अमेरिका के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो का दावा: मोदी की शी-जिनपिंग और पुतिन से नजदीकी अमेरिका के लिए चिंता का कारण

Aanchalik Khabre
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अमेरिका

हाल ही में अमेरिका के पूर्व व्यापार सलाहकार पीटर नवारो (Peter Navarro) ने एक बयान दिया है, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन के राष्ट्रपति शी-जिनपिंग (Xi Jinping) और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) के साथ बढ़ती नजदीकी पर चिंता जताई है। नवारो का मानना है कि भारत की इस कूटनीतिक रणनीति से अमेरिका और भारत के रिश्तों पर असर पड़ सकता है। यह बयान ऐसे समय आया है जब दुनिया बहुध्रुवीय राजनीति (multipolar world) की ओर बढ़ रही है और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नए समीकरण बन रहे हैं।

पीटर नवारो का बयान

पीटर नवारो, जो डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन में व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार रह चुके हैं, ने कहा कि मोदी का चीन और रूस के साथ जुड़ना अमेरिका की रणनीतिक चिंताओं को बढ़ाता है। उन्होंने यह भी इशारा किया कि भारत का रूस के साथ ऊर्जा और रक्षा सहयोग तथा चीन के साथ बातचीत अमेरिका के हितों से टकरा सकता है।

नवारो का कहना है कि जब अमेरिका भारत को “लोकतांत्रिक साझेदार” मानता है, तब मोदी सरकार का रूस और चीन से बढ़ता संवाद अमेरिकी नीति निर्माताओं को असहज करता है।

भारत की विदेश नीति का संतुलन

भारत लंबे समय से “बहुपक्षीय संतुलन” (multi-alignment) की नीति पर काम कर रहा है। यानी भारत किसी एक खेमे में पूरी तरह शामिल नहीं होता, बल्कि अलग-अलग देशों से अपने-अपने राष्ट्रीय हितों के हिसाब से रिश्ते रखता है।

  1. रूस के साथ संबंध – भारत और रूस दशकों से रक्षा, ऊर्जा और तकनीकी सहयोग के साझेदार हैं। रूस से हथियारों की आपूर्ति भारत की सुरक्षा रणनीति में अहम भूमिका निभाती है।
  2. चीन के साथ समीकरण – भले ही भारत-चीन के बीच सीमा विवाद है, लेकिन व्यापारिक संबंध बहुत बड़े स्तर पर हैं। चीन भारत का एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार है।
  3. अमेरिका के साथ साझेदारी – पिछले कुछ वर्षों में भारत-अमेरिका रिश्ते गहरे हुए हैं। क्वाड (Quad), रक्षा सहयोग और टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप इसका उदाहरण हैं।

यानी भारत की रणनीति यही है कि वह सभी देशों के साथ संवाद रखे और अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दे।

नवारो की चिंता क्यों?

अमेरिका के रणनीतिक विशेषज्ञों को लगता है कि रूस और चीन अमेरिका के लिए बड़े प्रतिद्वंदी हैं।

  • रूस: यूक्रेन युद्ध के चलते अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं, लेकिन भारत अभी भी रूस से तेल और हथियार खरीद रहा है।
  • चीन: अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध, ताइवान मुद्दा और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में तनाव पहले से मौजूद हैं।

ऐसे में जब मोदी रूस और चीन से संवाद बढ़ाते हैं, तो अमेरिका को डर होता है कि भारत कहीं पूरी तरह से पश्चिमी खेमे में न आकर तटस्थ नीति अपना ले।

भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता

भारत की विदेश नीति हमेशा से रणनीतिक स्वतंत्रता (Strategic Autonomy) पर आधारित रही है। भारत किसी भी वैश्विक दबाव में नहीं आता, बल्कि अपने हितों के आधार पर फैसले करता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कहा है कि “भारत की विदेश नीति भारत पहले” (India First) के सिद्धांत पर चलती है।

  • रूस से ऊर्जा खरीद कर भारत ने घरेलू जरूरतें पूरी कीं।
  • अमेरिका से रक्षा और तकनीक में सहयोग बढ़ाया।
  • चीन से व्यापारिक समझौते भी जारी रखे।

यानी भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी एक ध्रुव पर निर्भर नहीं रहेगा।

क्या अमेरिका-भारत संबंध प्रभावित होंगे?

कई विशेषज्ञों का मानना है कि नवारो के बयान का असर ज्यादा नहीं पड़ेगा, क्योंकि वर्तमान में भारत और अमेरिका दोनों के बीच रणनीतिक साझेदारी मजबूत है।

  • अमेरिका भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक अहम सहयोगी मानता है।
  • रक्षा सौदे, 5G तकनीक और शिक्षा-रिसर्च के क्षेत्र में भारत-अमेरिका की साझेदारी लगातार बढ़ रही है।
  • भारत को भी अमेरिका से निवेश और तकनीक की आवश्यकता है।

इसलिए नवारो के बयान को अमेरिका की राजनीतिक बहस का हिस्सा माना जा सकता है, न कि दोनों देशों के रिश्तों का असली प्रतिबिंब।

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