मंगलवार को बरेली में हादसे में पीलीभीत के एक ही परिवार के छह लोगों की जिंदगियां समाप्त हो गई।जिसके बाद अस्सी साल के नसीब खां के बूढ़े कंधों पर तीन बेटियों के हाथ पीले करने की जिम्मेदारी आ गई है।घटना में काल के गाल में समाए खुर्शीद के बड़े बेटे के सिर पर सेहरा सजने का अरमान लिए दोनों ही इस दुनियां से रुखसत हो गए।वहीं परिवार के हालात अब और भी खराब होने की संभावना है।क्योंकि खुर्शीद की मजदूरी सहित अन्य सदस्यों के सहयोग से परिवार पल रहा था।
नसीब खां के तीन बेटे हैं। खुर्शीद सबसे बड़े थे। मो. आकिल मंझले और मो. शाकिर सबसे छोटे हैं। परिवार के पास कुल साढ़े चार एकड़ कृषि भूमि है। तीनों बेटे अपने अपने परिवारों के साथ रहते हैं। खेती संयुक्त है लेकिन उससे इतनी पैदावार नहीं हो पाती, जिससे सभी के खर्च पूरे हो सकें। ऐसे में खुर्शीद और उनका बड़ा बेटा आरिफ मजदूरी करके अतिरिक्त आमदनी जुटा लेते थे। बेटियां घर पर ही रहकर दरी बुनाई करके कुछ पैसे कमा लेती हैं। छोटा बेटा असरफ दस साल का है और गांव के ही सरकारी स्कूल में कक्षा छह में पढ़ रहा है।
परिवार के लोग बताते हैं कि जब बीमार समीरन को एम्स में इलाज से मना कर दिया गया तो खुर्शीद ने इसकी सूचना फोन पर अपने बड़े बेटे आरिफ को दी। वह छोटी बहनों व भाई की देखभाल करन के लिए घर पर ही रुक गया था। रविवार को वह अम्मी-अब्बू को वापस लाने के लिए दिल्ली गया था। खुर्शीद के छोटे भाई आकिल का बेटा जफर पहले से ही उन लोगों के साथ दिल्ली में था। खुर्शीद की साली नसरीन भी यहां से उनके साथ ही दिल्ली गई थी।
अब बड़े बेटे आरिफ की शादी होनी थी। बीमार चल रही समीरन को आरिफ के सिर पर सेहरा सजने का बड़ा अरमान था। बीमारी के कारण वह चाहती थी कि जल्द ही बड़े बेटे की शादी हो जाए तो घर में रौनक बढ़ जाएगी लेकिन उससे पहले ही यह हादसा हो गया।बड़ा बेटा, उसकी पत्नी और बड़े बेटे की हादसे में मौत के बाद उनकी तीनों अविवाहित बेटियों के हाथ पीले करने की जिम्मेदारी अब बुजुर्ग नसीब खां के कंधों पर आ गई है।साथ ही सबसे छोटे पौत्र अरशद की परवरिश का जिम्मा भी उन्हें ही उठाना है। अविवाहित बेटियों में सबसे बड़ी साहिबा है। मंझली सायरा और शेरबानो सबसे छोटी है।