते दाम में ज्यादा से ज्यादा प्याज खरीद कर स्टोर कर लेती है. फिर बाद में डिमांड बढ़ने पर इसी प्याज को महंगे रेट में बेंचती हैं.

सरकारी सब्सिडी से बने कोल्ड स्टोरेज :- सरकार किसी को कोल्ड स्टोरेज बनाने के लिए सब्सिडी देती है लेकिन ये कोल्डस्टोरेज ज्यादा गुणवत्ता वाले व् हाई टेक नहीं होती हैं. इन कोल्डस्टोरेज पर अधितम 6 महीने तक ही प्याज स्टोर किया जा सकता है. 6 महीने से ज्यादा समय होने पर इन कोल्ड स्टोरेज में प्याज जमने लगती है.

राजनितिक षड़यंत्र :-सन 1998 जब अटल जी की सरकार थी उस समय प्याज की कीमत आसमान छू रही थी. अटल जी ने कहा भी कि जब कांग्रेस सत्ता में नहीं रहती तो प्याज परेशान करने लगता है. अटल जी का इशारा था कि कीमतों का बढ़ना राजनैतिक षड्यंत्र है. उस समय दिल्ली प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और विधानसभा चुनाव सिर पर थे. तब प्याज के असर से बचने के लिए सरकार ने कई तरह की कोशिशें की, लेकिन दिल्ली में जगह-जगह प्याज को सरकारी प्रयासों से सस्ते दर पर बिकवाने की कोशिशें नाकाफी साबित हुईं.

और जब चुनाव हुआ तो मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली भाजपा बुरी तरह हार गई। शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन 15 साल बाद प्याज ने उन्हें भी रुला दिया। अक्तूबर 2013 को प्याज की बढ़ी कीमतों पर सुषमा स्वराज ने कहा था कि यहीं से शीला सरकार का पतन शुरू होगा. हुआ भी वही. भ्रष्टाचार के साथ महंगाई का मुद्दा चुनाव में एक और बदलाव का साक्षी बना.

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सड़ी प्याज

सरकारी प्रायशो का विफल होना :- महंगाई से निपटने के लिए सरकार को किसानो के लिए अधिक अधिक सुविधाएँ मुहैया कराने की जरुरत है. हर बार मंडियों में किसानो को अलग अलग समस्याओं की वजह से प्याज के उचित मूल्य नहीं मिल पाने से किसान प्याज को या तो सड़ने के लिए छोड़ देते हैं या फिर जानवरों को खिला देते हैं.

पुरानी समस्याओं से सीख कर हल निकलना :- प्याज की कीमत को स्थिर रखने का उपाय है स्टोरेज की पर्याप्त उपलब्धता, किसानो को सही मूल्य व सही सहूलियत.

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