बारिश और पहाड़ों का खतरा: उत्तराखंड में स्थिति गंभीर
उत्तराखंड, जिसे देवभूमि और पर्यटन का स्वर्ग कहा जाता है, इस समय प्राकृतिक आपदा की चपेट में है। पिछले कई दिनों से लगातार हो रही भारी बारिश और भूस्खलन ने राज्य की रफ्तार थाम दी है। पहाड़ी रास्तों पर जगह-जगह मलबा, गिरे हुए पेड़ और टूटी हुई सड़कें लोगों की आवाजाही को बेहद मुश्किल बना रही हैं।
- बारिश और पहाड़ों का खतरा: उत्तराखंड में स्थिति गंभीर
- मार्ग बंद होने की ताज़ा स्थिति
- कौन-कौन से मार्ग अब भी बंद हैं?
- 514 मशीनें और दर्जनों टीमें लगीं राहत कार्य में
- स्थानीय निवासियों और पर्यटकों की मुश्किलें
- भारी बारिश और भूस्खलन का खतरा क्यों बढ़ा?
- प्रशासन की तैयारी और अलर्ट सिस्टम
- भविष्य के लिए जरूरी कदम
- नागरिकों के लिए सलाह
प्रदेश के कई हिस्सों में सड़क मार्ग पूरी तरह से बाधित हो गए हैं, जिससे स्थानीय निवासियों के साथ-साथ पर्यटकों को भी भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

मार्ग बंद होने की ताज़ा स्थिति
लगातार हो रही बारिश और पहाड़ों से गिरते मलबे ने उत्तराखंड की सड़क व्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक:
- गुरुवार को 116 मार्ग बंद थे।
- शुक्रवार को भारी बारिश के बाद 150 और मार्ग बाधित हो गए।
इस तरह कुल 266 मार्ग बंद हो गए। इनमें से 173 मार्गों को प्रशासन और लोक निर्माण विभाग ने कड़ी मेहनत के बाद खोल दिया, लेकिन अभी भी 93 मार्ग बंद हैं।

कौन-कौन से मार्ग अब भी बंद हैं?
- 2 राष्ट्रीय राजमार्ग – यह बड़े शहरों और पर्यटन स्थलों को जोड़ते हैं, जिनके बंद होने से परिवहन और आर्थिक गतिविधियां ठप हो जाती हैं।
- 7 राज्य मार्ग – ये राज्य के विभिन्न जिलों को जोड़ते हैं, इनके बाधित होने से स्थानीय यातायात बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
- 7 मुख्य जिला मार्ग – ग्रामीण और कस्बाई इलाकों को जिला मुख्यालय से जोड़ने वाले मार्ग।
- 2 अन्य जिला मार्ग – आंतरिक क्षेत्रों के संपर्क मार्ग।
75 ग्रामीण मार्ग – गांवों के लिए जीवन रेखा माने जाने वाले ये रास्ते पूरी तरह बंद हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में आपूर्ति और स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो रही हैं।
514 मशीनें और दर्जनों टीमें लगीं राहत कार्य में
राज्य सरकार और लोक निर्माण विभाग ने बंद मार्गों को खोलने के लिए 514 मशीनें तैनात की हैं। ये मशीनें अलग-अलग इलाकों में मलबा हटाने, सड़क की मरम्मत करने और पानी निकालने का काम कर रही हैं।
लोक निर्माण विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक, “हम लगातार चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं। पहाड़ों पर मलबा गिरना रुकते ही हम तुरंत सड़क खोलने की कोशिश करते हैं। लेकिन भारी बारिश के कारण कई जगह काम में देरी हो रही है।”
स्थानीय निवासियों और पर्यटकों की मुश्किलें
बारिश और भूस्खलन से प्रभावित इलाकों में रहने वाले लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी बुरी तरह प्रभावित हो गई है।
- कई गांवों में खाद्यान्न और दवाओं की आपूर्ति ठप हो गई है।
- बीमार लोगों को अस्पताल तक पहुंचाने में भारी दिक्कतें हो रही हैं।
- पर्यटक रास्तों में फंसे हुए हैं और उन्हें सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने के लिए पुलिस व SDRF टीमें काम कर रही हैं।
हरिद्वार से आए एक यात्री, अजय शर्मा, ने बताया, “हम चारधाम यात्रा पर आए थे, लेकिन केदारनाथ जाने का रास्ता बंद होने से हमें सोनप्रयाग में ही रुकना पड़ा। होटल भरे हुए हैं और खाने-पीने की भी दिक्कत हो रही है।”
भारी बारिश और भूस्खलन का खतरा क्यों बढ़ा?
विशेषज्ञों का मानना है कि लगातार हो रही मूसलाधार बारिश के साथ-साथ पहाड़ों में हो रहे निर्माण कार्य और वनों की कटाई भूस्खलन की घटनाओं को बढ़ावा दे रहे हैं।
- पहाड़ी इलाकों में सड़क चौड़ीकरण के दौरान पहाड़ काटने से उनकी स्थिरता कमजोर हो जाती है।
- लगातार नमी से मिट्टी ढीली पड़ जाती है और भारी बारिश के दौरान मलबा नीचे की ओर खिसकने लगता है।
प्रशासन की तैयारी और अलर्ट सिस्टम
उत्तराखंड सरकार ने मौसम विभाग की चेतावनी के बाद पहले से ही कई इलाकों में यात्रा अलर्ट जारी किया था।
- पर्यटकों से खराब मौसम में पहाड़ी सफर से बचने की अपील की गई है।
- स्थानीय प्रशासन ने स्कूलों को अस्थायी रूप से बंद कर दिया है।
SDRF, NDRF और पुलिस बल को संवेदनशील इलाकों में तैनात किया गया है।
भविष्य के लिए जरूरी कदम
विशेषज्ञ और पर्यावरणविद मानते हैं कि इस तरह की आपदाओं से बचने के लिए लंबी अवधि की रणनीति जरूरी है:
- भूस्खलन रोधी इंजीनियरिंग तकनीक का इस्तेमाल।
- वनीकरण और पहाड़ों की प्राकृतिक ढाल को मजबूत करना।
- स्थानीय लोगों के लिए आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण।
- पर्यटन के मौसम में भीड़ नियंत्रण और ट्रैफिक प्रबंधन।
नागरिकों के लिए सलाह
- यात्रा से पहले प्रशासन द्वारा जारी ट्रैफिक अपडेट और मौसम अलर्ट अवश्य चेक करें।
- भारी बारिश के दौरान पहाड़ी मार्गों पर सफर करने से बचें।
- आपात स्थिति में स्थानीय प्रशासन या हेल्पलाइन नंबर से संपर्क करें।