संसद का बजट सत्र अपने पहले चरण के अंतिम कार्यदिवस पर पहुंच चुका है। इस दौरान एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम वक्फ (संशोधन) विधेयक पर विचार कर रही संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की रिपोर्ट का लोकसभा और राज्यसभा में प्रस्तुत किया जाना रहा। इस रिपोर्ट को लोकसभा में दोपहर 2 बजे के बाद और राज्यसभा में दिन की कार्यवाही शुरू होते ही पेश किया गया। संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने विधेयक से संबंधित विस्तृत रिपोर्ट और साक्ष्यों का पूरा रिकॉर्ड सदन के पटल पर रखा।
राज्यसभा में हंगामे के साथ रिपोर्ट पेश
राज्यसभा में जैसे ही रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, विपक्षी दलों ने भारी विरोध और हंगामा शुरू कर दिया। राज्यसभा की कार्यवाही सुबह आरंभ होते ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सांसद मेधा विश्राम कुलकर्णी ने रिपोर्ट सदन में प्रस्तुत की। इसके तुरंत बाद कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और वामपंथी दलों के सदस्यों ने इस पर आपत्ति जताते हुए नारेबाजी शुरू कर दी। हंगामे के बीच सांसद आसन के समीप पहुंच गए और विरोध प्रदर्शन करने लगे। सभापति जगदीप धनखड़ ने सदन में व्यवस्था बनाए रखने की अपील की और राष्ट्रपति का एक संदेश प्रस्तुत करने की घोषणा की, लेकिन हंगामा जारी रहा।
विपक्ष की आपत्तियाँ और प्रतिक्रिया
विपक्षी दलों ने इस रिपोर्ट को लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ करार देते हुए इसे अस्वीकार्य बताया। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, “वक्फ बोर्ड पर जेपीसी रिपोर्ट से कई सदस्य असहमत हैं। उनके असहमति नोट्स को रिपोर्ट से हटा दिया गया है, जिससे उनके विचार दबा दिए गए हैं। यह लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है।” उन्होंने आगे कहा कि असहमति वाले विचारों को शामिल किए बिना प्रस्तुत की गई रिपोर्ट को वापस भेजा जाना चाहिए और दोबारा संशोधित रूप में पेश किया जाना चाहिए।
जेपीसी की यह रिपोर्ट 30 जनवरी को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को सौंपी गई थी। यह 655 पृष्ठों की विस्तृत रिपोर्ट है, जिसे समिति के बहुमत से स्वीकार किया गया था। भाजपा सांसदों द्वारा सुझाए गए सभी प्रमुख संशोधनों को इसमें शामिल किया गया था, जबकि विपक्षी सदस्यों के सुझावों को खारिज कर दिया गया। विपक्ष ने इस प्रक्रिया को असंवैधानिक बताते हुए आरोप लगाया कि यह वक्फ बोर्डों की स्वायत्तता पर हमला है और उनके अस्तित्व को कमजोर करेगा।
भाजपा का पक्ष और विधेयक के उद्देश्य
भाजपा सांसदों ने इस विधेयक की आवश्यकता को स्पष्ट करते हुए कहा कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता, आधुनिकता और जवाबदेही लाने के लिए इसमें संशोधन किया गया है। पिछले साल अगस्त में इस विधेयक को लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था और इसे समीक्षा के लिए संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया था। समिति ने भाजपा सदस्यों के संशोधनों को स्वीकार कर लिया और विपक्ष द्वारा प्रस्तावित 44 संशोधनों को खारिज कर दिया।
भाजपा सांसदों ने कहा कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में कई अनियमितताएँ हैं, जिन्हें सुधारने की आवश्यकता है। वे इस विधेयक को मुस्लिम समुदाय के हित में एक सुधारवादी कदम मानते हैं, जबकि विपक्षी दलों का कहना है कि यह सरकार द्वारा मुस्लिम धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश है।
विधेयक को केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में 8 अगस्त, 2024 को पेश किया था। इसका उद्देश्य वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन कर वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और विनियमन से जुड़े मुद्दों को हल करना है। यह विधेयक निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर केंद्रित है:
विधेयक में वक्फ संपत्तियों का डिजिटलीकरण कर उनकी पहचान और रिकॉर्ड को पारदर्शी बनाने का प्रावधान किया गया है। इससे संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने और धोखाधड़ी पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी।
वक्फ बोर्डों को अधिक जवाबदेह बनाने के लिए वित्तीय और प्रशासनिक सुधारों का प्रस्ताव किया गया है। इसमें बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति, अधिकारों और कार्यशैली में बदलाव किए गए हैं।
वक्फ संपत्तियों से जुड़े विवादों के समाधान के लिए विशेष न्यायाधिकरण बनाए जाने का प्रस्ताव है, जिससे लम्बित मामलों को शीघ्रता से निपटाया जा सके।
विधेयक में राज्य सरकारों की भूमिका को पुनः परिभाषित किया गया है और उन्हें वक्फ बोर्डों के प्रशासन में हस्तक्षेप करने के नए अधिकार दिए गए हैं। विपक्ष ने इसी बिंदु को लेकर सबसे अधिक आपत्ति जताई है।
यह विधेयक भ्रष्टाचार और अवैध कब्जों को रोकने के लिए कड़े प्रावधान प्रस्तुत करता है।
विपक्षी दलों का कहना है कि यह विधेयक मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा आघात करता है। उनका तर्क है कि इसमें वक्फ बोर्डों की स्वतंत्रता खत्म करने की मंशा झलकती है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार का असली उद्देश्य वक्फ संपत्तियों को सरकारी नियंत्रण में लेना है।
कांग्रेस सांसदों ने कहा कि भाजपा सरकार इस विधेयक के माध्यम से मुस्लिम समुदाय को कमजोर करने की साजिश कर रही है। समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने इसे “सांप्रदायिक एजेंडा” बताया और कहा कि यदि यह विधेयक पारित हुआ तो मुस्लिम धार्मिक संस्थाएँ बुरी तरह प्रभावित होंगी।
भाजपा नेताओं ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह विधेयक पूरी तरह संवैधानिक और न्यायसंगत है। उनका कहना है कि पारदर्शिता और उत्तरदायित्व लाने के लिए सुधार आवश्यक हैं। भाजपा ने स्पष्ट किया कि यह विधेयक किसी भी धार्मिक समुदाय के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह केवल प्रशासनिक सुधार सुनिश्चित करने के लिए लाया गया है।
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, “हम मुस्लिम समुदाय की भलाई के लिए काम कर रहे हैं, और वक्फ बोर्ड में सुधार उसी दिशा में एक कदम है। विपक्ष सिर्फ राजनीति कर रहा है और अनावश्यक रूप से जनता में डर पैदा कर रहा है।”
वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पर संसद में भारी विवाद जारी है। भाजपा इसे सुधारवादी कदम बता रही है, जबकि विपक्ष इसे मुस्लिम धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप और वक्फ बोर्डों के अधिकारों को कमजोर करने की कोशिश मान रहा है। संसद में इस मुद्दे पर तीखी बहस के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विधेयक आखिरकार पारित होता है या नहीं। यदि इसे मंजूरी मिलती है, तो यह वक्फ संपत्तियों के प्रशासन में बड़े बदलाव ला सकता है, लेकिन विपक्ष के विरोध के चलते यह विधेयक कानूनी और राजनीतिक विवादों से घिरा रह सकता है।